राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, सुनील दत्त, विनोद खन्ना, जयाप्रदा समेत कई दिग्गज सितारे राजनीति में अपने हाथ जलाकर लौट गए हैं, कंगना का भी एक और प्रयोग सही

राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, सुनील दत्त, विनोद खन्ना, जयाप्रदा समेत कई दिग्गज सितारे राजनीति में अपने हाथ जलाकर लौट गए हैं, कंगना का भी एक और प्रयोग सही
September 17 14:09 2020

यूसुफ किरमानी (वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक)

 

मुम्बई में यह हफ्ता रोमांचकारी रहा। लोग झूठ नहीं कहते हैं कि फिल्मों में राजनीति से ज्यादा चकाचौंध है। लेकिन इस रोमांच और चकाचौंध में गोदी मीडिया और सोशल मीडिया के कूदने से रोमांच डबल हो गया। इसी रोमांच का नतीजा है कि भाजपा राजनीतिक रूप से फिल्मी लोगों के मोहपोश में जकड़ती चली जा रही है। भाजपा के फिल्मी रोमांच या मोहपाश में पहुंचाने के लिए जहां गोदी मीडिया ने अहम भूमिका अदा की, वहीं इस रोमांच की परतें उघाडऩे में सोशल मीडिया ने कमाल कर दिया। दोनों तरफ से लक्ष्मण रेखा पार की गई।

सुशांत सिंह राजपूत खुदकुशी केस में विलेन बना दी गई रिया चक्रवर्ती इसी हफ्ते गिरफ्तार कर ली गईं और अगले दिन कंगना रणौत के दफ्तर पर मुम्बई में बीएमसी ने जेसीबी चला दी। इसके बाद तो गोदी मीडिया और सोशल मीडिया पहली बार आमने-सामने आये और एक दूसरे पर तीखे ढंग से हमलावर हुए। मानना पड़ेगा कि गोदी मीडिया की विश्वसनीयता तार-तार हो गई।

हालांकि इससे ज्यादा गंभीर मुद्दे देश में हैं, जिन पर चर्चा की जानी चाहिए। लेकिन दरअसल जनता गंभीर मुद्दों पर चर्चा चाहती ही नहीं, इसलिए दोनों माध्यमों ने अब अपनी-अपनी मंजिल तय कर ली है। उसी का नतीजा है कि 10 सितंबर को हरियाणा के पीपली में किसानों को पीटा गया लेकिन इस खबर को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने पूरी तौर पर गायब कर दिया। अरनब और अंजना ओम कश्यप गैंग चाहता है कि दो दिन में फैसला आ जाये और रिया को सजा-ए-मौत सुना दी जाए। वह यह भी चाहता है कि कंगना को इंसाफ तभी मिलेगा जब उद्धव ठाकरे की सरकार गिरा दी जाए या बर्खास्त कर दी जाए। यानी रोमांच की बिसात बिछा दी जाए, फसल तो गोदी मीडिया और सोशल मीडिया काट ही लेंगे।

एक्टर सुशांत सिंह राजपूत ने 14 जून को अपने मुम्बई स्थित घर में जान दी थी। सत्ता पक्ष को जब लगा कि इसे बिहार चुनाव तक मुद्दा बनाया जा सकता है तो इशारा कर दिया गया। इसके बाद तो कहानी के किरदार बदलते गए। जिन्हें कंगना रणौत की गतिविधियों की खबर होगी, उन्हें याद होगा कि सुशांत की मौत को हत्या बताने वाली पहली हस्ती कंगना ही थी। इसकी आड़ में कंगना ने बॉलिवुड से अपना कथित बदला लेना शुरू किया। क्वीन फिल्म की ऐक्ट्रस को आईटी सेल ने झांसी की रानी बनाकर पेश कर दिया। सोशल मीडिया ने बता दिया कि झांसी की फिल्मी रानी को सरकार ने एक रणनीति के तहत वाई श्रेणी की सुरक्षा दी है।…और बहुत जल्द वह सच सामने आ गया, जब कंगना ने एक रणनीति के तहत शिवसेना और खासकर उद्धव ठाकरे के खिलाफ बोलना शुरू किया। कंगना ने 10 सितम्बर को उद्धव के लिए जिन अपशब्दों का इस्तेमाल किया, उनके वो बोल वाई सुरक्षा मिलने के बाद ही फूटे। अगर सीआरपीएफ जवानों के घेरे में कंगना न चल रही होतीं तो शिवसैनिक उन्हें मुम्बई छोडऩे पर मजबूर कर चुके होते। सोशल मीडिया ने ही यह बताया कि देश में लोगों की मौत कोरोना से हो रही है। अस्पतालों में इलाज का इंतजाम नहीं है और सरकार करोड़ों रुपये एक ऐक्ट्रेस की सुरक्षा पर खर्च कर रही है।

