अस्पतालों में 50% स्टाफ की कमी का हश्र नहीं जानना

अस्पतालों में 50% स्टाफ की कमी का हश्र नहीं जानना
November 17 09:33 2021

चाहते पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश
मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
हरियाणा के 22 जि़लों से 22 लोगों ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में ‘चिकित्सा के अधिकार’ कानून को लागू कराने के लिये एक याचिका दायर की थी। प्राथमिक सुनवाई करने पर सिंगल बेंच ने इसे पीआईएल (जनहित याचिका) मानते हुए मुख्य न्यायाधीश रवि शंकर झा की ओर भेज दिया।

याचिका में कहा गया था कि सरकारी अस्पतालों एवं स्वास्थ्य केन्द्रों में 50 प्रतिशत से अधिक पद रिक्त पड़े हैं। अनेक स्वास्थ्य केन्द्र तो ऐसे हैं जहां एक भी डॉक्टर नहीं है। इनमें सबसे अधिक दुर्दशा उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के क्षेत्र उचाना की है। याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत में पेश हुए वकील प्रदीप रापडिय़ा ने गुहार लगाई कि जब सरकारी अस्पतालों में आवश्यक स्टाफ ही नहीं है तो नागरिकों को दिये गये चिकित्सा के अधिकार का क्या मतलब है? इस सम्बंध में हरियाणा सरकार से जवाब-तलब किया जाना चाहिये कि जब उसने आवश्यक स्टाफ ही अपने अस्पतालों में नियुक्त नहीं कर रखा तो नागरिकों को चिकित्सा कैसे उपलब्ध होगी? नागरिकों के इस अधिकार के हनन के लिये राज्य सरकार उचित कार्रवाई करे।

मामला जब तक मुख्य न्यायाधीश के कोर्ट में पहुंचा तो हरियाणा सरकार ने अपना जवाब तैयार कर लिया था। इसमें कहा गया है कि वह शीघ्र ही रिक्त स्थानों की पूर्ति कर देगी।

मुख्य न्यायाधीश को तो मानो इसी का इन्तजार था; बस इसी आधार पर याचिका को समाप्त कर दिया गया। यानी कि याचिकाकर्ताओं की समस्याओं का समाधान उन्होंने कर दिया। मुख्य न्यायाधीश ने यह जानने तक का प्रयास नहीं किया कि खाली पड़े पदों पर नियुक्तियां कितने दिनों, कितने महीनों अथवा कितने वर्षों में हो पायेंगी? जैसा आश्वासन देकर हरियाणा सरकार ने याचिकाकर्ताओं से अपना पिंड छुड़वा लिया है, इस तरह के आश्वासन तथा वायदे ये राजनेता आये दिन अपनी जनसभाओं में करते रहते हैं।

इससे भी बड़ी बात आदेश में मुख्य न्यायाधीश ने यह फरमाई कि याचिका में यह नहीं बताया गया है कि अस्पतालों में स्टाफ की कमी होने से कहां, किसका, कितना नुकसान हुआ है। क्या न्यायाधीश महोदय यह नहीं जानते कि जब अस्पताल नहीं होंगे या अस्पतालों में स्टाफ व दवाईयां आदि नहीं होंगे तो किसको क्या नुकसान होता है? क्या न्यायाधीश महोदय यह जानना चाहते हैं कि चिकित्सा सेवाओं में इतनी भयंकर कमी से कितने लोग वक्त से पहले बेमौत मारे गये। इस सुविधा के अभाव में नागरिकों ने क्या-क्या भुगता? मान लो यदि कोई इस तरह के आंकड़े किसी तरह जुटा भी लाये तो क्या न्यायाधीश महोदय उनके लिये उचित मुआवजा दिला पायेंगे? नहीं ऐसा कुछ नहीं होने वाला, केवल एक बहस की शुरूआत हो जायेगी कि आंकड़े झूठे हैं या सच्चे हैं। उसके बाद अंत फिर ‘आश्वासन’ से ही कर दिया जायेगा।

वकील रापडिय़ा से फोन पर ‘मजदूर मोर्चा’ ने बात की तो उन्होंने बताया कि खर्चा तो जरूर लगेगा लेकिन हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती जरूर दी जायेगी। इस बात-चीत के दौरान ‘मज़दूर मोर्चा’ ने ईएसआईसी चिकित्सा सेवाओं की ओर भी ध्यान दिलाया जिन पर 88 प्रतिशत खर्च कार्पोरेशन करती है। उसके बावजूद हरियाणा सरकार ने इस सेवा का भी पूरी तरह से सत्यानाश कर रखा है। वकील साहब ने अपील में इस ओर भी ध्यान देने का आश्वासन दिया।

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