शराब का अवैध धंधा पुलिस के संरक्षण में ही चल सकता है

शराब का अवैध धंधा पुलिस के संरक्षण में ही चल सकता है
October 09 04:49 2021

फरीदाबाद (म.मो.) शराब की अवैध बिक्री को लेकर सीपी विकास अरोड़ा की ओर से जारी किये गये एक बयान में कहा गया है कि सम्बन्धित क्षेत्रों के एसीपी नियमित रूप से समीक्षा करके अपने-अपने क्षेत्रों में शराब की अवैध बिक्री पर रोक लगायेंगे।

समीक्षा तो हमेशा से होती आई है और यदि यूं ही होती रही तो शराब भी यूं ही अवैध रूप से बिकती रहेगी। प्रत्येक थाना व उसकी चौकियां तो इसकी रोक-थाम के नाम पर जो ‘धंधा’ कर रही हैं, वही सब क्राइम ब्रांच की तमाम चौकियां भी कर रही हैं। इस रोक-थाम के नाम पर वे तमाम अधिकारी जम कर लूट कमाई करने में जुटे हैं। दिखावे के तौर पर कागज़ी कार्रवाई करके ये लोग अपने-अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। कार्रवाई के नाम पर होता यह है कि तमाम थाने व चौकियों वाले, अवैध धंधा करने वालों से फोन करके केस मांग लेते हैं। अर्थात पुलिस वाले अवैध शराब पकडऩे के जो मुकदमे दर्ज करते हैं वे सब फर्जी होते हैं। यानी कि शराब का अवैध कारोबारी अपने किसी कारिंदे को दो-चार बोतलों के साथ पुलिस के हवाले कर देता है, जिसे वह अदालती कार्रवाई के बाद छुड़वा लेता है।

यदि सीपी साहब वास्तव में ही इस धंधे को बंद करना चाहते हैं तो यह कोई बहुत मुश्किल काम भी नहीं है। इसके लिये सबसे पहले फर्जी पर्चे देने का काम बंद करवाना होगा। इन्हीं फर्जी पर्चों को आगे रखकर पुलिस कह देती है कि हम क्या करें, देखियेे हमने तो इतने पर्चे दे दिये व इतनी शराब पकड़ ली, अदालत इनको सस्ते में छोड़ देती है तो हम क्या करें? दरअसल कोर्ट भी बखूबी समझती है इन फर्जी पर्चों का खेल। यदि इस खेल में सजायें कड़ी हो जायें तो पुलिस के भाव और भी बढ़ जायेंगे।

इसकी रोक-थाम का बड़ा सरल सा उपाय है कि जिस थाना व चौकी क्षेत्र में इस तरह का धंधा पकड़ा जाये तो सम्बन्धित एसएचओ एवं चौकी इंचार्ज को इस के लिये दोषी मानकर उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाये। क्राइम ब्रांच की जो फोर्स आज शराब कारोबारियों से पर्चे मांगते फिरती है वह इस धंधे को छोड़ कर थाने व चौकियों की रिपोर्ट ऊपर तक पहुंचाए।

अगला महत्वपूर्ण मसला पकड़े गये दोषी थानेदारों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने का है। यहां आकर, सज़ा दे सकने वाले उच्चाधिकारी दबाव में आ जाते हैं। यदि कोई भ्रष्ट है तो लेन-देन करके मामले को निपटा देगा और यदि ईमानदार एवं सख्त मिजाज का है तो राजनीतिक दबाव के आगे घुटने टेक देगा। जहां एक-दो बार ऐसा हुआ तो सारी योजना एकदम से औंधे मुंह गिरना तय है।

अभी पिछले दिनों सीपी साहब ने थाना डबुआ के एसएचओ सोहनपाल गूजर को लाइन हाजिर किया था। जाहिर है कि उन्होंने यह कदम उसके निकम्मे व भ्रष्ट आचरण को देख कर ही तो उठाया होगा। लेकिन, बमुश्किल एक हफ्ता भी सीपी साहब उसे लाइन में न रख पाये। उसे लूट कमाई के हिसाब से जि़ले का बेहतरीन थाना सूरजकुंड सौंप दिया गया। यह वही थाना है जहां से होकर शराब तस्कर भारी मात्रा में अपना माल दिल्ली सप्लाई करते हैं। कहने को सीपी साहब कुछ भी कह सकते हैं लेकिन समझने वाले बखूबी समझते हैं कि इस तैनाती के पीछे केन्द्रीय मंत्री कृष्णपाल गूजर का हाथ है।

जहां थानेदारों को यह पता हो कि सीपी के पल्ले कुछ नहीं है, वे अपनी तैनातियां एवं सेवाकाल मंत्रियों एवं विधायकों के सहारे भली प्रकार से काट सकते हैं तो वे सीपी की क्या परवाह करेंगे? इसी के चलते सारी पुलिस व्यवस्था लुंज-पुंज हो चुकी है। यदि यह व्यवस्था दुरुस्त हो तो किसी थानेदार के इलाके में किसी बदमाश, अपराधी, तस्कर आदि की क्या मजाल जो जरा भी पंख फडफ़ड़ा सके।

समझने वाली बात यह है कि जिस पुलिस के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए जनता ने अपने प्रतिनिधियों को सत्ता सौंपी है व खुद ही उसके भ्रष्टाचार में शामिल हो गये। इसलिए इस भ्रष्टाचार के लिए राजनेता भी पूरी तरह से जिम्मेदार है।

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Mazdoor Morcha
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