1992 में एसपी करनाल लगने पर मुझे जिला कष्ट निवारण समिति में एक अपहरण का मामला विरासत में मिला जिसके समाधान पर सभी की नजर लगी थी

1992 में एसपी करनाल लगने पर मुझे जिला कष्ट निवारण समिति में एक अपहरण का मामला विरासत में मिला जिसके समाधान पर सभी की नजर लगी थी
November 22 02:23 2020

कानून सवार लव जिहाद बनाम समाज में लव आख्यान

विकास नारायण राय (पूर्व डायरेक्टर, नेशनल पुलिस अकादमी)

 

जो वे राजनीति में देखना चाहते हैं, वही कमोबेश कानून व्यवस्था में भी करने वाले हैं। यानी हिन्दू-मुस्लिम! उनका बस चले तो एक समुदाय के अपराधियों पर सामान्य कानून लागू हों जबकि दूसरों पर, उन्हीं अपराधों के लिए, कठोरतम कानून- यूपा, रासुका, गैंगस्टर, राजद्रोह। अपराधों की इसी दूसरी सूची में अब एक और नया अपराध शामिल करने का प्रस्ताव लाया जा रहा है, जिसका नाम होगा ‘लव जिहाद’।

इन दिनों दो लड़कियों की नृशंस हत्याएं चर्चा में रहीं, दोनों में हत्या का मकसद लडक़ी से जबरन शादी करना था। लेकिन हरियाणा में हुए अपराध को लव जिहाद बता कर प्रचारित कराया गया और बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान हुए अपराध को 15 दिन तक दबा कर रखा गया। क्या यह भी बताना होगा कि पहले मामले में अपराधी मुस्लिम था और लडक़ी हिन्दू जबकि दूसरे में अपराधी हिन्दू और लडक़ी मुस्लिम?

देश की कानून व्यवस्था प्रणालियों की विश्वसनीयता पर भ्रष्टाचार, औपनिवेशिक मानसिकता, सत्ता दखल और वीआईपी संस्कृति का पारंपरिक बोझा पहले ही कम नहीं था, ऐसे में इनमें लव जिहाद के नाम पर कट्टरपंथी राजनीति का विस्फोटक मिश्रण शामिल हो जाने से यह संकट और गहरा होता जाएगा।

इस बीच बल्लभगढ़, फरीदाबाद के निकिता हत्याकांड की चार्जशीट अदालत में दाखिल की जा चुकी है और उसमें मीडिया में बहु-प्रचारित लव जिहाद मंशा का कोई जिक्र नहीं है। जबकि, समाज को स्तब्ध कर देने वाली इस निर्मम हत्या ने ही भाजपा की तीन राज्य सरकारों – उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा – की ओर से लव जिहाद कानून का राग छेडऩे में ट्रिगर का काम किया है। तीनों राज्यों के गृह मंत्री ऐसा कानून जल्द लाने का संकल्प लगातार दोहरा रहे हैं। यानी, लव जिहाद जैसा कोई अपराध समाज में हो रहा हो या नहीं, उस राजनीति पर कानून व्यवस्था का पर्दा डालने का काम अवश्य आगे बढ़ाया जाएगा।

2020 की इन घोषणाओं में 2016-18 के केरल (अखिला-हदिया) प्रकरण के दौर से कहीं बढ़-चढ़ कर निश्चितता नजर आती है। तब, धर्म परिवर्तन कर हिन्दू अखिला से मुस्लिम हदिया बनी और अपने पसंदीदा मुस्लिम युवक से शादी करने वाली 24 वर्षीय होमियोपैथी मेडिकल छात्रा के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी शादी को वैध माना था। न्यायालय ने निर्णय देने से पहले केंद्र सरकार की आतंकवाद विरोधी जांच एजेंसी एनआईए को भी व्यापक छान-बीन के लिए लगाया लेकिन राज्य में लव जिहाद परिघटना के सबूत नहीं मिले थे।

