सिर्फ मुफ़्त खाने के लिए हरियाणा पुलिस इतना गिर गयी…

सिर्फ मुफ़्त खाने के लिए हरियाणा पुलिस इतना गिर गयी…
July 04 06:31 2020

होडल पुलिस द्वारा ढाबा मालिक का अपहरण,  कार्यवाही के नाम पर केवल लाइन हाजिर

होडल (म.मो.) सीआईए होडल के पांच सिपाही किसी संदिग्ध को उठाने 27 जून को पड़ोसी जि़ले मथुरा के किसी गांव में गये थे। शाम को खाली हाथ लौटते पांचों जवान कोसी कलां के एक ढाबे पर खाना खाने बैठ गये। खाने से पहले उन्होंने शराब पीनी शुरू की तो ढाबे वाले ने उन्हें मना कर दिया क्योंकि सभी सिविल ड्रेस में थे। इस पर उन्होंने ढाबे वाले को धमकाया। ढाबे वाले के मुताबिक सभी के पास हथियार थे। इस लिये वह डर गया और उन्हें शराब पीने दी। लेकिन अपना फर्ज समझते हुए उसने स्थानीय पुलिस को सूचित कर दिया कि कोई पांच संदिग्ध सशस्त्र लोग उसके यहां बैठे शराब पी रहे हैं, हो सकता है वे अपराधी हों। स्थानीय पुलिस आई, लेकिन उनकी पहचान एवं तसदीक करने के बाद उन्हें छोड़ दिया। ढाबे वाले की इस कार्यवाही को सीआईए वालों ने अपना अपमान समझा और बदले की कार्यवाही करते हुए उसे उठा कर होडल स्थित अपने ठिकाने पर ले आये। यहां उसे जम कर पीटा।

उधर ढाबे वाले के साथी अपने उसी थाने में पहुंचे जहां उन्होंने पहले सूचना दी थी। लेकिन थाने वालों ने अपहरण का मुकदमा दर्ज करने के बजाय ढाबे वालों को होडल का रास्ता बता दिया। होडल में जब उनकी सुनवाई नहीं हुई तो वे लोग एसपी पलवल के पास पहुंचे। सारी कहानी सुन कर एसपी ने पांचों को लाइन हाजिर कर दिया, ढाबे वाले को मुक्त कराया तथा डीएसपी होडल को जांच के आदेश दिये।

यहां महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि यदि इस तरह का अपहरण कोई सशस्त्र गैरपुलिसकर्मी करते तो क्या एसपी साहब केवल डीएसपी से जांच कराते? क्या वे अपहरण व नाजायज हिरासत में रखने व मार-पीट की धाराओं में मुकदमा दर्ज नहीं करते? जरूर करते, अपनी ओर से दो-चार धारायें और भी लगा देते, दो-चार दिन उनकी ठोका-पीटी करते वह अलग से। फ़िर इन पुलिसकर्मियों के साथ इतना नरम व्यवहार क्यों? जिन लोगों का काम जनता को गुंडे-बदमाशों से बचाना हो, जिनके ऊपर सरकार इसके बदले भारी भरकम खर्च कर रही हो और वे ही गुंडे-बदमाशों वाला काम करने लगेंगे तो समाज कैसे चल पायेगा? ऐसे लोगों को तो आम अपराधियों से डबल सज़ा होनी चाहिये।

इन सवालों के जवाब में प्राय:तर्क दिया जाता है कि पुलिसकर्मियों को सज़ा देने से उनका मनोबल गिरता है जिसके चलते फ़िर वे काम करने से कतराने लगते हैं। यह बिल्कुल बेहूदा तर्क है। ऐसे ही तर्कों की आड़ में आज पुलिस इन्सान को इन्सान नहीं समझती, मानवाधिकारों का हनन करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझने लगती है लोकतांत्रिक राज्य पुलिस राज्य में परिवर्तित हो जाता है। अपराध करने पर जब एक पुलिसकर्मी को सज़ा नहीं मिलती तो उसके अन्य सहयोगी भी अपराध करने को प्रोत्साहित होते हैं।

एक ओर तो पुलिस नागरिकों से सहयोग की अपेक्षा करती है और दूसरी ओर उनके साथ ऐसा व्यवहार करती है तो कौन नागरिक पुलिस का सहयोग करने आयेगा? बल्कि पुलिस वाला पिटता होगा तो कोई छुड़ाने तक भी नहीं आयेगा।

इस मामले में एसपी पलवल दीपक गहलावत का पक्ष एवं विचार जानने के लिये इस संवाददाता ने दिनांक 1जुलाई को उनके $फोन नम्बर 8814000400 पर सम्पर्क करने का दो बार प्रयास किया, जब इन्होंने फोन नहीं उठाया तो उन्हें वाटसएप मैसेज किया गया, उसका भी कोई जवाब नहीं आया। जाहिर है कि उनके पास कोई जवाब नहीं है।

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Mazdoor Morcha
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