जगन्नाथ के गुंडों ने बहुत बेरहमी से पीट-पीट कर बुरी तरह से घायल कर दिया। अनेकों के सिर फटे व हाथ पैर टूटे। उस वक्त मैं भी सीटू मज़दूरों के साथ खड़ा था  और उस हल्ले से इस कदर डर गया था कि भाग ही नहीं सका और जहां का तहां खड़ा रह गया…

जगन्नाथ के गुंडों ने बहुत बेरहमी से पीट-पीट कर बुरी तरह से घायल कर दिया। अनेकों के सिर फटे व हाथ पैर टूटे।  उस वक्त मैं भी सीटू मज़दूरों के साथ खड़ा था  और उस हल्ले से इस कदर डर गया था कि भाग ही नहीं सका और जहां का तहां खड़ा रह गया…
October 19 06:56 2020

गुंडई में ऑटो-पिन मालिकान अव्वल दर्जे पर रहे हैं

सतीश कुमार  (सम्पादक : मजदूर मोर्चा)

एनआईटी औद्योगिक क्षेत्र में स्थित ऑटो-पिन मालिकान अपने यहां कार्यरत मज़दूरों का शोषण व प्रताडऩा करने में किसी गुंडे से कम नहीं रहे। हिन्द मज़दूर सभा का झंडा लगने से पूर्व यहां के मज़दूरों ने सीटू का झंडा लगाने का भी प्रयास किया था। योजना यह थी कि सीटू से जुड़े मज़दूर एक शाम को प्याली चौक मैदान में एकत्र होंगे और वहां से जुलूस लेकर ऑटो-पिन गेट पर उस वक्त पहुंचेंगे जब वहां के मज़दूरों की शिफ्ट समाप्त होगी। सीटू से जुड़े सैंकड़ों मज़दूर वहां एकत्र हुए कि अचानक तीन ट्रकों में भर कर लाठी डंडों व तलवारों से लैस होकर सैंकड़ों गुंडे वहां पहुंचे। उनका नेतृत्व बीएमएस से ऑटो पिन यूनियन के प्रधान जगन्नाथ गेरा कर रहे थे। इन हथियार बंद गुंडों ने ट्रकों से उतरते व ललकारा मारते हुए पूरे ज़ोर से ऐसा हल्ला बोला कि मैदान में शान्ति से खड़े सीटू मज़दूरों में भगदड़ मच गयी। भागते हुए मज़दूरों को जगन्नाथ के गुंडों ने बहुत बेरहमी से पीट-पीट कर बुरी तरह से घायल कर दिया। अनेकों के सिर फटे व हाथ पैर टूटे।

उस वक्त मैं भी सीटू मज़दूरों के साथ खड़ा था  और उस हल्ले से इस कदर डर गया था कि भाग ही नहीं सका और जहां का तहां खड़ा रह गया। मेरे साथ खड़े लोग भाग रहे थे और हमलावर उनका पीछा कर रहे थे और उस भगदड़ में मैं किंकत्र्तव्य विमूढ बना खड़़ा था। हमलावरों ने जरूर यही समझा होगा कि जो चुपचाप खड़ा है वह ऐसे ही कोई तमाशबीन होगा या फिर उनके निशाने पर केवल जान बचा कर भागते लोग थे। चाहे कुछ भी रहा हो मैं साफ बच गया। ‘युद्ध’ समाप्त होने के बाद मैं अन्य साथियों के साथ मिल कर घायलों को सम्भालने व बीके अस्पताल पहुंचाने में जुटा।

अस्पताल में थाना एनआईटी के तत्कालीन एसएचओ सीस राम पूरे दल-बल के साथ लीपा-पोती करने पहुंचे। उस वक्त रेलवे लाइन के पश्चिम की ओर केवल एक ही थाना एनआईटी होता था। घायलों की दुर्दशा, फटी हुई खोपडिय़ां टूटे हुए हाथ-पैर देख कर एसएचओ ने आईपीसी की सबसे कमज़ोर धाराओं (323,506) का केस दर्ज किया। टूटे हाथ-पैरों के लिये एसएचओ का कहना था कि एक्सरे के बाद यदि जरूरी होगा तो अन्य धारा लगाई जायेगी। फटी हुई खोपडिय़ों के बारे इसका कहना था कि यह तलवार का नहीं लाठी का घाव है यानी कुंद हथियार की घाव है। जाहिर था कि मामले में न कुछ होना था और न ही हुआ।

