मजदूर मोर्चा ब्यूरो
फरीदाबाद: पूरे देश में भाजपा और संघ के कई नेता कोरोना की चपेट में आ गए हैं। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गूर्जर, हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता समेत कई विधायक, सांसद और नेता कोरोना का इलाज करवा रहे हैं। खास बात ये है कि इन सभी ने प्रधानमंत्री मोदी के कहने पर ताली-थाली बजाई थी, दिये जलाए थे।
कोरोना और जबरन लॉकडाउन की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था तो डूब ही रही है लेकिन जो सबसे ज्यादा चिंताजनक बात है कि प्रधानमंत्री मोदी ने ताली-थाली बजवाकर 21 दिनों में जो कोरोना भगाने का वादा किया था, वह 15 लाख रुपयों की तरह जुमला ही रहा। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन जैसी संस्था के सदस्य और डॉक्टर इस बात को साबित करने में जुट गए कि थाली बजाने से कोविड19 भारत से भाग जाएगा। लेकिन कोरोना तो भागा नहीं, अलबत्ता गृह मंत्री अमित शाह से लेकर खट्टर और कृष्णपाल तक इसकी चपेट में आ गए।
भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर समेत कई केंद्रीय मंत्रियों ने जनता को कोराना से छुटकारे के लिए गोमूत्र पीने और गोबर का सेवन करने की सलाह भी दी थी। लेकिन जब अमित शाह, खट्टर, कृष्णपाल कोरोना की चपेट में आये तो उन्हें किसी ने भी गोमूत्र पीकर कोरोना दूर भगाने की सलाह नहीं दी। दरअसल, ऐसे बयान सिर्फ इसलिए दिलवाए गए ताकि जनता का ध्यान डूबती अर्थव्यवस्था, बढ़ती भयावह बेरोजगारी, महंगाई, लचर कानून व्यवस्था की तरफ न जाए।
खुद जाते हैं फाइव स्टार अस्पताल में
जनता और सरकारी विभाग को छोटे मुलाजिमों की आंखों पर पट्टी बंधी हुई है। वह यह सवाल करने और पूछने को तैयार नहीं है कि खट्टर को जब कोरोना होता है या अमित शाह को जब कोरोना होता है तो वे गुडग़ांव के फाइव स्टार अस्पताल मेदांता में इलाज के लिए जाते हैं। भाजपा के विवादास्पद प्रवक्ता संबित पात्रा को जब मामूली खांसी-बुखार होता है तो वह भी मेदांता भागता है। हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज की टांग टूटती है तो वह हरियाणा छोडक़र पंजाब में इलाज कराते हैं। कृष्णपाल को कोरोना होता है तो प्राइवेट और सरकारी डॉक्टरों की फौज घर पर आ जाती है। लेकिन आम जनता और छोटे मुलाजिमों के लिए वही बीके अस्पताल है, वही गुडग़ांव का सिविल हॉस्पिटल है या फिर जींद की कोई सरकारी डिस्पेंसरी है। जहां कोरोना की टेस्टिंग की ठीक से व्यवस्था तक नहीं है। क्या खट्टर को, क्या विज को, क्या कृष्णपाल गूर्जर को अपने देश के सरकारी अस्पतालों पर भरोसा नहीं है ?
यह खबर कुल एक लाइन की है कि खट्टर या कृष्णपाल को कोरोना हो गया है। जिन नेताओं, मंत्रियों, विधायकों, सांसदों, मुख्यमंत्रियों को कोरोना हुआ है, मजदूर मोर्चा उनके शीघ्र स्वास्थ्य होने की उम्मीद करता है। लेकिन यह सवाल तो उठेगा ही कि हरियाणा या दूसरे राज्यों में यह विसंगति क्यों है कि जनता के इलाज के लिए नाकारा सरकारी अस्पताल हैं और वीआईपी लोगों के लिए मेदांता जैसा फाइव स्टार अस्पताल है। यहां यह याद दिलाना जरूरी है कि फर्जी गांधीवादी सत्याग्रही अन्ना हजारे का इलाज भी मेदांता में ही हुआ था।
क्या जमातियों को सताना महंगा पड़ा
देश में कोरोना जब फैला तो प्रधानमंत्री मोदी ने इसे अवसर बताया। उनके इस बयान के बाद दिल्ली में महिलाओं का शाहीनबाग आंदोलन इसकी आड़ में खत्म कराया गया। इसके बाद निजामुद्दीन में जमातियों के मरकज को आरएसएस, भाजपा, केंद्र सरकार और उसके भोंपू मीडिया ने टारगेट किया। मोदी मीडिया ने इस तरह की खबरें छापीं और टीवी पर दिखाईं जिनमें कहा गया कि मरकज ही कोरोना फैलाने का सेंटर है। पूंजीपतियों के अखबारों में रोजाना यह आंकड़ा छापा जाता था कि आज किस शहर में कितने जमाती पकड़े गए। इतना ही नहीं जमातियों से संबंधित दूसरी फर्जी खबरें भी प्रकाशित की गईं। मोदी मीडिया ने कभी इस सवाल को नहीं उठाया कि जिस रात मरकज निजामुद्दीन में प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल मौलाना साद से मिलने पहुंचे थे तो उस समय से मौलाना साद कहां गायब है। दिल्ली पुलिस का उनके खिलाफ वॉरंट है, लेकिन मौलाना पर पुलिस हाथ नहीं डाल पाई। मरकज में उस रात गलती से किसी फोटोग्राफर ने डोभाल, मौलाना साद और एक पुलिस अफसर के मुलाकात की फोटो खींच ली थी, अन्यथा यह मुलाकात गोपनीय बनकर रह जाती। मौलाना साद के आडियो बयान बाहर आते हैं लेकिन कोई नहीं जानता कि मौलाना को किस जगह छिपाकर रखा गया है।
हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस सिलसिले में आंखें खोलने वाला फैसला दिया। हाई कोर्ट ने विदेश से आये जमातियों के खिलाफ दर्ज सभी एफआईआर रद्द करने का आदेश दिया। हाई कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जमातियों के खिलाफ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने बेसिरपैर की खबरें छाप कर, दिखाकर मुसलमानों के खिलाफ माहौल बनाया। इसमें पुलिस समेत तमाम जांच एजेंसियां शामिल हैं। बॉम्बे हाई कोर्ट के इस आदेश से यह साफ हो गया कि कोरोना की आड़ में आरएसएस के एजेंडे के तहत मुसलमानों के खिलाफ जानबूझकर माहौल बनाया गया। लेकिन जब फर्जी खबरें फैलाने वाले पत्रकार, उनके चैनल, उनके दफ्तर कोरोना की चपेट में आये तो सारी असलियत सामने आ गई। अब जबकि भाजपा के तमाम नेता इसकी चपेट में आ चुके हैं, क्या इस देश की जनता में प्रधानमंत्री मोदी से यह पूछने का साहस है कि आपने जो फर्जी ताली और थाली बजवाई थी, क्या उसके लिए वो माफी मांगेंगे ?