पुलिस के साये में बलात्कार!

पुलिस के साये में बलात्कार!
October 19 06:43 2020

पुलिस के साये में बलात्कार!

विकास नारायण राय (पूर्व डायरेक्टर, नेशनल पुलिस अकादमी, हैदराबाद)

 

पुलिस को अपनी अथॅारिटी थोपने और आत्म-सम्मान की रक्षा की जितनी पड़ी होती है, काश उसका एक अंश वह पीडि़त के लिए भी दिखा पाती। जबकि कानून की किताबों और अदालती नजीरों में ऐसे क़ानूनों के ढेर लगे मिल जायेंगे जो पीडि़त की रक्षा और सम्मान पर जोर देते हैं। इनके प्रति पुलिसकर्मी की हर स्तर पर उदासीनता ही मुख्य वजह है जो पुलिस में अविश्वास को जन्म देती है; तभी उसकी समाज से खाई कम नहीं हो पा रही।

बलात्कार और जातिवादी चरित्र-हनन के बाद प्रशासन द्वारा क़ानून-व्यवस्था के नाम पर उसका तिरस्कारपूर्ण शवदाह भी; जिससे कमजोर समाज की हाथरस पीडि़त के बलात् शोषण के क्रम में सबल की राजनीति करने वालों के लिए भी तमाम संभावनायें निकल आयीं। यहाँ तक कि योगी शासन के कई बयानों ने तो पीडि़त   और उसके परिजनों को ही शक के कठघरे में खड़ा कर दिया। जाँच के नाम पर न जाने क्या छिपाना था कि हाथरस कवर करने जा रहे केरल के एक मुस्लिम मीडियाकर्मी और उनके साथियों पर यूएपीए तक ठोंक दिया गया।

मुंबई ललकार वाली कंगना रनौत की हाथरस चुप्पी के बीच 12 अक्तूबर को अदालत ने योगी के बड़बोले अफ़सरों से पूछ लिया, अगर आपकी लडक़ी होती तब भी क्या परिवार से छिपाकर रात में अंतिम संस्कार करते? अब अफ़सर भी चुप रहे। एक से बढक़र एक बलात्कारी को पहले भी चरित्र प्रमाणपत्र दिया गया है; तो हाथरस में ही किसी ने ऐसा क्या गज़़ब कर दिया कि शासन या पार्टी के चेहरों को चुप्पी तोडऩी पड़े?

इसका एक जवाब दिल्ली से बमुश्किल 50 किलोमीटर दूर हरियाणा के बुटाना में मिलेगा। वहाँ पुलिस की ग़ैर क़ानूनी हिरासत में नाबालिग दलित लडक़ी पर चार दिन हुए हैवानी टार्चर और बलात्कार पर तीन महीने से पूर्ण चुप्पी रखने की राजनीति चल रही है। क्योंकि विधानसभा उप चुनाव सर पर है और राजनीतिक दल बहुसंख्यक जाट समुदाय की खाप भावनाओं पर प्रश्न नहीं कर सकते।

30 जून की रात गोहाना-जींद मार्ग पर बुटाना गाँव के बाहर, कमजोर समुदाय के लडक़े-लडक़ी ने उनके बीच में ज़बर्दस्ती दख़ल दे रहे दो पुलिसकर्मियों की बलात्कार की मंशा के आगे समर्पण से इंकार कर उनका मुक़ाबला किया। उनमें से एक जब ज़बर्दस्ती लडक़ी के शरीर पर चढ़ गया तो लडक़े ने उसकी गर्दन में चाकू मार दिया। फिर दूसरे के साथ उसकी उठा पटक हुयी तो उसे भी। दोनों मारे गए।

क़ानूनी रूप से, लडक़े ने अपने और लडक़ी के बचाव में जो किया वह आईपीसी की 96 से 106 तक धाराओं के तहत ‘आत्मरक्षा’ के अधिकार की श्रेणी में आता है और, लिहाज़ा, अपराध नहीं माना जा सकता। हालाँकि, यह इन्वेस्टिगेशन का विषय होना चाहिए था लेकिन 15 घंटे बाद ही लडक़े को पुलिस से मुठभेड़ दिखाकर मार दिया गया। साथ ही अब मानो पुलिस को लडक़ी से बलात्कार का लाइसेन्स भी मिल गया। ऊपर से निज़ाम का शिकंजा ऐसा कि घर वाले आज तक सिर्फ़ एक बार लडक़ी से जेल में मिल सके हैं।

राजनीति के खट्टर, हुडा, दुष्यंत जैसे प्रादेशिक खिलाड़ी तो एक तरफ़ रहे, अमित शाह, राहुल-प्रियंका, रावण और संजय सिंह को भी भूल जाइये; इन्हें हाथरस प्रसंग में अपने-अपने अन्दाज़ में ललकारने वाले मीडिया के अर्नब-रजत से लेकर रवीश कुमार तक की बुटाना प्रकरण पर बोलती एक समान बंद रही है। दुर्गा वाहिनी, लव जिहादी, कंगना रनौत और स्मृति ईरानी को भी छोडिय़े, वाम के एडवा और एपवा कहाँ हैं? वायर और न्यूज़ क्लिक? तनिश्क विज्ञापन में सुखी हिंदू-मुस्लिम मिश्रित परिवार के समर्थक?

 

 

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