बलात्कार के मामले में समझौता कराती है फरीदाबाद पुलिस फरीदाबाद (म.मो.) दिनांक 19 नवम्बर को सेक्टर 24 स्थित आजाद नगर कॉलोनी में रहने वाली आठवीं जमात की छात्रा रेहाना के साथ हुए बलात्कार की रिपोर्ट लिखाने जब उसकी मां थाना मुजेसर पहुंची तो पुलिसवालों ने मामले को रफा-दफा करके समझौता कराने का प्रयास किया।
थाना मुजेसर के ठीक सामने, करीब 300 मीटर के फासले पर रेलवे लाइन के साथ बसी आजाद नगर कॉलोनी में उक्त नाबालिग छात्रा अपने मां-बाप के साथ रहती है। लड़की का राजमिस्त्री पिता रोजमर्रा की तरह काम पर गया था और मां बस्ती में कहीं आस-पास किसी के घर गई हुई थी। बच्ची को अकेली घर में पाकर मंतोष नामक युवक, जो बगल के ही घर में रहता है, ने घर में घुसकर बच्ची को दबोच लिया। उसका मुंह दबा कर पड़ोस के एक खाली घर में ले जाकर दुष्कर्म कर दिया।
इसी बीच लड़की की मां लौट आई और घर में बच्ची को न पाकर जोर-जोर से चिल्लाने लगी। उसका शक सीधे मंतोष पर ही गया था क्योंकि वह पहले भी कई बार बच्ची से छेडख़ानी कर चुका था और समझाने-धमकाने पर माफी मांगते हुए आगे से ऐसा न करने का वायदा कर चुका था। बच्ची की मां का विलाप सुन कर मंतोष की मां हड़बड़ाती हुई अपने घर से निकली तो दूसरी ओर से मंतोष ने बच्ची को उस टॉयलेट से निकाल दिया जहां से बंद कर रखा था। बेटेे को दोषी देख कर मंतोष की मां ने बेहोश होकर गिरने का नाटक किया। ऐसे में सब लोगों का ध्यान उसकी ओर हो गया। मौके पर मौजूद लोगों ने बच्ची की मां को लड़के के खिलाफ उचित कार्रवाई कराने का आश्वासन देकर रोक लिया।
अगले दिन हिम्मत करके बच्ची की मां थाने गई तो वहां पर उसकी बात समझने वाला कोई न मिला तो वह 21 नवम्बर को अपने दो-चार समझदार पड़ोसियों को लेकर थाने पहुंची। वहां सिविल कपड़ों में मौजूद किसी उधम सिंह ने बगैर अपना नाम व रैंक बताये उनको लड़की की इज्जत व अदालती झमेलों का भय दिखा कर समझौता करने की सलाह देकर चलता कर दिया। 23 तारीख को आस-पास रहने वाले शीशपाल ने ‘मज़दूर मोर्चा’ के रिपोर्टर शेखर दास से सम्पर्क किया। ये दोनों बच्ची की मां के साथ थाने पहुंचे तो वहां कोई भी यह मानने को तैयार नहीं था कि बच्ची की मां 21 तारीख को मुकदमा दर्ज कराने आई थी।
अनपढ़ और घबराई हुई लड़की की मां थाने में किसी की भी पहचान व नाम बताने की स्थिति में नहीं थी। जाहिर है कि यह सब थाने के कुप्रबन्धन का परिणाम था, वहां क्यों नहीं किसी वर्दीधारी अधिकारी ने उसके साथ बात-चीत कर उसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की? यह तथ्य भी सामने आया है कि उसी बस्ती का पप्पू नामक पुलिस का दल्ला इस मामले में काफी सक्रियता से थाने में घूम रहा था।
खैर, जो भी है शेखर दास व शीशपाल के जाने पर एसएचओ संदीप को इसकी भनक पड़ गई। उन्होंने खूद पूरे केस को सुना व समझा, नियमानुसार थाने के लिये नियुक्त महिला वकील को बुलवाया और मामले को महिला थाना एनआईटी के लिये रवाना कर दिया।
थाना मुजेसर से करीब 3.30 बजे लड़की पक्ष वाले सेक्टर 21बी स्थित महिला थाने ले जाया गया। शाम करीब साढे छह बजे तक उन्हें तरह-तरह के बहानों से बैठा कर वापस मुजेसर थाना ले आये और इन्हें लगभग 10 बजे तक यहां बैठाये रखा गया और कहा कि अभी तो कार्रवाई 12 बजे तक चलेगी और तुम्हें यही बैठना पड़ेगा। तंग आई लड़की की मां ने जोड़े दो हाथ और कहा हमें नहीं कराना कुछ हम जा रहे हैं। यही है ईमानदार खट्टर की ईमानदार पुलिस का खेला।
पॉक्सो अधिनियम के अनुसार शिकायतकर्ता द्वारा पुलिस को प्रथम सूचना देते ही उसका संज्ञान लेना चाहिये। लेकिन इस मामले के कई दिनों तक थानों में घूमते रहने व एसएचओ मुजेसर व एसएचओ महिला थाना एनआईटी के संज्ञान में आने के बावजूद कार्यवाही रही निल बटा सन्नाटा। शिकायतकर्ता गरीब एवं अनपढ महिला को थाना मुजेसर से महिला थाना एनआईटी तक इस कदर दौड़ाये जाता रहा कि रात के साढे नौ बजे उसने हथियार डालते हुए पुलिस कार्यवाही कराने से तौबा कर ली। एसएचओ मुजेसर संदीप से पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि मामला महिला थाने को रैफर कर दिया गया है।
इस बाबत एसएचओ महिला थाना सुशीला से पूछने पर उन्होंने मामले की जानकारी से अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि अभी वे व्यस्त हैं, एक घंटे बाद पूरी जानकारी लेकर इस संवाददाता को सूचित करेगी। लेकिन उसके बाद न तो उनका फोन आया और न ही वे फोन पर उपलब्ध हुई। पॉक्सो एक्ट के मुताबिक प्रथम सूचना मिलने पर पुलिस पीडि़त महिला को कानूनी सहायता के लिये निर्धारित पैनल से महिला वकील को बुलायेगी।
इस मामले में बुलाई गई महिला वकील के कानूनी ज्ञान व उनके कत्र्तब्य बोध को देख कर इस संवाददाता के ज्ञान चक्षू भी खुले के खुले रह गये। पूरी पुलिसिया भाषा में बोलते हुए वकील साहिबा ने फर्माया कि मीडिया वाले आ जाते हैं वकालत करने, जबकि सच्चाई को समझने का प्रयास नहीं करते। पीडि़ता बार-बार बयान बदलते हुए कभी कुछ और कभी कुछ कहे जा रही थी। एसएचओ भी बेचारा सुन-सुन कर पागल हो गया। मैं भी 11 बजे रात को घर पहुंची। एक सीधे प्रश्न के जवाब में वकील साहिबा ने कहा कि ऐसे ही कैसे मुकदमा दर्ज करा दें जब वह ढंग से बयान ही न दे तो।
महकमा पुलिस को चाहिये कि अपने तमाम अधिकारियों को समझाए कि पॉक्सो एक्ट के मुताबिक सूचना मिलने पर एसएचओ द्वारा मुकदमा दर्ज न करने पर वह खूद भी अपराधी बन जाता है।