फरीदाबाद (म.मो.) अभी एक महीना भी नहीं हुआ जब फरीदाबाद पुलिस ने एक पीडि़त से उसकी गुमशुदा बेटी की तलाश हेतु कार का खर्चा मांगा था। जब मामला अखबारों में प्रकाशित हो गया तो पुलिस प्रवक्ता द्वारा बताया गया कि सरकार द्वारा इस काम के लिये पुलिस अधिकारियों को पर्याप्त खर्चा दिया जाता है। इसके बावजूद खर्चा मांगने की घटनाएं लगातार इसलिये बढ रही हैं कि रिश्वतखोरों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जाती।
डबुआ निवासी लोकनाथ ने इस संवाददाता को बताया कि उनका 14 वर्षीय पुत्र श्याम 13 दिसम्बर को गुम हो गया था। वह अक्सर अपने दोस्त गौरव, जिसके पिता दशरथ एक नम्बर में कचौड़ी की रेहड़ी लगाते हैं, के साथ ही रहता था। जब वह देर रात तक घर नहीं आया तो उसके परिजनों ने पुलिस के 112 नम्बर पर फोन किया तो उन्हें थाना डबुआ जाने के लिये कहा गया। रात करीब 12 बजे जब ये लोग थाने पहुंचे तो पुलिस ने इनकी रपट तक दर्ज नहीं करी। अगले दिन दोपहर को डेढ़ बजे मुकदमा दर्ज किया।
लेकिन जिनका बालक गुम था वे भला कैसे सो सकते थे? इसलिये परिजन रात भर उसे ढूंढते रहे। अगली सुबह ये लोग दशरथ रेहड़ी वाले के पास पहुंचे तो वहां न तो दशरथ था न उसका बेटा गौरव। अपने स्तर पर पूछ-ताछ करने पर आस-पास के लोगों ने बताया कि कल गौरव का किसी लडक़े से भयंकर झगड़ा हुआ था। श्याम के परिजन तुरन्त समझ गये कि गौरव का झगड़ा उनके बेटे से ही हुआ होगा। वास्तव में यह पूछ-ताछ एवं छान-बीन करना पुलिस का ही काम था जो उन्होंने नहीं किया।
बाप-बेटे के लापता होने से श्याम के परिजनों का संदेह और भी गहरा गया। उन्होंने अंदाजा लगा लिया कि गौरव व उसका पिता शहर छोडक़र अपने गृह राज्य बिहार की ओर निकल गये होंगे। थाने के एएसआई जमशेद खान ने भगोड़े पिता-पुत्र की तलाश में आनंद विहार रेलवे टर्मिनल तक जाने के लिये एक हजार रुपये मांगे जो श्याम के पिता ने जैसे-तैसे करके उसे दे दिये। लेकिन जब यह मामला एसीपी के नोटिस में लाया गया तो खान द्वारा लिये गये हजार रुपये वापिस कर दिये गये। पैसे तो वापिस हो गये लेकिन कोताही करने वाले एएसआई के विरुद्ध अन्य कोई कार्यवाही नहीं की गई।
परिजनों द्वारा भगोड़े बाप-बेटे की तलाश का तो कोई परिणाम नहीं निकला, परन्तु 16 तारीख को श्याम की लाश, सूरजकुंड रोड स्थित खालसा गार्डन के निकट झाडिय़ों से बरामद हो गई। जाहिर है कि पहले से लिखी गई रपट गुमशुदगी अब हत्या के केस में बदल गई। अब हत्यारों को ढूंढने के लिये भाग-दौड़ करने के लिये पुलिस, गरीब परिजनों से कितने पैसे और मांगेगी? पुलिस द्वारा इस तरह की मांग का किया जाना कोई नई बात नहीं है। लगभग हर केस में मुकदमा दर्ज करने से लेकर केस पूरा होने तक पुलिस हर कदम पर वसूली करती रहती है।
यूं तो हर थाने-चौकी का हाल बेहाल है परन्तु पिछले कुछ दिनों से थाना डबुआ के काले कारनामें कुछ ज्यादा ही प्रकाश में आ रहे हैं। इसी माह थाने में अपनी शिकायत लेकर पहुंचे एक पीडि़त के दांत तक भी एक हवलदार साहब ने तोड़ दिये। कायदे से तो हवलदार साहब के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज करके तुरन्त उसे हवालात में दे देना चाहिये था। परन्तु उसे केवल पुलिस लाइन में आराम करने के लिये भेज दिया गया।
पिछले सप्ताह मिंदर नामक एक व्यक्ति अपनी मोटसाइकिल की चोरी की रपट दर्ज कराने इसी थाने पहुंचा तो वहां मौजूद हवलदार सुरेन्द्र व रोहतास ने उसका केस दर्ज करने से इस आधार पर इन्कार कर दिया कि उसकी गाड़ी का बीमा नहीं है। बाद में मामला एसएचओ के नोटिस में लाया गया तो कहीं जाकर चार दिन बाद मुकदमा दर्ज हो पाया। लेकिन एसएचओ ने कोताही करने वाले पुलिस कर्मियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की।
पुलिस के उच्चाधिकारियों द्वारा, कोताही व रिश्वतखोरी के मामले सामने आने के बावजूद भी कोई कार्यवाही न किये जाने के परिणामस्वरूप ही पुलिसकर्मियों को कोताही व रिश्वतखोरी की प्रेरणा मिलती है।
पुलिस का जनविरोधी रवैय्या
मृतक श्याम के परिजन जब शव लेने बीके अस्पताल पहुंचे तो गमगीन परिजन पुलिस के प्रति अपने आक्रोश को न रोक पाये और पुलिस के खिलाफ जमकर नारेबाज़ी करने लगे। सूचना मिलने पर एसीपी रमेश चंद्र दल-बल सहित मौके पर पहुंचे। उन्होंने परिजनों को धमकाते हुए तथा गिरफ्तारी की धमकी देकर उन्हें चुप कराया। यही है पुलिस का रवैया, अपने भ्रष्ट एवं नालायक पुलिस कर्मियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही करने की बजाय पीडि़त लोगों को ही हडक़ा कर अपने कत्र्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं।