कम्पलीशन प्रमाणपत्र का बिचौलिया है औरेंज भारद्वाज

कम्पलीशन प्रमाणपत्र का बिचौलिया है औरेंज भारद्वाज
November 17 10:05 2021

फरीदाबाद (म.मो.) 31 अक्टूबर-6 नवम्बर को प्रकाशित हुए मजदूर मोर्चा के अंक में कंपलीशन प्रमाणपत्र के नाम पर वसूली से सम्बन्धित एसडीओ सुमेर सिंह ने ‘मज़दूर मोर्चा’ को बताया कि उन्होंने उस केस में सुमित तनेजा से कोई रकम नहीं मांगी ओर न ही उनका कम्पलीशन से कोई ताल्लुक है। उस मामले में सुमित सम्बन्धित ब्रांच के क्लर्क को जब बुरी तरह से धमका रहा था तो उन्होंने उसे सख्ती से टोकते हुए कर्मचारी को इस तरह धमकाने से रोका था।

जहां तक सवाल है मकान के कम्पलीशन का तो वह मकान सुमित का न होकर रश्मि खुराना और कपिल खुराना का है जो अचीवर्स सोसायटी में स्थित है। इसका नम्बर 4415 है। इस सम्बन्ध में सुमित द्वारा दायर किये गये दस्तावेज़ आधे-अधूरे पाये गये थे। नियमानुसार इसके लिये आर्किटेक्ट द्वारा प्रमाणपत्र दिया जाना जरूरी होता है। जो इस केस में नहीं था। इसके अलावा मौका मुआयना करने पर मकान का निर्माण कार्य भी अधूरा पाया गया। इस बाबत बाकायदा पत्र द्वारा मकान मालिक को सूचित कर दिया गया।

सुमेर ने यह भी बताया कि सुमित व उसके साथ आई लड़की का तो पैसे लेकर कम्पलीशन कराने का धंधा है। इससे पहले भी इन्होंने चीफ इंजीनीयर भास्कर, जो आजकल चंडीगढ़ बैठते हैं, से फोन करा कर कम्लीशन कराया था। एसडीओ सुमेर ने यह भी खुलासा किया कि नगर निगम की प्लानिंग ब्रांच में औरेंज कुमार भारद्वाज नामक एक ठेकेदारी कर्मचारी बतौर ड्राफ्ट्समैन लगा हुआ है। मात्र 15-20 हजार की कच्ची नौकरी करने वाला यह व्यक्ति बाकायदा कम्पलीशन कराने का धंधा चलाता है। इस काम के लिये उसने सेक्टर 12 की एक शानदार बिल्डिंग में आलीशान दफ्तर ‘आर्क ड्रीम इन्डिया’ के नाम से खोल रखा है। दफ्तर में नियमित रूप से बैठने के लिये गीता नागपाल नामक एक सिविल इंजीनियर को रखा हुआ है।

इस दफ्तर में कम्पलीशन संबंधी दस्तावेज़ तैयार करके सुमित जैसे लोगों को देकर नगर निगम भेज दिया जाता है। औरेंज कुमार इतना बड़ा दफ्तर अपने वेतन के बल पर तो चलाने से रहा, जाहिर है कि इसके लिये उसे मोटी रकम देने वाले ग्राहकों की जरूरत होती है। ऐसे ग्राहकों को पकडऩे के लिये वह नगर निगम में अपनी तैनाती व रसूख का पूरा इस्तेमाल करता है। विदित है कि पिछले कुछ वर्षों से सरकार ने आर्किटेक्टों को नक्शा बनाने के साथ-साथ नक्शा पास करने का अधिकार भी दे रखा है। इसी अधिकार का दुरुपयोग करते हुए औरेंज कुमार अपना धंधा चला रहा है। सावधानी केवल इतनी ही बरतनी होती है कि सम्बन्धित दस्तावेज़ों पर वह कहीं भी अपने हस्ताक्षर न करके गीता नागपाल या किसी आर्किटेक्ट से करवा लेता है। ‘मज़दूर मोर्चा’ ने इस बावत असल मकान मालिक कपिल खुराना से फोन पर बातचीत करनी चाही तो उन्होंने केवल इतना कहा कि उन्होंने कम्लीशन का काम गीता नागपाल को सौंप रखा है। पैसे के लेन-देन बाबत वे चुप्पी साध गये। लेकिन नगर निगम के एक कर्मचारी से उन्होंने यह कहा कि पड़ोसी मकान मालिक ने तीन लाख देकर कम्पलीशन कराया था। जिसे देखते हुए उसका कम्पलीशन तो ये लोग मात्र दो लाख में ही करा रहे हैं।