गोदी मीडिया करीब दो महीने से नित नई कहानियों के साथ सुशांत की मौत को जिन्दा रखे हुए है। रिया के सहारे गोदी मीडिया ने कहानियां तो गढ़ीं लेकिन सोशल मीडिया ने उसके मीडिया ट्रायल की धज्जियां उड़ा दीं। चूंकि कंगना भी बीच-बीच में कूदकर आ रही थीं तो सारा युद्ध गोदी मीडिया बनाम सोशल मीडिया हो गया। गोदी मीडिया और पूंजीपतियों के अखबारों ने देश की जनता को यह नहीं बताया कि सुशांत की हत्या या खुदकुशी की जांच के लिए जुटी केंद्रीय जांच एजेंसियों सीबीआई, ईडी (राजस्व निदेशालय) और एनसीबी (नॉरकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो) दरअसल इस मामले में कुछ साबित नहीं कर पाये। एनसीबी ने नशीली दवाओं के जिस आरोप में रिया चक्रवर्ती, उसके भाई और भाई के दोस्त को गिरफ्तार किया है, उस मामले में भी किसी तरह की बरामदगी एनसीबी ने उनके घरों से नहीं की है। बल्कि रिया ने अपने बयान में साफ -साफ कहा है कि उसने एनसीबी को ड्रग्स के मामले में कोई बयान नहीं दिया है। इसी तरह 15 करोड़ का भुगतान हड़पने का मामला झूठा निकला। सोशल मीडिया ने स्वतंत्र पत्रकारों और छोटे-छोटे न्यूज पोर्टल के सहारे बता दिया कि सुशांत की दुखद मौत की बिसात पर किस तरह देश की सत्तारूढ़ सरकार सिर्फ बिहार चुनाव जीतने के लिए सारे करतब कर रही है।

यह सोशल मीडिया ही था जिसने बताया कि देश के फर्जी राष्ट्रवादी ऐंकर अरनब गोस्वामी, नाविका कुमार, रुबिना लियाकत, अंजना ओम कश्यप, दीपक चौरसिया, रोहित सरदाना, अमीश देवगन वगैरह जिस तरह कंगना का दफ्तर तोड़े जाने पर हायतौबा मचा रहे हैं, ये तब कहां थे जब जेएनयू में कुछ गुंडों ने घुसकर हॉस्टलों पर हमले किए थे, जब जामिया की लाइब्रेरी में घुसकर दिल्ली पुलिस ने न सिर्फ स्टूडेंट्स को पीटा बल्कि वहां काफी नुकसान भी पहुंचाया था, जब एएमयू के हॉस्टलों और स्टूडेंट्स पर वर्दीधारियों ने कथित तौर पर हथगोले फेंके थे। जुल्म और फासिस्ट दौर की यह दास्तान लंबी है।

जिस तरह किसी मोर्चे पर दोनों तरफ के जवान पोजिशन ले लेते हैं, ठीक उसी तरह गोदी मीडिया और सोशल मीडिया ने अपनी पोजिशन संभाल ली है। सरकार प्रायोजित सुशांत की खबरों में जब गोदी मीडिया रस भरने में मशगूल था, उसी समय सोशल मीडिया ने रिया चक्रवर्ती को अदालत में पेश किए जाते समय की वो तस्वीरें दिखाईं जो टीवी से गायब थीं। 7 सितम्बर को मैंने इसे गिद्ध मीडिया की करतूत लिखा था। अगर किसी को याद हो तो उस तस्वीर में गोदी मीडिया भूखे भेडि़ए की तरह रिया पर टूट पड़ा था। मीडिया के लोगों ने उस लडक़ी के अंगों को भी छुआ। सब कुछ कैमरे में कैद हुआ। सोशल मीडिया की वजह से ही पूरे देश ने गोदी मीडिया के इस कृत्य के लिए लानत भेजी। यहां यह साफ करना जरूरी है कि फोटो जर्नलिस्ट कभी भी ऐसी घिनौनी हरकत नहीं करते, माइक संभाले ये लोग सरकार प्रायोजित खबरों को गढऩे वाले गैंग के लोग थे। इस मामले में बहुत साफ-साफ दिख रहा है कि यह सब दलाल मीडिया का सत्ता के साथ मिलकर बिहार चुनाव के लिए बुनी गई पेड चुनावी पत्रकारिता है।

अब फिर से कंगना पर लौटते हैं। इस देश को कंगना के रूप में नई नेत्री मिलने जा रही है। भाजपा के अनगिनत जाने-अनजाने चेहरे कंगना को स्थापित करने के लिए बेकरार हैं। लेकिन जब यह सब हो रहा है तो कंगना की हिप्पोक्रेसी भी सोशल मीडिया के जरिये सामने आ रही है। अचानक बाबर, कश्मीरी पंडितों, पीओके (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) को याद करने वाली कंगना के बयान पूरी तरह रणनीतिक हैं। यह बॉलिवुड का बहुत भला होगा कि कंगना को भाजपा अपना ले और परेश रावल की तरह उन्हें भी किसी संस्था का चेयरमैन वगैरह बना दे। वैसे हम आप जानते हैं कि सत्ता की अंधेरी सुरंग में पावर और प्रतिष्ठा को पाने की कोशिश में कहाँ कहाँ से गुजऱना पड़ता है। अभी इतना ही।…कंगना से जुड़ी कहानियाँ और अफ़वाहें जल्द सोशल मीडिया पर सामने आयेंगी। क्योंकि उन्हें दिखाने या छापने का साहस गोदी मीडिया में नहीं बचा है। राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, सुनील दत्त, विनोद खन्ना, जयाप्रदा समेत कई दिग्गज सितारे राजनीति में अपने हाथ जलाकर लौट गए हैं। कंगना का भी एक और प्रयोग सही।

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