विवेक कुमार फरीदाबाद। स्मार्ट सिटी फरीदाबाद के ग्रेटर फरीदाबाद में बसे लोगों को लाखों रुपये के फ्लैट बेचने के बाद भी बिजली आपूर्ति की ठीक सुविधा तक नहीं दी गई। इस मामले में कोर्ट का फैसला बीते 29 दिसंबर को आया जिसमे बिल्डर बीपीटीपी और दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम को निर्देश जारी करते हुए अदालत ने देर से ही सही पर एक राहत की किरण ग्रेटर फरीदाबाद के निवासियों को दिखाई है।
सेव फरीदाबाद की ओर से मेगपाई रिसॉर्ट की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रमोद भारद्वाज और वकील उमेश प्रभाकर ने बताया कि बीपीटीपी ने वर्ष 2011-12 में नहर पार बनाई अपनी टाऊनशिप्स में अलाटी? को बिजली मुहैया करवाने के नाम पर 775 रुपये प्रति वर्ग गज के हिसाब से लगभग 22 लाख 86 हजार वर्ग गज के 200 करोड़ रुपये उगाह लिए। पैसे लेने के बावजूद बीपीटीपी ने आजतक वो पैसे दक्षिण हरियाणा वितरण निगम में न जमा करवाए और न ही निगम ने खुद से कोई जहमत उठाई।
हाँ, अंदरखाने ग्लास चटकाने वाले ये दोनों बैल जनता को दिखाने के लिए बाहर मैदान में नूराकुश्ती करते रहे। न्यायपालिका ने बीपीटीपी को आदेश देते हुए कहा है कि उसने जनता से कितने पैसे इकट्ठे किये हैं यह सूचना वह डीएचबीवीएन को एक माह के भीतर देगा, वहीं बिजली विभाग 15 दिन में बीपीटीपी को यह बताएगा कि नहर पार सेक्टर ।5-89 में कितने लोड की आवश्यकता है। 45 दिन में बीपीटीपी उपभोक्ताओं से लिया गया पैसा बिजली विभाग को जमा करवाएगा। इसके बाद ही बिजली विभाग अलौटी? को सीधे बिजली दे सकेगा। जब तक यह आधारभूत संरचना बिजली विभाग या आरडब्लूए को सौंपी जाएगी तब तक बीपीटीपी या कंट्रीवाइड प्रोमोटर प्राइवेट लिमिटेड ही बिजली के बिल बनाएगा। कोर्ट ने साथ ही आदेश दिया कि बीपीएमसी जो एक मैनटेनेंस कंपनी है अब बिजली के बिल नहीं ले सकेगा।
सेव फरीदाबाद जारी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया गया कि फरीदाबाद के सांसद कृष्णपाल गुर्जर जो कि अब राज्य ऊर्जा मंत्री भी हैं ने इस मामले में उनसे मिलने के बाद भी कभी कोई जवाब नहीं दिया जबकि मंत्री जी उसी इलाके में अपनी पाम सिटी के फ्लैट बेच रहे हैं। यदि उपभोक्ता और नागरिक अधिकारों की बात करें तो देश में क्या वाकई ऐसे अधिकार हैं या इन अधिकारों की रक्षा क्या विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका द्वारा की जा रही है। एक ऐसा
मामला जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल है वहाँ एक बिल्डर 200 करोड़ की रकम जनता से लेकर सरकार को देता ही नहीं और उसपर सरकार चूँ तक नहीं करती। इतना ही नहीं 10 वर्षों से अपनी जमापूँजी लगा कर सुकून का जीवन जीने की आस में बैठे आम आदमी को न बिजली मिली, न सीवर न पानी न सडक़ और तो और ग्रेटर नोएडा के इलाके में व्याप्त अंधेरे ने अपराधों की संख्या में में भी खूब इजाफा किया है। 10 घंटे से लेकर कई दिनों के पावर कट में मोमबत्तियों से लेकर दिल तक जला कर प्रदर्शन करने वाले इन नागरिकों और उपभोक्ताओं के हिस्से लाखों रुपये देकर आया क्या, बस एक मुकद्दमा?
ऐसे में क्या कोई कोर्ट बताएगी कि जब बिजली न होने की सूरत में इनसे 21-22 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से जनरेटर से बिजली देने का चार्ज वसूला गया तो क्या इस ज्यादती का हिसाब भी कभी किया जाएगा? 10 साल से अपने पैसे एक संपत्ति में लगाने के बाद बिजली जैसी मूलभूत सुविधा न होने से प्रॉपर्टी की कीमत के न बढऩे का नुकसान भी कोई सरकार या बिल्डर इन लोगों को देगी? जवाब है, नहीं। फिलहाल ये बेचारे नागरिक अपने लिए सिर्फ और सिर्फ बिजली की मांग पूरी होने को ही दूर की कौड़ी समझते हैं जिसका कोर्ट से ऑर्डर होने के बाद भी मिल पान टेड़ी खीर ही है।