यद्यपि एसडीओ सुमेर सिंह का कहना है कि यदि मकान का निर्माण सही ढंग से नियमानुसार किया गया हो तो कम्पलीशन के लिये कोई रिश्वत नहीं ली जाती। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कम्पलीशन देना अकेले एसडीओ के हाथ में न होकर बाकायदा एक पांच सदस्यीय कमेटी के हाथ में होता है। जिसके प्रधान ज्वाईंट कमिश्नर होते हैं। बेशक सुमेर सिंह फ्री कम्पलीशन देने का दावा करते हैं और चाहते हैं कि मकान मालिक सीधे नगर निगम आकर अपना काम करायें। परन्तु यह बात हजम नहीं होती, यदि बात इतनी ही सीधी होती तो जनता औरेंज कुमार जैसे बिचौलिये के शिकंजे में क्यों फंसती? बेशक इस मामले में सुमेर सिंह का कोई लेना-देना न रहा हो लेकिन यह नहीं माना जा सकता कि नगर निगम वाले इतने भले हों कि बगैर कुछ लिये-दिये कम्पलीशन तो क्या छोटे से छोटा काम भी कर दें।

औरेज कुमार की हरकतों से वाकिफ होने के बाद एवं उनके खिलाफ आने वाली अनेक शिकायतों को देखते हुए करीब पांच-छ: साल पहले एक निगमायुक्त ने इन्हें सेवा मुक्त भी कर दिया था लेकिन ये साहब हाईकोर्ट से स्थगन आदेश ले आये और अपनी सीट पर बैठ कर अपना धंधा जमाये हुए हैं।

फरीदाबाद नगर निगम कम्पलीशन सर्टीफिकेट देने के धंधे में लाखों-करोड़ों कमाने के लिए कुख्यात है। इसमें इंजीनियर विंग नीचे से ऊपर तक और प्रशासनिक अधिकारी अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार हिस्सा डकारते हैं। ऐसा ही एक मामला जिसमें निगम एसडीओ सुमेर भी प्रत्यक्ष रूप से शामिल बताया गया था, मजदूर मोर्चा ने रिपोर्ट किया था।

कुछ वर्ष पूर्व हरियाणा सरकार ने निगम के भ्रष्ट तौर-तरीकों पर लगाम लगाने के लिए पंजीकृत आर्किटेक्ट को निर्माण मुताबिक नक्शों का प्रमाण पत्र देने के लिये अधिकृत किया था। इसके बाद निगम को सिर्फ मौका मुआयना करके कम्पलीशन सर्टीफिकेट जारी करना रह जाता था लेकिन जिस महकमे के मुंह में नागरिकों का लहू लगा हो वह रास्ता निकालने में देर क्यों करता। उपरोक्त सुमेर प्रसंग में एसडीओ सुमेर का पक्ष जानना बेहद दिलचस्प रहा। यह भी स्पष्ट हो गया कि निगम की डकैती को बिचौलियों के एक बड़े तंत्र का सहारा मिल रहा है। यह पहलू इस रिपोर्ट से पूरी तरह उजागर हो जायेगा।

view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles