लेजर वैली पार्क को देखकर एमसीएफ को शर्म क्यों नहीं आती
विवेक कुमार
बडखल सूरजकुंड सडक़ पर पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के करकमलों से उद्घाटित लेजर वैली पार्क फरीदाबाद सेक्टर 44-47 के निवासियों को ध्यान में रख कर बनाया गया। बाकायदा फव्वारा और आवश्यक सूचना के बोर्ड के साथ जिसपर लिखा है पार्क को साफ-सुथरा रखें और कुत्ते व अन्य जानवर न घुमाये इत्यादि-इत्यादि। पर पार्क के भीतर कचरे, गन्दगी और कुत्तों के साथ साथ गाय का निर्बाध विचरण है, यानी कि सिवा जानवर के इस पार्क में कोई जाता नहीं।
पार्क में महीनो से न घास कटी है न सफाई ही है, पर हाँ इन सबके नाम पर पैसा जरूर खर्च किया गया होगा जबकि जमीनी हकीकत को तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है। कहने वाले आराम से कह देंगे कि लॉकडाउन में जब कोई पार्क का इस्तेमाल कर ही नहीं रहा और सभी कुछ बंद था तो क्या करने के लिए कोई भी कर्मचारी पार्क में जाता।
पर सच्चाई इससे अलग है, पार्क में लगे कचरे के सभी डब्बे पूरे भरे हुए हैं और उसमे से देश की माता, गाय माता मुंह डाल-डाल कर कचरा खाने पर मजबूर हैं। कुत्तों को भी कचरे डिब्बे तक जाने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि कचरे के डिब्बे खाली न किये जाने के कारण ऐसे ओवरफ्लो हो रहे हैं जैसे कभी भारत में घी और दूध की नदियाँ ओवरफ्लो होती थीं। जाहिर है बिना लोगों के आये कचरा डिब्बा संसद की तरह अपने आप तो नहीं भर गया होगा।
कुल जमा पार्क के बाहर जो आवश्यक सूचनाएं बोर्ड पर लिखी हैं और जिनको न करने की मनाही है वह सब छोडक़र इस पार्क में दूसरा कुछ होता ही नहीं। गाय के दल पार्क में गोबर और मूत्र जैसे कीमती पदार्थों का त्याग कर देश की अमूल्य धनसंपदा को बर्बाद कर रहे हैं जबकि पार्क के ठीक सामने गौशालाओं की भरमार है और दूसरी तरफ एक भव्य मंदिर व आश्रम, जहाँ से जनता को गाय के पूजने की विधि बताई जाती है।
जिस फव्वारे का एमसीएफ ने हिन्दू राज्य चोल साम्राज्य के फवारों जैसा डिजाइन तैयार दिया था उसमे अब एक पीपल ने अपना आसन जमाया है और पानी के नाम पर उसमे प्रशासन के पास डूब मरने लायक चुल्लू भर पानी ही बचा है। ऐसे में आशा है कि पानी का सदुपयोग प्रशासन करेगा।