फरीदाबाद (म.मो.) प्राइवेट एवं सरकारी अस्पतालों में इलाज के दौरान मरीजों के साथ बरती गयी लापरवाही की शिकायतें सुनने एवं दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिये हरियाणा सरकार ने जि़ले के सिविल सर्जन की अध्यक्षता में 8 सदस्यीय बोर्ड बना रखा है। इसमें 4 सरकारी व 4 प्राइवेट डॉक्टर होते हैं। इनमें से एक इन्डियन मेडिकल एसोसिएशन की जि़ला अध्यक्ष डॉक्टर हसीजा भी होती है।
सैनिक कॉलोनी निवासी तरूण चोपड़ा द्वारा लगाई गयी एक आरटीआई द्वारा पता चला है कि पहली जनवरी 2018 से नवम्बर 2021 तक के चार वर्षों में विभिन्न अस्पतालों के विरुद्ध पीडि़त मरीज़ों अथवा उनके परिजनों ने 88 शिकायतें दर्ज कराई हैं। हर शिकायत की सुनवाई के लिये शिकायतकर्ता को चार-पांच बार बोर्ड की पेशियां भुगतनी पड़ती हैं उसके बाद परिणाम निल बटा सन्नाटा। यानी 88 शिकायतों में से एक भी शिकायत इस लायक नहीं पाई गयी कि किसी अस्पताल अथवा डॉक्टर को दोषी पाकर, उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही की जाय। इसका अर्थ यह निकला कि किसी भी अस्पताल के किसी भी डॉक्टर ने कभी कोई लापरवाही नहीं की, सब चंगा है।
इसके विपरीत मीडिया में आये दिन बीके अस्पताल सहित तमाम व्यापारिक अस्पतालों द्वारा की गयी लापरवाहियों के चलते मरीज़ों को बहुत कुछ भुगतना पड़ा और कइयों ने तो अपनी जान भी गंवाई। लेकिन उक्त बोर्ड की निगाह में कोई भी दोषी नहीं पाया जाता। बीके अस्पताल में तो लापरवाही की घटनाओं को लेकर आये दिन जांच बैठाये जाने की घोषणा मीडिया में आती रहती है, परन्तु उस ‘जांच’ का परिणाम कभी सामने नहीं लाया जाता।
दरअसल उक्त बोर्ड, सरकार ने केवल व्यापारिक अस्पतालों एवं डॉक्टरों की बांह मरोडऩे के लिये बना रखा है। शासन-प्रशासन इसके द्वारा व्यापारिक अस्पतालों पर अपनी दादागिरी बनाकर अपने निहित स्वार्थों को साधता है।
कोरोना की दोनों लहरों के दौरान तो निजी अस्पतालों ने लापरवाही एवं लूट की तमाम हदें पार कर दी थी, लेकिन किसी के भी खिलाफ कोई बड़ी कार्यवाही होती नज़र नहीं आई। लगभग ऐसा ही हाल डेंगू के मामलों में भी किया जा रहा है।