नटवर लाल किशन चंद की कहानी खत्म होने का नाम नहीं ले रही.

नटवर लाल किशन चंद की कहानी खत्म होने का नाम नहीं ले रही.
October 25 13:42 2020

 

फरीदाबाद (म.मो.) मजदूर मोर्चा ने गतांक में पाठकों को नटवरलाल किशनचंद के कुछ कारनामों के बारे में बताया था। इसी क्रम में मजदूर मोर्चा को इस ब्लैकमेलर द्वारा  पीड़ित रिटायर अधिकारी ने अपनी व्यथा सुनाई जिससे पाठकों को  मज़दूर मोर्चा अवगत करा रहा है।

बात वर्ष 2002 की है जब यहां एसएल श्रीवास्तव क्षेत्रीय उपायुक्त ग्रेड दो के पद पर कार्यरत था उस समय यह किशन चंद फरीदाबाद कार्यालय में हेड क्लर्क था और यूनियन में कार्यकारी प्रधान भी था। अपनी इस स्थिति का लाभ उठाते हुए इसने एक लेबर सप्लाई फर्म जो इसने अपनी पत्नी के नाम पर चला रखी थी, का ठेका शिवालिक ग्रुप की कंपनियों में ले रखा था। इस ठेके के कारण इसको शिवालिक ग्रुप की कंपनियों में पीएफ की चोरी का पूरा पता था। उस समय इसने एस एल श्रीवास्तव से मिलकर शिवालिक प्रिंट ग्रुप की कंपनियों द्वारा पीएफ चोरी की एक गुमनाम शिकायत श्रम मंत्रालय में दी थी।

मंत्रालय ने उसे भविष्य निधि के मुख्य कार्यालय में भेजकर उचित कार्रवाई करने को लिख दिया। मुख्य कार्यालय ने क्षेत्रीय कार्यालय को लिख दिया इसपर एस एल श्रीवास्तव ने दिनांक 9.04.2002 को शिवालिक प्रिंट ग्रुप की कंपनियों पर छापा मारने के लिए तीन-तीन इंस्पेक्टरों के 5 दस्ते बनाकर दिनांक 10.04.2002 को उन पर छापे डलवाए। इन छापों में पकड़े गए रिकॉर्ड के आधार पर दस्तों ने प्लॉट नंबर 21 सेक्टर 6 पर 2 करोड़ छप्पन लाख, प्लॉट नंबर 128, सेक्टर 24 पर 1 करोड़ 40 लाख, 15/1 मथुरा रोड पर 1 करोड़ 30 लाख, प्लॉट नंबर 128 सेक्टर 24 पर 65 लाख, प्लॉट नंबर 48 सेक्टर 6 पर 75 लाख 44 हजार की देनदारी निकालते हुए अपनी अपनी रिपोर्ट कार्यालय में दे दी।

इस रिपोर्ट में दस्तों ने श्रीवास्तव के दवाब में ओवरटाइम को भी शामिल कर लिया तथा उस पर भी देनदारी निकालते हुए लगभग 7 करोड़ रुपये की देनदारी कंपनी की तरफ निकाल दी। इन छापों में इंस्पेक्टर काफी रिकार्ड को जब्त करके कार्यालय में लेकर आये थे। इस 7 करोड़ की देनदारी को देखकर कंपनी को पसीना आ गया। इस पर योजनानुसार ये नटवरलाल शिवालिक की मैनेजमेंट के पास पहुंचा तथा एस एल श्रीवास्तव से अपने संबंधों एवं यूनियन के पदाधिकारी का रुतबा दिखाकर  मैनेजमेंट को भरोसा दिला दिया कि वह श्रीवास्तव से मिलकर इस देनदारी को खत्म करवा देगा। इसके इसने श्रीवास्तव से मैनेजमेंट की बात करवाई तथा सौदेबाजी करने पर मैनेजमेंट से एक अपील डलवाई कि उन्हें व्यक्तिगत सुनवाई का मौका दिया जाए।

