फरीदाबाद (म.मो.) बीते करीब पांच साल से शहर के कुछ हिस्सों को ‘स्मार्ट सिटी’ बनाने के नाम पर करीब दो हजार करोड़ रुपये डकारे जा चुके हैं| लेकिन शहरी जनता की मूल समस्यायें ज्यों की त्यों कायम हैं।
पीने का पानी, सीवेज़ व्यवस्था व सफाई आदि जनता की मौलिक आवश्यकताएं हैं। जिन पर नहीं के बराबर ध्यान है।मई-जून जैसे गर्मी के महीनों के दौरान पानी सप्लाई की बात तो छोड़ ही दीजिये बरसाती मौसम में भी इसका नितांत अभाव चल रहा है। चार बूंद बरसात होते ही पुरा शहर जल-थल हो जाता है। जगह-जगह जाम लग जाते हैं और तो और हाईवे तक भी जाम हो जाता है। जो सीवरेज गर्मियों के शुष्क महीनों में भी उफनते रहते हैं, बरसात में तो उनके क्या ही कहने।
जवाहर कॉलोनी, डबुआ कॉलोनी, पर्वतीया कॉलोनी, संजय कॉलोनी आदि जैसी कॉलोनियों की बात तो छोड़ ही दीजिये। एनआईटी के पूर्णतया विकसित एवं पुराने एनएच 1,2,3,4,5 व हूडा के नव विकसित सेक्टरों में भी वाटर सप्लाई का हाल बेहाल है। एनएच तीन के ई व एफ ब्लॉक में तो बीते करीब एक सप्ताह से पानी के दर्शन नही हो रहे, तमाम निवासी महंगे दाम चुकाकर ट्रैक्टर टैंकरों से पानी खरीद कर गुजर-बसर कर रहे हैं। अन्य ब्लॉकों की स्थिति भी कोई बहुत अच्छी नहीं है। निगम अधिकारी अव्वल तो शिकायत सुनते ही नहीं, सुन भी लें तो रटे रटाये-घिसे-पिटे जवाब हाजिर रहते हैं। वे कहते हैं कि ट्यूबवैल खराब हो गये हैं ठीक करवा रहे हैं, मोटर जल गई है या फिर केबल जल गई आदि-आदि।
ऐसा नहीं है कि इस तरह की समस्या कोई पहली बार सामने आई है। बीते 40 वर्षों से इस तरह की निगम द्वारा पैदा की गई समस्याओं को शहर वासी झेलते आ रहे हैं। बीते इन वर्षों में एक भी वर्ष ऐसा नहीं रहा कि जब निगम कार्यालय पर जनता ने विरोध प्रदर्शन करके मटके न फोड़े हों। उच्चाधिकारी एवं राजनेता आश्वासन देते आ रहे हैं कि र्रैनी वैल परियोजना द्वारा शहर की जलापूर्ति को सुचारु बना दिया जायेगा और पानी की कोई कमी नहीं रहेगी। लेकिन ढाक के वही तीन पात, हजारों करोड़ रुपये रेनी वैल के नाम पर डकारे जाने के बावजूद स्थिति दिन ब दिन बद से बद्तर होती जा रही है।
शहर की स्थिति बद से बद्तर हो भी क्यों नहीं जब जनता द्वारा निर्वाचित राजनेताओं ने निगम को ही लूटने खाने का साधन बना लिया हो। जनता द्वारा चुनी हुई सरकार ही यह तय करती है कि निगम में कैसे-कैसे नालायक एवं भ्रष्ट कर्मचारियों को भर्ती किया जाय और उनके ऊपर निगरानी करने के लिये कैसे-कैसे लुटेरे उच्चाधिकारियों को तैनात किया जाय। जो जनता जाति, धर्म व पैसे के प्रलोभन में आकर अपने जनप्रतिनिधि चुनती है उनकी समस्यायें सदैव ऐसी ही बनी रहती हैं; हां ध्यान भटकाने के लिये हिंदू-मुस्लिम व मंदिर-मस्जिद के मुद्दे उछाल दिये जाते हैं।