उधर ऑटो पिन मालिकान मज़दूरों के शोषण में बेरोक-टोक जुटा रहा। उसने कुछ औद्योगिक प्लॉट सेक्टर 6 में खरीद कर वहां भी काम शुरू कर दिया था। कुछ समय बाद उन्हीं नये प्लॉटों में से एक के प्रताडि़त मज़दूर सीटू कार्यलय पहुंचे। यद्यपि कुछ समय पूर्व हम ऑटो पिन पर भयंकर गच्चा खा चुके थे लेकिन हिम्म्त नहीं हारी और सिरॉको नाम से बनाये गये प्लांट के गेट पर मज़दूरों के साथ जा डटे। इस बार यहां धरने पर बैठे मज़दूरों के कम्पनी मालिक सरदार अवतार सिंह ने अपनी सरदारी का जलवा दिखा दिया। उसने पंजाब से निहंग सिख बुलाकर अपनी फैक्ट्री में बैठा दिये। एक रात निहंगों ने मज़दूरों पर हमला कर दिया, उन्हें बुरी तरह से मारा-पीटा उनके बैनर व तम्बू आदि सब जला दिये। अगले दिन पुलिस आई, भीतर बड़े मजे से आराम फरमा रहे निहंगों को देखा भी लेकिन गिरफ्तारी कोई नहीं की गयी; केवल कुछ कागजी खानापूर्ति करके काम को टरका दिया गया। जाहिर है उसके बाद वहां यूनियन तो न बन सकी परन्तु कम्पनी भी ठीक ढंग से पनप नहीं पाई।

वेतन के लिये घेराव की नीति से उत्साहित मज़दूरों ने संगठित होकर अपनी अन्य जायज मांगों को उठाना शुरू किया तो एक दिन, शायद वेतन देने वाले दिन कम्पनी गेट पर ताला लगा कर एक नोटिस चस्पा कर दिया कि जो मज़दूर कम्पनी की शर्तों वाला फार्म भर कर काम पर आना चाहते हैं, वे आ जायें। लेकिन कम्पनी की ओर से फार्म उपलब्ध नहीं कराये गये थे। ऐसे में एचएमएस नेतृत्व ने नीतिगत फैसला लेते हुए खुद ही फार्म छपवा कर व भर कर श्रम विभाग को दे दिये। अक्सर मालिकान अपनी नाजायज तालाबंदी को जायज बनाने के लिये इस तरह का हथकंडा अपनाते हैं। फार्म पर दस्तखत करने से मज़दूर घबराते हैं और तालाबंदी को वैधता मिल जाती है। यही सोच कर कम्पनी ने फार्म छपवाने का खर्च भी बचाना चाहा था। परन्तु इस बार मालिकान गच्चा खा गये जब मज़दूरों ने खुद से फार्म छपवा कर व भर कर दे दिये। परिणाम स्वरूप करीब तीन माह तक चली तालाबंदी अवैध घोषित हुई और कम्पनी को इस अवधि का पूरा वेतन देना पड़ा। यह अपने आप में एक मिसाल थी, न इससे पहले न इसके बाद किसी ने ताला बंदी का वेतन लिया-दिया।

इसी दौर में कम्पनी के भीतर स्थित एक खौलते पानी के हौद में गिर कर एक मज़दूर की मौत हो गयी। मज़दूर नया-नया हेल्पर लगा था, ईएसआई का कवरेज तक उसका हुआ नहीं था। हौद में गिरा इस लिये था कि सुरक्षा के लिये आवश्यक बाड़ाबंदी तो की नहीं गयी थी, उल्टे वहां फिसलन ऐसी थी कि वह फिसल कर गिर गया और आलू की तरह उबल गया। कम्पनी ने तुर्त-फुर्त लाश को उसके गांव भेजने का प्रबन्ध करके मामले को दबाना चाहा था, दबा भी लेती यदि पहले वाली जेबी यूनियन होती तो। परन्तु अब यहां एक सशक्त यूनियन खड़ी हो चुकी थी, लिहाजा शव को गेट के बाहर रख कर मज़दूरों ने काम बंद कर दिया। पुलिस आई केस दर्ज हुआ। मृतक के परिजनों को बुलाया गया और उस वक्त के हिसाब से अच्छा-खासा मुआवजा उसके परिजनों को दिलवा कर मामला निपटाया गया।