इसके बाद तय सौदे के अनुसार मैनेजमेंट ने इस देनदारी को अनुचित बताते हुए रिकॉर्ड की पुन:जांच करने की अपील की। जिस पर श्रीवास्तव ने सभी प्लांटों के रिकॉर्ड की पुन: जांच के लिए अलग-अलग इंस्पेक्टरों की टीम बना दी। इस दौरान इसी किशन चंद की देखरेख में नया रिकॉर्ड तैयार करवाया गया। जिसके आधार पर पहले निकाली गई लगभग 7 करोड़ की राशि से महज 40 लाख दिखा कर रिपोर्ट बनाकर कार्यालय में जमा करवा दी। नई टीमों द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में  निर्धारित की गई राशि को भी एक योजना के तहत कंपनी द्वारा चुनौती दिलवाई गई। जिस पर पीएफ एक्ट के सेक्शन 7 के अंतर्गत सुनवाई का नाटक शुरू करवा दिया गया।

इस सुनवाई द्वारा चार प्लांटों के केसों को तो इन दोनों ने मिलकर नाममात्र की देनदारी निकलवाकर खत्म करवा दिया। लेकिन प्लाट नम्बर 48 सेक्टर 6 वाली कंपनी का मामला अभी निपट नही सका था कि श्रीवास्तव का फरीदाबाद से वर्ष 2003 में ट्रांसफर हो गया। इस सुनवाई के दौरान ही इंस्पेक्टरों द्वारा जब्त करके कार्यालय में लाया रिकार्ड भी रहस्यमय तरीके से गुम हो गया जो आजतक गुम ही बताया जाता है। जबकि उसके गुम होने की गहन जांच होनी चाहिए थी । इस सारे नाटक के दौरान कंपनी को किशन चंद व श्रीवास्तव की सांठगांठ का पता चल चुका था।  इसलिए कंपनी ने इसका ठेका कंपनी से खत्म कर दिया तथा अपने बचे हुए केस से इसकी भूमिका भी खत्म कर दी। इस पर इसने जांच अधिकारी व इंस्पेक्टरों को धमकी देते हुए कहा कि वह इस घपले की शिकायत विजिलेंस में करेगा। इस पर इसके पिछले ट्रेक को देखते हुए किसी इंस्पेक्टर व जांच अधिकारी की हिम्मत नही हुई कि वह जांच को निष्कर्ष पर पहुंचाए। 2005 में  श्रीवास्तव फिर फरीदाबाद में ट्रांसफर करवा लाया अब  श्रीवास्तव ने इसे मुंह लगाना बंद कर दिया था। इस पर किशन चंद श्रीवास्तव की भी शिकायत करने लगा। इन शिकायतों से तंग आकर श्रीवास्तव ने फरवरी 2006 में  इसके कार्यालय में बिना अनुमति के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी। कंपनी वालों ने श्रीवास्तव पर बची हुई एक जांच को भी बंद करवाने का दबाव बनाया जिसके लिए कम्पनी ने  उसे वर्ष 2002 में ही भारी रकम दे चुकी थी।

इस पर श्रीवास्तव  ने 3 इंस्पेक्टरों ओपी चौधरी, राजरानी व नारायण सिंह सैनी की नई टीम बनाकर उन्हें शीघ्र रिपोर्ट देने को कहा। उधर कंपनी को मजबूरी में इसको फिर मनाना पड़ा ताकि ये केस को निपट जाने दे। इसलिए अब ये फिर बिचौलिये की भूमिका में आ गया। जांच टीम ने श्रीवास्तव के दबाव के चलते कंपनी व किशन चंद  द्वारा  बनाए गए फर्जी रिकॉर्ड के आधार पर 17.04.2007 को अपनी रिपोर्ट दी। जिसमे पहले रिकार्ड के आधार पर  निकाली गई राशि 75 लाख से घटाकर मात्र 3 लाख छह हजार करते हुए रिपोर्ट जमा करवा दी।

