पानीपत में चलाये गये सम्पूर्ण साक्षरता अभियान में से बचे रुपये जो अब बढकर दो करोड़ रुपये हो गये, पिछले 25 सालों से बैंकों में पड़े सड़ रहे हैं

पानीपत में चलाये गये सम्पूर्ण साक्षरता अभियान में से बचे रुपये जो अब बढकर दो करोड़ रुपये हो गये, पिछले 25 सालों से बैंकों में पड़े सड़ रहे हैं
August 31 11:10 2020

साक्षरता अभियान के दो करोड़ रुपये बैंकों में सड़ रहे

पानीपत में चलाये गये सम्पूर्ण साक्षरता अभियान में से बचे रुपये जो अब बढकर दो करोड़ रुपये हो गये, पिछले 25 सालों से बैंकों में पड़े सड़ रहे हैं। किसी को उनकी चिंता नहीं, कोई उनका सदुपयोग करने की नहीं सोच रहा। यह जानकारी एक आर.टी.आई. कार्यकर्ता ने बड़ी मुश्किल से हासिल की है।

इन्डिया पोस्ट अखबार के संपादक और हरियाणा सूचना अधिकार मंच के राज्य संयोजक सुभाष चन्द्र ने पिछले साल पानीपत प्रशासन से दो बिन्दुओं पर सूचना मांगी थी। प्रथम-1992 में पानीपत में भारत ज्ञान-विज्ञान समिति, पानीपत द्वारा चलाये गये साक्षरता अभियान जिसे पानीपत की चौथी लड़ाई नाम दिया गया था उसमें कुल कितने रुपये खर्च हुये और दूसरा उसमें जो पैसा बचा वो कितना था और उसका क्या किया गया? एक साल की लम्बी जद्दोजहद और राज्य सूचना आयोग से फटकार लगने के बाद इस साल जाकर यह जानकारी मिली।

ज्ञात हो कि राज्य सूचना आयोग के आदेश के बाद नगराधीश (सिटी मजिस्ट्रेट) पानीपत ने श्री ओमपाल सिंह तोमर, सेवानिवृत उप जिला शिक्षा अधिकारी एवं सचिव भारत ज्ञान विज्ञान समिति के हवाले से जानकारी दी कि पानीपत में सम्पूर्ण साक्षरता अभियान के लिये कितना पैसा आया यह सूचना उपलब्ध नहीं है। हां,  उस समय भारत ज्ञान विज्ञान समिति पानीपत ने इस अभियान के बाद जो बचा हुआ पैसा वापिस जमा कराया वह पैसा स्टेट बैंक ऑ$फ इन्डिया, मॉडल टाऊन, पानीपत में एक करोड़ 21 लाख 271 रुपये और पंजाब नेशनल बैंक में 78 लाख 64 हजार 727 रुपये ए$फडी के रूप में जमा है। यानी कुल मिला कर दो करोड़ रुपये आज भी बैंकों में जमा है, खातों में बंद है।हो सकता है 1994 में 10-12 लाख रुपये बचे हों जो बैंक में जमा करवाये गये हों, जो आज बढकर दो करोड़ रुपये हो गये।

सवाल यह है कि भारत ज्ञान विज्ञान समिति ने 1992 से 31 जनकरी 94 तक लगभग एक-डेढ साल में सैंकड़ों कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों के सहयोग से यह अभियान चला कर भी, लाखों बचे हुये रुपये वापिस जमा करा दिये लेकिन प्रशासन उन पैसों का कोई सदुपयोग उसके बाद भी 26 सालों तक नहीं कर पाया। वैसे समिति को भी चाहिये था कि वो प्रशासन को बाद में भी सम्पर्क करके इन पैसों के उपयोग के बारे में सलाह देती। यह घटना स्पष्ट उदाहरण है कि सि$र्फ स्वयं का ईमानदार होना ही का$फी नहीं है बल्कि इस पर नज़र रखना ओर इस बात के लिये सतत प्रयास करते रहना भी जरूरी है कि आपके ईमानदार प्रयासों का फल जरूरतमंदों तक पहुंचे। जैसे कि इस मामले में यह पैसा नवसाक्षरों को आगे पढाई और  रोजगार देने में इस्तेमाल किया जा सकता था। नव साक्षर महिलाओं को सिलाई मशीन और लड़कियों को साईकिल दी जा सकती थी। उन्हें पुस्तकालय स्थापित करने में भी खर्च किया जा सकता था।

विदित हो कि भारत सरकार ने 1990 में राष्ट्रीय साक्षारता मिशन कायम कर के उसके तहत हर राज्य में उसके कुछ जि़लों को सम्पूर्ण साक्षारता के लिये फंड दिये थे। हरियाणा के अन्य जि़लों में सरकारी कमेटियों ने ये जिम्मा लिया जहां पैसा खा पदका दिया गया, वहीं पानीपत में एक साल के भीतर एक करोड़ रुपये के खर्च में लगभग 66 प्रतिशत से ज्यादा आबादी को साक्षर कर के भी प्रोजेक्ट समाप्ति पर बाकि बचा पैसा सरकार को जमा करवा दिया। जो अब बढकर दो करोड़ रुपया हो चुका है। सरकार को चाहिये कि इस पैसे को लड़कियों और महिलाओं की साक्षरता के लिये खर्च करे।

               –अजातशत्रु

 

 

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