August 31 10:10 2020

ईएसआई मेडिकल कॉलेज बड़ी छलांग की तैयारी में, पीजी के साथ-साथ 22 सुपर स्पेशलिटी भी होंगे 

फरीदाबाद (म.मो.) बीते करीब 6 साल से चल रहा एनएच तीन स्थित मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल एक वर्ष में, अपने मरीजों यानी बीमा धारकों के लिये बड़ी चिकित्सा सुविधायें उपलब्ध कराने की ओर तेज़ी से अग्रसर है। कार्पोरेशन की डीजी अनुराधा प्रसाद एवं केन्द्रीय श्रम सचिव हीरा लाल सामारिया ने ठान लिया है कि एक वर्ष के भीतर वे इस संस्थान को इतना विकसित एवं उन्नत दर्जे का बना देंगे कि पूरे एनसीआर के मरीज़ों को किसी भी प्रकार के सुपर स्पेशलिटी इलाज के लिये रैफर करने की जरूरत नहीं रह जायेगी।

एमबीबीएस के बाद की पढ़ाई यानी स्नातकोत्तर (पीजी) की पढ़ाई का निर्णय तो पिछले वर्ष हो ही गया था और उसके लिये तैयारियां भी लगभग मुकम्मल हो चुकी हैं। यदि सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा तो आगामी सत्र में कम से पांच विषयों में पीजी की पढ़ाई शुरू हो सकती है। इस तरह की पढ़ाई शुरू होने से बेहतरीन प्रोफेसर (डॉक्टरों) की संख्या तो बढ़ेगी ही साथ में पीजी की पढ़ाई करने वाले डॉक्टरों की उपस्थिति से मरीज़ों को भी लाभ होगा जो अन्यथा संभव न हो पाता।

इसके साथ-साथ निम्नलिखित 22 प्रकार की उन बीमारियों का इलाज भी यहां संभव हो सकेगा जिनमें सुपर स्पेशलिस्ट ट्रीटमेंट की आवश्यकता को देखते हुए निजी कमर्शियल अस्पतालों को रैफर करना पड़ता है।

केवल एनसीआर में उक्त सुपर स्पेशलिटी ट्रीटमेंट के लिये ईएसआईसी को प्रति वर्ष 500-600 करोड़ रुपये के बिलों का भुगतान करना पड़ता है। यद्यपि इस मेडिकल कॉलेज अस्पताल की वजह से लैबोरेट्री व रेडियोलॉजी विभाग ने यह रैफरल बिलिंग को घटाने में काफी सराहनीय काम किया है। इन दोनों विभागों द्वारा न केवल दिल्ली, नोएडा बल्कि गुडग़ांव व मानेसर तक के मरीज़ों का काफी काम सम्भाल रखा है जबकि यहां स्टाफ व कुछ उपकरणों की अभी भी काफी कमी चल रही है।

कमर्शियल अस्पतालों को रैफर करने पर भारी भरकम पेमेंट करने के बावजूद मरीज़ों को वहां भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वे अस्पताल इन मरीज़ों को दोयम दर्जे का मरीज़ समझ कर भेद-भाव एवं दुव्र्यवहार करने के साथ-साथ डरा-धमका कर वसूली भी करते हैं।

दुनिया के बेहतरीन उपकरण खरीदे जायेंगे

अभी तक ईएसआईसी मुख्यालय में बैठे उच्चाधिकारी, जिनका ज्ञान केवल डिस्पेंसरी स्तर तक का है, सस्ते से सस्ता उपकरण खरीदने की बात करते थे जबकि आज श्रम सचिव व डीजी न केवल एम्स के स्तर के उपकरण बल्कि अमेरिकी स्तर के खरीदने की कह रहे हैं। इनकी सोच है कि जब मज़दूर का पैसा पर्याप्त मात्रा में पड़ा है तो क्यों न दुनिया की आधुनिकतम एवं बेहतरीन तकनीक वाले उपकरण खरीदे जायें। इस खरीदारी के लिये पूरे ज़ोर-शोर से काम चल रहा है।

कैथ लैब (ह्दय सम्बन्धित रोग) के लिये करीब साढे नौ करोड़ के उपकरणों का आर्डर दे दिया गया है। इसी तरह कैंसर मरीज़ों के लिये अभी तक जहां केवल आंकोलॉजिस्ट दवायें ही दे सकता था, शेष कीमोथैरेपी, रेडियोथैरेपी व सर्जरी आदि के लिये मरीज़ों को रैफर करना पड़ता है। करीब एक साल के भीतर ये सभी इलाज यहां होने लगेंगे। इसके लिये विशेष परमाणु संयत्र युक्त मशीन व अन्य सम्बन्धित उपकरणों के लिये करीब 32 करोड़ का अनुमानित बजट तैयार किया गया है।

