सफूरा जरगर को 73 दिन बाद गृहमंत्री अमित शाह ने रिहा किया
दिल्ली (म.मो.) जामिया विश्वविद्यालय से एम फिल कर रही 27 वर्षीय सफूरा जरगर, जो 23 सप्ताह की गर्भवती है को जमानत मिल गयी। वैसे तो जमानती आदेश जारी करने की हिम्मत, हाईकोर्ट तब जुटा पाई जब गृहमंत्री अमितशाह की पुलिस ने ऐसा चाहा। सीधे-सीधे समझ में आता है कि यदि अमित शाह न चाहते तो सफूरा अभी रिहा न हो पाती। इस धन्यवाद के हकदार अमितशाह हैं न कि वकील व हाई कोर्ट।
नागरिकता बिल के विरोध में चले शाहीन बाग धरने में सफूरा भी सक्रिय रही थीं। उसके बाद उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भाजपा के दिशा-निर्देशन में कराये गये दंगों में भी सफूरा को आरोपी बना कर एक एफआईआर दर्ज की गयी थी जो इतनी बोगस थी कि देखते ही कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी। लेकिन जब अमितशाह न चाहते हों कि वह आज़ाद रहे तो दिल्ली पुलिस भला उन्हें कैसे खुला छोड़ देती| लिहाज़ा तुरंत यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि-निरोधक अधिनियम) के तहत उन्हें फ़िर से गिरफ्तार कर लिया गया। यह गैरजमानती अधिनियम अमितशाह ने अभी कुछ पूर्व ही बनवाया था ताकि वह अपने विरोधियों को जब चाहे पकड़ कर जेल भेज सके।
इसी अधिनियम एवं कोविड-19 जैसी आपदा का पूरा लाभ उठाते हुए अमित शाह ने देश भर से उन हज़ारों लोगों को जेल में बंद कर दिया जो उनके नागरिकता कानून का विरोध कर रहे थे एवं सरकार पर सवाल खड़े करके देशद्रोही का तगमा प्राप्त कर रहे थे। ऐसे सैंकड़ों लोग तो दिल्ली में ही मौजूद हैं। जेएनयू की दिव्यांगना व नताशा नारवाल और जामिया से एमबीए कर रही फातिमा गुलफशा के नाम इस कड़ी में उल्लेखनीय है जो अभी भी जेल में बंद हैं। और तो और योगेन्द्र यादव जैसे राजनेीति विज्ञानी एवं सक्रिय समाज शास्त्री तक को एक एफआईआर में लपेट लिया है। उन पर आरोप है कि उन्होंने दंगों से पूर्व उस क्षेत्र में भाषण दिया था। मजे की बात यह है कि वह भाषण रिकॉर्डिड है और उसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। जबकि दंगों को भडक़ाने वाले कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर व प्रवेश वर्मा जैसों का किसी एफआईआर में नाम तक नहीं है।
समझने वाली बात यह है कि अमित शाह ने सफूरा को रिहा क्यों किया? बेशक गोदी मीडिया व भाजपा का आईटी सेल सफूरा के विरुद्ध पूरी बेहूदगी से जहर उगल रहा था लेकिल सोशल मीडिया की साक्रियता इन सब पर भारी पड़ गयी। न्याय की तराजू पकड़े कोर्ट में बैठे लोगों को बेशक शर्म न आई हो परन्तु भाजपा नेतृत्व ने बढ़ते सामाजिक दबाव को पहचान कर सफूरा की रिहाई करनी पड़ी। इसी दबाव के चलते, समझा जा रहा है कि कपिल मिश्रा तक भी आंच पहुंचने वाली है। सबसे हास्यास्पद आरोपी तो उस डीएस ब्रिदा को बनाया गया है जिसने अपने फ्लैट तक बेचकर शाईन बाग के प्रदर्शनकारियों को लंगर सेवा यानी दोनों वक्त मुफ्त भोजन उपलब्ध करवाया था। यहां भाजपा की सोच यह रही होगी कि डीएस ब्रिंदा की लंगर सेवा के बलबूते ही शाईन बाग का धरना इतने समय तक टिका रह पाया, तो क्या कल बंगला साहिब पर भी एफआइआर होने वाली है जिसके दम पर पूरे जन्त्तर मंतर पर सालो साल से धरने-प्रदर्शन चल रहे हैं?