इन सब घटनाओं के दौरान इन्हीं मालिकान की सेक्टर 6 स्थित आटोग्लाइड नामक फैक्ट्री के 100 से अधिक मज़दूरों ने एचएमएस कार्यालय में आकर बताया कि उन्हें दो-दो महीने तक वेतन नहीं दिया जा रहा है। वहां यूनियन बनी झंडा लगा। मालिकान ने वेतन देने की बजाय तालाबंदी कर दी। मज़दूरों ने हिसाब मांगा तो वह भी देने से सा$फ इन्कार कर दिया, घोषित कर दिया कि उसके पास देने को कुछ है ही नहीं। मज़दूरों के लिये यह बड़ी मुश्किल घड़ी थी, आखिर कब तक गेट पर बैठ कर भूखों मरते, अपने घरोंदों के किराये भरते? लिहाज़ा एक दिन मज़दूरों ने निर्णय लिया कि जिनके लिये संभव हो वे अपने बाल-बच्चों को लेकर कम्पनी के भीतर ही रहने लगें और कम्पनी से कोई माल बाहर न जा पायें। दरअसल मालिकान की मंशा थी कि कम्पनी के भीतर पड़े माल व खाली बिल्डिंग को बेचे कर चलता बने। लेकिन जब मज़दूरों के आठ-दस परिवार अपनी गाय-भैंस तक लाकर कम्पनी के भीतर काबिज हो गये तो मालिकान के लिये मुश्किल घड़ी आ गयी। कुछ अच्छे पुलिस अधिकारियों के चलते पुलिस ने भी यह कहते हुए हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया कि मज़दूरों का हिसाब करो।

आखिर मज़बूर होकर मालिकान को तमाम मज़दूरों का हिसाब बनाना पड़ा। तय यह हुआ कि कम्पनी के भीतर से जो माल आयेगा वह यूनियन की निगरानी में बिकेगा और वह पैसा मज़दूरों को दिया जायेगा। इस तरह ट्रक दर ट्रक निकलते गये और मज़दूरों का हिसाब होता गया। लेकिन मालिकान इसे अपनी शर्मनाक हार मान कर सदैव मौके की तलाश में रहते थे। इस बीच यहां एसपी स्वर्णजीत सिंह की जगह चौटालों का ‘शेर’ शमशेर सिंह एसपी तैनात हो गया। मालिकान की सांठ-गांठ सफल हुई और एक शाम को जब वहां मौजूद अधिकांश मज़दूर चले गये और मैं भी निकल ही रहा था कि पुलिस की शह पर मालिकान के गुंडों ने लाठी-डंडों से जबरदस्त हमला कर दिया। बचे-खुचे चंद मज़दूरों के साथ-साथ मेरी भी अच्छी-खासी पिटाई हो गयी थी। इसके बाद मालिकान ने फैक्ट्री का कब्ज़ा ले लिया और बचे रह गये आठ-दस मज़दूरों का हिसाब भी पी गये। बाद में पता चला कि मालिकान ने यह हमला करने से पूर्व मुख्य ऑटो पिन यूनियन के कुछ नेताओं को भरोसे में ले लिया था, वरना इस हमले की प्रतिक्रिया वहां बड़ी गंभीर हो सकती थी। कुछ ही दिन बाद मालिकान ने हमसे गद्दारी करने वाले नेताओं को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया। बेशर्म इतने थे कि माफी मांगते हुए वे फिर से एचएमएस दफ्तर आये और बोले कि वे सरदार के बहकावे में आ गये थे। परन्तु तब तक सब कुछ विखर चुका था।

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