बरोदा के दंगल में फंसी बीजेपी, लेकिन हुड्डा की लीडरशिप और किसान राजनीति पर भी होगा फैसला…

बरोदा के दंगल में फंसी बीजेपी, लेकिन हुड्डा की लीडरशिप और किसान राजनीति पर भी होगा फैसला…
November 07 16:24 2020

 

यूसुफ किरमानी

बरोदा (सोनीपत) : हरियाणा में 3 नवम्बर को बरोदा उपचुनाव दो खास मुद्दों को तय करने जा रहा है। इसलिए यह उपचुनाव असाधारण हो गया है। बरोदा यह तय कर देगा कि किसान मोदी सरकार के तीन कृषि विरोधी कानूनों से कितना नाराज हैं। यह उपचुनाव भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के बेटे दीपेंदर सिंह हुड्डा की लीडरशिप पर भी मुहर लगाने वाला है। यही वजह है कि बरोदा में कांग्रेस को कैसे जीतना है उसकी पूरी व्यूह रचना भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने तैयार की है। हालांकि मुकाबला त्रिकोणीय दिखता है लेकिन दरअसल यहां मुकाबला कांग्रेस के इंदुराज नरवाल और भाजपा के योगेश्वर दत्त के बीच है। योगेश्वर जहां अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हैं, वहां इंदुराज नरवाल बरोदा की क्षेत्रीय राजनीति में बहुत मजबूत हैं। योगेश्वर दोबारा भाजपा टिकट लेकर चुनाव में उतरे हैं। पिछला चुनाव वो हार चुके हैंं।

कांग्रेस का पलड़ा भारी

बरोदा में कांग्रेस का पलड़ा बहुत भारी नजर आ रहा है। जिस तरह पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने यहां डेरा डाला हुआ है और पूरे राज्य से अपने विश्वसनीय नेताओं और कार्यकर्ताओं की फौज बुला ली है उसने पूरे चुनाव की हवा बदल दी। बरोदा के एक-एक गांव को किसी न किसी पूर्व कांग्रेस विधायक और मौजूदा विधायक के जिम्मे सौंपा गया है। मसलन फरीदाबाद से वहां पहुंचे ललित नागर को 6 गांव सौंपे गए हैं। इसी तरह पूर्व विधायक महेंद्र प्रताप सिंह के बेटे विजय प्रताप को भी 6 गांव सौंपे गए हैं। इसी तरह नूंह के विधायक आफताब अहमद को भी कुछ गांव सौंपे गए हैं। फरीदाबाद के कांग्रेस नेता लखन सिंगला की ड्यूटी भी हुड्डा ने कुछ गांवों में लगाई है। यह सिर्फ फरीदाबाद के नेताओं की बानगी है। इसी तरह गुडग़ांव, रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़, करनाल, सिरसा, हिसार, हांसी आदि इलाकों के कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता बरोदा में चारों तरफ फैल गए हैं। इन लोगों ने हर गांव में हुड्डा की रैलियां कराईं और उसके बाद अब अंतिम चरण में घर-घर प्रचार करने के लिए सारे लोग पहुंच रहे हैं।

दूसरी तरफ भाजपा प्रत्याशी को सिर्फ और सिर्फ मनोहर लाल खट्टर से ही कुछ चमत्कार की उम्मीद है। खट्टर भी अब 29 अक्टूबर से यहां आकर जम गए हैं और जितने गांव वह अगले तीन-चार दिन में कवर कर सकेंगे, उतने में जाने का इरादा है। भाजपा के भी कई नेता और मंत्री बरोदा आये लेकिन जनता ने उनका उस तरह से स्वागत नहीं किया, जिस तरह वह कांग्रेस की सभाओं में उमड़ रही है। आमतौर पर भाजपा के कार्यकर्ता और उनके परिवार के लोग भाजपा की सभाओं में दिखाई देते हैं, आम लोग नहीं दिखाई देते। हालांकि भाजपा प्रत्याशी के लिए सहयोगी पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने जोर लगाया हुआ है लेकिन उसके नेताओं का जाट बेल्ट में सीधा विरोध हो रहा है। इसलिए जेजेपी मतदाताओं को बहुत प्रभावित नहीं कर पा रही है।

बरोदा में जाट फैक्टर

भाजपा ने जाट बेल्ट की इस सीट में एक दांव और भी खेला है। उसने इस मुकाबले को जाट बनाम गैर जाट बनाने की कोशिश की लेकिन कांग्रेस उसमें भी बाजी मार ले गई। भाजपा ने जानबूझकर गैर जाट प्रत्याशी योगेश्वर दत्त को इस चुनाव में उतारा है। जबकि कांग्रेस और इनैलो के प्रत्याशी जाट हैं। दरअसल, यहां से एक असरदार जाट नेता डॉ कपूर नरवाल और जोगिन्दर मोर ने नामांकन दाखिल किया था लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने प्रभाव से उन दोनों को कांग्रेस के पक्ष में नामांकन वापस कराया। भाजपा यह उम्मीद कर रही थी कि तमाम जाट उम्मीदवारों के बीच उनका गैर जाट प्रत्याशी निकल जाएगा। यहां एक राजनीतिक विश्लेषण और भी निकल कर आ रहा है कि भाजपा हरियाणा में लगातार जाट राजनीति को प्रभावहीन करने में लगी है। हरियाणा में वह किसी न किसी गैर जाट नेता के नेतृत्व में आगे बढ़ती रही है। परंपरागत रूप से बरोदा जाट प्रभावी कांग्रेस सीट रही है। अप्रैल में यहां से कांग्रेस विधायक कृष्ण हुड्डा के निधन के बाद यह उपचुनाव हो रहा है। लेकिन त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा को यह सीट बहुत भारी पडऩे जा रही है।

