हरियाणा सरकार द्वारा एसएलसी के आदेश वापस, प्राइवेट स्कूलों की वसूली जारी रहेगी
हरियाणा सरकार ने 15 जून को एक आदेश जारी कर सरकारी व हरियाणा सरकार से सहायता प्राप्त स्कूलों में दाखिले के लिये एसएलसी यानी पिछले स्कूल से छोडऩे का प्रमाणपत्र लाने की अनिवार्यता खत्म कर दी थी। मज़दूर मोर्चा ने सरकार के इस कदम का स्वागत करते हुये लिखा था कि इससे प्राइवेट स्कूलों द्वारा की जा रही छात्रों की लूट कम हो जायेगी। लेकिन फ़िर भाजपा के अध्यापक प्रकोष्ठ ने एसएलसी लागू करने की मांग की जिसपर हमने पिछले अंक में लिखा था कि इस छात्र विरोधी मांग से भाजपा के अध्यापक प्रकोष्ठ की क्या मंशा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि प्राइवेट स्कूल वाले भाजपा को कुछ टुकड़ा डालते हैं।
पिछले माह में 26 जून को जारी हरियाणा सरकार के शिक्षा विभाग के एक आदेश द्वारा एसएलसी की अनिवार्यता फ़िर लागू कर दी गयी है। यानी अब फ़िर कोई छात्र प्राइवेट स्कूल छोडक़र सरकारी स्कूल में आना चाहता है तो उसे पहले वहां लूट-पिट कर आना होगा। आदेश में कहा गया है कि छात्र को बिना एसएलसी के अस्थायी दाखिला दिया जा सकता है लेकिन उसे स्थायी तभी किया जायेगा जब पिछले स्कूल से वह 15 दिन के अंदर एसएलसी ले आयेगा यानी उसकी सारी $फीस आदि भर आयेगा।
भाजपा अध्यापक प्रकोष्ठ के अलावा प्राइवेट सकूलों के मालिकों के विभिन्न संघ भी अपनी लूट कमाई जारी रखने के लिये इस हथियार की जोर-शोर से मांग कर रहे थे। बताया गया है कि इनके पदाधिकारियों ने शुक्रवार 26 जून को सुबह हरियाणा के शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर से इस मांग के लिये मुलाकात की थी और उसी दिन शाम को तुरन्त ये आदेश जारी हो गये। सरकार की चुस्ती-फुर्ती हो तो ऐसी। पर सवाल यह उठता है कि पहले सरकार ने ये आदेश जारी क्यों किये और जारी कर दिये थे तो वापिस क्यों लिये। आखिर खट्टर सरकार ने थूक कर क्यों चाटा? कहीं ऐसा तो नहीं कि सारा नाटक ही भाजपा ने प्राइवेट स्कूलों से मोटी वसूली करने के लिया किया हो। अगर सैंकड़ों करोड़ रुपये मिलते रहे हों तो थूके हुये को चाटने में कैसी शर्म।
मोदी सरकार द्वारा लागू किये गये मूर्खतापूर्ण और गैरजरूरी लॉकडाउन से करोड़ों लोग बेरोजगार हो गये थे या उनकी कमाई आधी हो गयी है। इससे पहले भी सरकार की नीतियों के कारण देश भयंकर मंदी की चपेट में था। इस कारण से बहुत सारे लोग प्राइवेट स्कूलों में पढ रहे अपने बच्चों की $फीस भरने में कई महीनों से असमर्थ थे। एक मोटे अनुमान के अनुसार प्राइवेट स्कूलों में पढऩे वाले लगभग 20 प्रतिशत बच्चों ने पिछले छ:महीने से अपनी स्कूल $फीस नहीं भरी होगी। जाहिर है ये सभी बच्चे अब पैसों के अभाव में आगे प्राइवेट स्कूलों में पढने में असमर्थ थे सो ये स्कूल खुलते ही सरकारी स्कूलों का रूख करते। ऐसे में अपने आदेश पलटकर सरकार ने उनकी पढने की इच्छाओं पर तो कुठाराघात किया ही है साथ ही प्राइवेट स्कूलों को लूट का लाइसेंस भी रिन्यू कर दिया है। अगर एक लाख बच्चे भी प्राइवेट स्कूलों को छोडक़र सरकारी स्कूलों में आते और उनकी औसत बकाया फीस 20000 रुपये होती तो प्राइवेट स्कूलों की लूट कमाई में 200 करोड़ रुपये कम हो जाते। ऐसे में 50-100 करोड़ रुपये मंत्री संत्री को देना उनके लिये बड़ी बात नहीं। ऊपर से भलमनसाहत का ठेका अलग कि ये स्कूल अगर $फीस नहीं लेंगे तो अपने मास्टरों को तनख्वाह कहां से देंगे। और अभी कौन सा हरियाणा में इलेक्शन हैं जो जनता की परवाह करे सरकार। इस बीच तो जो लूट का माल हाथ लग जाये वही ठीक।