इस जांच के दौरान जब भी इंस्पेक्टर कंपनी गए  किशन चंद वहाँ मौजूद मिला तथा इसी की देखरेख में सारा मामला निपटाया गया था इसलिए उसे पूरे लेनदेन की जानकारी थी। इस रिपोर्ट पर जांच टीम के एक इंस्पेक्टर नारायण सिंह सैनी, जो किशन चंद का खास था, को किशनचंद ने चुपचाप मना कर दिया कि वह इस पर हस्ताक्षर ना करें। इस पर सैनी बहाना बनाकर कार्यालय से निकल गया तथा एसएल श्रीवास्तव ने ओपी चौधरी व राजरानी को धमकाकर हस्ताक्षर करवा कर रिपोर्ट ले ली।  इस रिपोर्ट के आधार पर श्रीवास्तव ने सहायक आयुक्त वीके गुप्ता जो जांच अफसर था, पर दबाव डालकर महज 3 लाख 6 हजार  में मामला खत्म करवा दिया। मामला खत्म होते ही कंपनी ने श्रीवास्तव के कहने पर इस किशनचंद को फिर बाहर का रास्ता दिखा दिया। इस पर इसने इंस्पेक्टरों व श्रीवास्तव को धमकी दी कि अब वो इस मामले की शिकायत सीबीआई में करेगा। इस धमकी से डरकर तथा इसके पिछले ब्लैकमेलिंग के इतिहास को देखते हुए दोनों इंस्पेक्टर इसके घर जाकर इसे पैसा भी दे आये। ताकि ये शिकायत न करे लेकिन उनसे पैसे लेने के बाद भी इस मामले की शिकायत इसने सीबीआई में कर दी। जिसे सीबीआई ने जांच के लिए विभाग के सतर्कता अधिकारी को दे दिया।

जांच में सतर्कता विभाग ने अनियमितता पाई तथा मामले की पीएफ एक्ट के सेक्शन 7 बी एवं सात सी के अंतर्गत पुन: सुनवाई की सिफारिश कर दी। पुन: सुनवाई शुरू होते ही  कंपनी ने फिर इस से संपर्क किया और इसे मुंह बंद करने के पैसे भी दिए ताकि यह मामले को निपट जाने दे। इसके बाद वर्ष 2007 से 2018 तक अनेकों जांच टीमें बनाई गई लेकिन किसी भी इंस्पेक्टरों की टीम ने इस ब्लैकमेलर के डर से रिपोर्ट नहीं दी। न ही किसी सहायक आयुक्त की हिम्मत हुई कि वह इस मामले को निपटा दे तथा रिपोर्ट न देने पर कई इंस्पेक्टरों को माइनर चार्ज लगाकर चार्जशीट भी हुई।

उधर जांच में अनियमितता मिलने पर दोनों इस्पेक्टर ओपी चौधरी व  राजरानी को चार्जशीट हो गई जिन्हें रिटायरमेंट के 10 साल बाद भी उनकी ग्रेच्युटी नहीं मिल पाई है। अब यह नटवरलाल कंपनी की तरफ से जांच में पेश होने लगा। मुख्य कार्यालय के दबाव डालने पर एक नए आए सहायक आयुक्त ने हिम्मत करके इस मामले की सुनवाई की इस सुनवाई में यही शिकायत कर्ता किशन चंद अब कंपनी की तरफदारी में पेश होने लगा करके कंपनी पर लगभग तथा इसने इन्क्वारी ऑफिसर पर बहुत दबाब बनाया। लेकिन इन्क्वारी ऑफिसर ने कंपनी पर 60 लाख की देनदारी निकाल दी । इसके बाद  यही किशनचंद मामले को कंपनी की तरफ से सी जी आई ट्रिब्यूनल ले गया जहां अब यह मामला विचाराधीन है ।

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Mazdoor Morcha
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