डॉक्टर गगनदीप कांग के इस्तीफे के मायने
मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
फरीदाबाद से गुडग़ांव की ओर जाते समय हनुमान की मूर्ति के निकट अरावली के जंगल में केन्द्र सरकार के विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय के अन्तर्गत आने वाले डीबीटी (डिपार्टमैंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी) की एक लैबोरेट्री है जिसका नाम टीएचएसटीआई (ट्रांस्लेशनल हेल्थ साईंसेज टेक्नोलॉजिक्ल इन्स्टीट्यूट) है। इसकी कार्यकारी निदेशक थीं डॉ. गगनदीप कौर कांग।
गगनदीप जैसी अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक ने पांच जुलाई को अपने पद से अचानक इस्तीफा दे दिया। कारण बेशक उन्होंने कोई नहीं बताया, केवल निजी कारण कह कर बात समाप्त कर दी, लेकिन किसी भी तर्कशील व्यक्ति के गले यह बात उतरती नहीं। समझा जा रहा है कि 15 अगस्त को वेक्सीन लांच करने की सरकारी घोषणा से डॉ. गगनदीप शायद सहमत नहीं थी। शायद वे जानती हैं कि कोई भी वैक्सीन जो इतनी जल्दबाजी में लांच की जायेगी वह जनता के लिये घातक हो सकती है और इसीलिये इसमें वह भागीदारी नहीं कर सकती थी। उधर 15 अगस्त को लॉच करने का मतलब ये है कि मोदी उस दिन अपने सम्बोधन में इस पर अपनी पीठ थपथपा कर फारिग हो जायेंगे और बाद में कुछ भी उल्टा-पुल्टा होने का दोष वैज्ञानिकों के सिर मढ़ देंगे।
पंजाब के समराला की मूल निवासी गगनदीप वेलौर (तमिल नाडु) स्थित सीएमसी (क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज) में माइक्रोबायोलॉजी की प्रोफेसर थी। वायरस एवं वायरलॉजी क्षेत्र में इनके काम को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया। उसी को देखते हुए 2016 में भारत सरकार ने पांच साल के लिये यानी अगस्त 2021 तक के लिये इनकी नियुक्ति इस पद पर की थी। रॉयल सोसायटी ऑफ लंडन की प्रथम भारतीय महिला सदस्य होने के साथ-साथ डॉ. कांग सीईपीटी (कोलिशन फॉर एपेडेमिक प्रिपेरडनेस इनोवेशंस) की उपाध्यक्ष (वाइस चेयर)भी हैं।
यह सीईपीआई है क्या यह समझना बहुत जरूरी है। चार देशों-नार्वे, जर्मनी, जापान व भारत-ने मिल कर वायरस के विरुद्ध वेक्सीन बनाने के लिये इसे गठित किया था। इसका मुख्यालय नार्वे की राजधानी ओसलो में है तथा दो उप मुख्यालय लंडन व वाशिगटन में भी बना दिये गये हैं। जनवरी 2017 में बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन तथा वेलकम ट्रस्ट द्वारा स्विट्जरलैंड के डावोस में इसकी नींव रखी गई थी जिसका उद्देश्य नये वायरसों के विरुद्ध वैक्सीन तैयार करवाना था। आज इनके पास 800 मिलियन डॉलर से अधिक का फंड है। सीईपीआई में भारत का महत्वपूर्ण स्थान इसलिये है क्योंकि दुनिया भर में बनने वाले कुल वैक्सीन का एक तिहाई हिस्सा भारत में बनता है और खपत भी भारत में ही अधिक होती है।
हालांकि डॉ. गगनदीप इस अंतर्राष्ट्रीय संस्था की उपाध्यक्ष बनी रहेंगी, जो भारत के लिये बहुत गौरव की बात है, लेकिन वाहवाही लूटने के लिये वैज्ञानिक क्षेत्र में मोदी की अनावश्यक दखलंदाज़ी ने एक प्रतिभाशली वैज्ञानिक को भारत की एक महत्वपूर्ण संस्था टीएचएसटीआई से अलग कर दिया इसका दुख रहेगा। और आशंका है कि इसका खामियाजा आने वाले दिनों में कहीं सारे देश को न भुगतना पड़े।