अपराध नियंत्रण पर सीपी का दावा कैसे उतरेगा पार
फरीदाबाद (म.मो.) दिनांक तीन जुलाई को पुलिस आयुक्त (सीपी) का कार्यभार संभालने के बाद ओपी सिंह ने, हर नये सीपी की तरह, दावा किया कि वह अपराध को अच्छी तरह नियन्त्रित करेंगे व तमाम अपराधियों को खदेड़ देंगे। दावा तो करना ही चाहिये, दावे में क्या हर्ज है, पार उतरे न उतरे, यह तो समय बतायेगा। वैसे यह कोई असम्भव काम भी नहीं परन्तु जिस तरह के हालात शहर में बने हुए हैं उनमें यह संभव भी नज़र नहीं आता।
सीपी साहब खदेडऩे की बात करते हैं परन्तु यहां तो गली, मुहल्लों व कच्ची बस्तियों तक में अपराधी पैदा करने व पालने-पोसने की नर्सरियां चल रही हैं तो कब तक व किस-किस को खदेड़ेंगे? शायद ही कोई थाना-चौकी ऐसा हो जिसके क्षेत्र में जुए, सट्टे, शराब, सुल्फा, गांजा व अन्य नशों का धंधा न चलता हो। नौबत तो यहां तक आ चुकी है कि कोई धंधेबाज इस धंधे को छोड़ भी दे तो बंधी मंथली या हफ्ता लेने वाले साफ कहते हैं कि बंद कर या चला लेकिन उनकी फटीक जारी रहनी चाहिये।
जुआ, सट्टा, कैसीनो व शराब के मामले में जहां एनआईटी के एक नम्बर, दो नम्बर, तीन व पांच नम्बर, सबसे आगे हैं तो हर प्रकार के नशे के कारोबार का सबसे बड़ा ठिकाना थाना मुजेसर में पड़ता है। यहां के अड्डा चलाने वालों के हौंसले तो इतने बुलंद हो चुके हैं कि बीते दिनों एक सिपाही की कनपट्टी पर ही पिस्टल लगा दी थी जिसकी विस्तृत रिपोर्ट पिछले अंकों में प्रकाशित की गयी थी। ओल्ड रेलवे स्टेशन के निकट बसे संत नगर में भी इस तरह के धंधों का पूरा ज़ोर है। मथुरा रोड से यदि स्टेशन की ओर जायें तो वहां 10-12 साल के बच्चे भी नशे में टुन्न मिलेंगे। इसके लिये आवश्यक पैसों के लिये वे जेब तरासी व छीना-झपटी जैसे छोटे-मोटे अपराध करने लगते हैं। सेक्टर 16 पुलिस चौकी की पीसीआर भी अक्सर यहीं खड़ी देखी जाती है। फिलहाल लॉकडाउन के चलते धंधा मंदा चल रहा है। पर्वतीया कॉलोनी, जवाहर कॉलोनी, संजय कॉलोनी, सारन, डबुआ, एसजीएम नगर, इन्दरा कॉलोनी आदि-आदि बहुत लम्बा क्षेत्र है। इसकी विस्तृत रिपोर्ट कई बार ‘मज़दूर मोर्चा’ में प्रकाशित की जा चुकी है। परिणाम यह निकलता है कि जो धंधेबाज़ पुलिस पकड़ से बचे हुए थे, वे पकड़ में आ जाते हैं और सेटिंग कर लेते हैं, जो पहले से ही सेट होते हैं उन पर यह कह कर फटीक बढ़ा दी जाती है कि अब तो अखबार में छप गयी है, खतरा बढ़ गया है। इस लिये ज़यादा विस्तृत विवरण छापने का कोई लाभ नहीं।
मामला तब और भी गड़बड़ा जाता है जब डीसीपी स्तर तक के अधिकारी धंधेबाज़ों से सीधे लेन-देन करने लगते हैं। इससे न केवल थाने-चौकी वालों के हौंसले बुलंद होने लगते हैं। धंधेबाज भी खुल कर खेलने लगते हैं। इस तरह के अपराध देखने में तो छोटे दिखते हैं परन्तु यहीं से ट्रेंड होकर बड़े अपराधी निकलते हैं। इस दौर में वे लोग पुलिस वालों से बात-चीत एवं सौदेबाज़ी करना सीख लेते हैं, अच्छे व मधुर सम्बंध बना लेते हैं जिसके चलते उनको पुलिस का कोई भय नहीं सताता और वे खुल कर अपराध की दुनिया में उतर जाते हैं।
लेकिन इन सब पर नकेल डाली जा सकती है। उदाहरण मौजूद है, पूर्व सीपी के के राव ने चार्ज सम्भालते ही घोषणा की थी कि जिस थाने-चौकी के क्षेत्र से कोई धंधोबाज यदि उन्होंने पकड़ लिया तो धंधेबाज के साथ-साथ सम्बन्धित थाने व चौकी प्रभारी का भी इस धंधे में शामिल होने का मुकदमा दर्ज होगा। बस फ़िर क्या था, सारे धंधे तुरंत बंद। लेकिन इसके बाद पूरी सेटिंग के साथ तमाम धंधों को दोबारा से शुरू कराया गया।