दरअसल, समाज में ऐसे हिन्दू-मुस्लिम विवाह के अनगिनत उदाहरण हैं जहाँ शादी के लिए धर्म परिवर्तन हो रहा होता है न कि धर्म परिवर्तन के लिए शादी। मुस्लिम कानून में यह वैध शादी की एक अनिवार्य शर्त हो सकती है लेकिन इससे लव जिहाद की मुहिम चलाने वालों को जबरन धर्म परिवर्तन का विवाद खड़ा करने की सुविधा बैठे-बिठाये मिल रही है। यानी हिन्दू और मुस्लिम दोनों कट्टरपंथियों के निशाने से बचने का उपाय होगा कि ऐसी शादियाँ सिविल मैरिज एक्ट में रजिस्टर की जाएँ और उनकी संतानों को भारतीय उत्तराधिकार कानून में समान हिस्सेदारी का लाभ मिले।

हिन्दुत्ववादियों की लव जिहाद मुहिम को एक और सुविधा है जिससे यह बार-बार सिर उठा पा रही है। मौजूदा अपहरण कानूनों और जातिवादी वैवाहिक रीतियों ने भी इसे सामाजिक स्वीकार्यता की जमीन प्रदान की है। मौजूदा न्याय प्रणालियों में ही इतने लोच हैं कि वयस्क प्रेम को भी अपहरण की संज्ञा दी जा सकती है, और प्रेम विरोधियों को नैतिकता का स्वयंभू संरक्षक बनने की छूट रहती है।

तो भी, भारतीय उप-महाद्वीप में, बुद्ध, अशोक, कबीर, नानक, अकबर, गांधी के समाज में, विभिन्न जीवन शैलियों का संगम इतना स्वाभाविक रहा है कि साम्प्रदायिक अलगाव लादने की राजनीति तुरंत पकड़ में आ जाती है। ऐसे में, मीरा, राधा, हीर, लैला की सहज सामाजिकता को कृत्रिम लव जिहाद कानून से नियंत्रित करने की समझ पर हंसा ही जा सकता है।

मैं अपने पुलिस जीवन के एक प्रसंग के माध्यम से इस सामाजिकता का खाका खींचना चाहूँगा। 1992 में एसपी करनाल लगने पर मुझे जिला कष्ट निवारण समिति में एक अपहरण का मामला विरासत में मिला जिसके समाधान पर सभी की नजर लगी थी। घर की लडक़ी को विजातीय किरायेदार से प्रेम हो गया था और दोनों अपनी राह निकल गए। माँ-बाप ही नहीं उनकी बिरादरी ने भी आरोपी को पकडऩे और लडक़ी की वापसी को बेहद तूल दे रखा था। एक नैतिक सत्याग्रह जैसा आन्दोलन चल निकला था और समिति के चेयरमैन (मंत्री) ने भी जन-दबाव में इसे नाक का सवाल बना रखा था।

खैर, पुलिस की भाग-दौड़ से दोनों को खोज निकाला गया। उनके घर वापस लाये जाने से पहले पिता ने मुझसे अलग से मिलने का समय माँगा। उसे अपनी लडक़ी और किरायेदार के बीच प्रेम का उनके लापता होने के पहले से पता था। वह जानता था कि बेटी के विजातीय विवाह से उसे बिरादरी का कोपभाजन होना पड़ेगा। लिहाजा, उसने ही दोनों को घर से दूर विवाह करने में मदद की थी। बिरादरी के तिरस्कार से बचने के लिए उसे अपहरण का मुकदमा लिखाना पड़ा जो कष्ट निवारण समिति में पहुंचकर तूल ले बैठा।

अब पिता चाहता था कि बाहर ही बाहर लडक़े-लडक़ी को उनके हाल पर छोड़ दिया जाये और केस खत्म कर दिया जाये। उसे अलग से, बिना बिरादरी को सूचित किये, समिति की अगली बैठक की सूचना दी जाये जहाँ वह अपनी शिकायत वापस ले लेगा। ऐसा ही किया गया। वह एक समझदार पिता था और उसने बिरादरी की खातिर अपनी बेटी की खुशियों का सौदा नहीं होने दिया।

लव जिहाद की उन्मादी राजनीति से लव आख्यान नहीं बदलने वाले!

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Mazdoor Morcha
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