इसके लिये एक इमारत अलग से बनेगी। परमाणु संयत्र वाले उपकरण को भूमिगत तो रखा ही जायेगा साथ में रेडिय़ोधर्मिता की लीकेज को थामे रखने के लिये समुचित उपाय करने की योजना लगभग पूरी तरह से तैयार कर ली गयी है। संदर्भवश सुधी पाठक जान लें कि बढते प्रदूषण व अशुद्ध खाद्य सामग्री के चलते ईएसआई में आज-कल बड़ी संख्या में मरीज आ रहे हैं।

डायलेसिस की ठेकेदारी बंद होगी

ईएसआई मुख्यालय में अधकचरी समझ के अधिकारियों ने डायलेसिस व आईसीयू को ठेकेदारों के हवाले कर दिया था। उनकी चलती तो एमआरआई व सीटी स्कैन तथा लैबोरेट्री भी ठेके पर ही चला देते। दरअसल उन्हें तो मेडिकल कॉलेज के नाम से ही भयंकर पीड़ा होने लगती थी। उन्होंने भरसक प्रयास किया था कि मेडिकल कॉलेज चलाने से उनका पिंड छूट जाय। यह तो किस्मत अच्छी थी कि शहर की जनता व डीन डॉक्टर असीम दास की बात को समझने वाले तत्कालीन डीजी दीपक कुमार ने जैसे-तैसे इसे चालू करवा दिया।

कहने की जरूरत नहीं कि ठेकेदार कोई भी काम केवल मुनाफा कमाने के लिये करता है। इसके लिये वह सस्ते से सस्ता स्टाफ व घटिया से घटिया सामान इस्तेमाल  करता है। इसके लिये वह मरीज़ों की जान से खिलवाड़ करने से भी नहीं चूकता। अस्पताल प्रशासन द्वारा नियमों का पालन कराने हेतु थोड़ी सी सख्ती करते ही आईसीयू वाला ठेकेदार तो करीब दो वर्ष पूर्व काम छोड़ कर भाग गया। करीब एक साल इन्तजार करने के पश्चात अस्पताल ने जैसे-तैसे खुद आईसीयू का संचालन शुरू किया। लेकिन स्टाफ की कमी के चलते इसमें अभी कुछ दिक्कतें आ रही हैं।

पूरा नैफरोलॉजी विभाग चलाने का फैसला ले लिये जाने के चलते डायलेसिस की ठेकेदारी भी शीघ्र समाप्त होने वाली है। अब यह काम स्वयं अस्पताल करेगा।

स्टाफ की कमी दूर करना बहुत जरूरी

फेकल्टी से लेकर नीचे तक के स्टाफ की भारी कमी का सामना यह संस्थान करता आ रहा है। फेकल्टी में तो करीब 20 प्रतिशत स्टाफ की कमी सदैव आरक्षण के चलते बनी रहती है क्योंकि आरक्षित रिक्तियों को भरने के लिये अभ्यार्थी मिलते नहीं। इसका सीधा सरल उपाय स्वीकृत पदों की संख्या को ही 20 प्रतिशत तक बढ़ा दिया जाय। दूसरा कारण मुख्यालय में बैठे उन नालायक एवं कामचोर अधिकारियों की नकेल कसी जाय तो भर्ती सम्बन्धि फाइलों पर कुंडली मार कर बैठे रहते हैं। तीसरे यहां की सेवा एवं पदोन्नति की शर्तों को एम्स के बराबर किया जाय ताकि योग्य फेकल्टी यहां से छोड़ कर एम्स की ओर जाने की न सोचें।

निचले स्तर के स्टाफ की कोई कमी नहीं है, नर्सिंग व अन्य सटाफ को पर्याप्त में भर्ती न करने का कोई कारण समझ नहीं आता। जिस तरह से सेवा-विस्तार की योजना चल रही है कुल बिस्तरों की संख्या दोगुणी होना तय है। इस लिये कार्पोरेशन को ईएसआई मैनुअल के अनुसार स्टाफ की भर्ती समय रहते पूरी कर लेनी चाहिये।

 

 

 

 

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Mazdoor Morcha
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