मेरा आखिरी चुनाव

बरोदा में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा गांवों में हो रही रैलियों में बस एक ही बात कह रहे हैं कि मेरा यह आखिरी चुनाव है। उसके बाद अगली पीढ़ी मोर्चा संभालेगी। हुड्डा के इस बयान का संकेत बरोदा में लगे पोस्टरों में मिलता है। बरोदा में कांग्रेस के हर पोस्टर में दीपेंदर सिंह हुड्डा मौजूद हैं।

राज्यभर से बरोदा पहुंचे कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता भी दीपेंदर को अपना भावी नेता स्वीकार कर चुके हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपनी रैलियों में यह भी कहा कि यह उपचुनाव मेरी इज्जत का सवाल है। हमें कृष्ण हुड्डा की सेवाओं को याद करके कांग्रेस के मौजूदा प्रत्याशी को वोट देना चाहिए।यहां पर कांग्रेस आलाकमान ने प्रत्याशी को टिकट भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सिफारिश पर दिया है। इसी से संकेत मिलता है कि बरोदा उपचुनाव के बाद दीपेंदर को कांग्रेस हरियाणा में अगला नेता प्रोजेक्ट कर देगी।

देवीलाल खानदान भी बरोदा में

बरोदा में पूरा देवीलाल खानदान अलग-अलग प्रत्याशियों के लिए वोट मांगता घूम रहा है। देवीलाल के पुत्र और मौजूदा मंत्री रणजीत सिंह भाजपा प्रत्याशी योगेश्वर दत्त के लिए वोट मांगते घूम रहे हैं। रणजीत सिंह चूंकि जमीनी नेता कभी नहीं रहे, इसलिए उनके चुनाव प्रचार की अपनी समस्याएं हैं।

इसी तरह ओमप्रकाश चौटाला के बेटे अजय चौटाला और उनके पोते भी भाजपा प्रत्याशी के लिए वोट मांगते घूम रहे हैं। लेकिन किसान विरोधी कानूनों पर घिरने के बाद जिस तरह दुष्यंत चौटाला का रवैया रहा है, उससे उन्हें दिक्कत हो रही है। इसी तरह पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला इनैलो प्रत्याशी जोगेंद्र सिंह मलिक के लिए पिछले चार दिनों से वोट मांगते घूम रहे हैं। दरअसल, उनके प्रचार में कूदने से यह चुनाव और भी दिलचस्प हो गया है। चौटाला मतदाताओं से कह रहे हैं कि हमारा प्रत्याशी अगर बाकी दोनों से 21 हो तो वोट देना, अगर 19 हो तो वोट मत देना। ओमप्रकाश चौटाला ने हुड्डा के बाद सबसे ज्यादा भीड़ खींची है। इस तरह बरोदा में देवीलाल खानदान की इज्जत भी दांव पर लग गई है।

कैसे असाधारण है उपचुनाव

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ जब हरियाणा में किसान सडक़ों पर निकल आये और उन पर पुलिस ने पीपली (कुरुक्षेत्र) में लाठियां बरसा दीं तो यह बड़ा मुद्दा बन गया। इस मुद्दे पर हरियाणा की खट्टर सरकार बचाव की मुद्रा में नजर आ गई। भाजपा के सारे मंत्री और विधायक सोशल मीडिया पर किसानों को लेकर प्रचार अभियान चलाने लगे। हरियाणा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने गोहाना में किसानों की ट्रैक्टर रैली निकालकर सरकार विरोधी किसान संगठनों को चुनौती देने की कोशिश की। तमाम राजनीतिक समीकरणों को भूल जाएं तो अकेले किसान ही इस उपचुनाव को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। हरियाणा और पंजाब के किसान बाकी राज्यों की तुलना में ज्यादा खुशहाल हैं।

मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों का विरोध भी संगठित रूप से इन दो राज्यों में हुआ है। हरियाणा के कई गांवों में तो किसानों ने गांव के बाहर पोस्टर लगाकर भाजपा और जेजेपी नेताओं के घुसने पर पाबंदी लगा दी थी। बरोदा में खेती ही रोजगार है। इसलिए इस उपचुनाव से पता चलेगा कि मोदी के किसानों से किए गए उन बड़े बड़े वादों को बरोदा के किसानों ने कितना महत्व दिया है।

इसी मायने में बरोदा असाधारण है। अगर यहां भाजपा जीती तो देशभर में भाजपा प्रचार करेगी कि हरियाणा के किसानों ने उसे सर्टिफिकेट दे दिया है। लेकिन भाजपा अगर हारी तो यही काम कांग्रेस भी दोहरायेगी। बिहार विधानसभा चुनाव के मुकाबले बरोदा उपचुनाव का महत्व कम नहीं है।

 

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Mazdoor Morcha
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