विकास दुबे अपने साथियों सहित फरीदाबाद में आत्मसमर्पण करने ही आया था। इसके लिए वह नहर पार के अपने मिलने वाले अमित मिश्रा के यहां पहुंचा था करीब 12.00 बजे

विकास दुबे अपने साथियों सहित फरीदाबाद में आत्मसमर्पण करने ही आया था। इसके लिए वह नहर पार के अपने मिलने वाले अमित मिश्रा के यहां पहुंचा था करीब 12.00 बजे
July 11 07:58 2020

उज्जैन वाला श्रेय फरीदाबाद पुलिस को मिल सकता था यदि…

भरोसेमंद सूत्रों की यदि माने तो विकास दुबे अपने साथियों सहित फरीदाबाद में आत्मसमर्पण करने ही आया था। इसके लिए वह नहर पार के अपने मिलने वाले अमित मिश्रा के यहां पहुंचा था करीब 12.00 बजे। मिश्रा ने अपने क्षेत्र की क्राईम ब्रांच यूनिट के मुखिया सब इन्सपैक्टर रणवीर सिंह से सम्पर्क किया।  रणबीर के तो हाथ पैर फूल गये। रणवीर ने अपने जैसे ही ‘बहादुर’ व ‘सयाने’ ऊंचा गांव यूनिट के मुखिया सब इन्सपैक्टर जगमिन्दर से सम्पर्क किया। करीब एक घंटे के विचार विमर्श के बाद इन लोगों ने एसीपी क्राईम अनिल यादव को इसकी सूचना दी, लेकिन कोई पुख्ता आश्वासन नहीं मिला।

करीब दो घंटे चले इस ड्रामे को देखकर दुबे विचलित हो गया। उसे दाल में कुछ काला नजर आने लगा तो वह वहां से अपने साथियों को छोडक़र खिसक लिया। जब तक जूते-जुराबे पहनकर वह अस्त्र-शस्त्र संभालते हुए करीब 80 पुलिसकर्मियों का लश्कर अमित मिश्रा द्वारा बताये ठिकाने तक पहुंचा, तो दुबे वहां से गायब हो चुका था, केवल उसके साथी ही फरीदाबाद पुलिस के हत्थे चढ़ पाये।

स्पष्ट है कि क्राईम ब्रांच में यदि चुस्त दुरूस्त एवम् कार्यकुशल अधिकारी रहे होते तो 5 लाख का ईनामी आंतकवादी विकास दुबे फरीदाबाद पुलिस से बचकर नहीं जा सकता था। विदित है कि क्राईम ब्रांच की यूनिटों में केवल ऐसे ही अफसरों को तैनात किया जाता है जो शाम तक लूट कमाई का अच्छा खासा हिसाब-किताब बनाकर अपने आकाओं को दे सकें।

आत्मनिर्भरहुयी यूपी पुलिस

अपने साथियों की इतनी भयंकर दुर्गति से बौखलाई पुलिस ने तमाम कायदे कानून ताक पर रख कर मवाली-गुंडों की तरह जो तोड़-फोड़ का खेल गांव में खेला उसे किसी भी तरह से न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। जो मकान तोड़ा, उसे अबैध कब्जाई जमीन पर गैरकानूनी ढंग से बनाया गया बताते हैं। जब अवैध कब्ज़ा हो रहा था, उस वक्त शासन-प्रशासन कहां था? और देश में यही एक मकान अवैध कब्जे पर नहीं बना, हर गांव व शहर में यही सब तो हो रहा है। शायद ही कोई ऐसा गांव हो जिसकी पंचायती एवं शामलात जमीन पर अवैध कब्जों को लेकर दरखास्तबाज़ी एवं मुकदमेबाज़ी न चल रही हो। कोई शहर, यहां तक कि दिल्ली व मुंबई जैसे शहरों में बड़े पैमाने पर अवैध कब्जे व गैर कानूनी निर्माण खड़े हैं। जाहिर है यह सब राजनेताओं व अफसरशाही की मिलीभगत से ही हो पा रहा है।

दुबे का भी अवैध निर्माण कायम रहता यदि वह उक्त वारदात न करता। दर्जनों महंगी गाडिय़ां तोड़ कर पुलिस ने अपना गुस्सा शान्त करने का प्रयास किया। इन्हें तोडऩे की बजाय, सरकार यदि इन्हें कब्जे में लेकर अपने काम पर लगाती तो क्या बुराई थी? उसकी तमाम धन-सम्पदा जो उसने लूट-मार से कमाई थी, उसे तहस-नहस करने की अपेक्षा सरकार, इसे बतौर हर्जाना-जुर्माना कुर्क करके कुछ न कुछ क्षति पूर्ति कर सकती थी।

उक्त वारदात के बावजूद जिस ढंग से देश का सरकारी ढर्रा चल रहा है, जिस तरह से आपराधिक न्याय-व्यवस्था फल-फुल रही है, उस से लगता नहीं कि भविष्य में गुंडे, बदमाशों, मवालियों एवं आतंकवादियों की पैदावार कुछ कम हो पायेगी, बल्कि आसार इनकी बढ़ोतरी के ही अधिक हैं।

view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles