मोदी सरकार ने जैसे ही देश में लॉकडाउन शुरू किया। अगले दिन से ही टाइम्स आफ इंडिया के एमडी विनीत जैन ने छाती पीटना शुरू कर दिया।

मोदी सरकार ने जैसे ही देश में लॉकडाउन शुरू किया। अगले दिन से ही टाइम्स आफ इंडिया के एमडी विनीत जैन ने छाती पीटना शुरू कर दिया।
May 26 10:05 2020

मजदूर मोर्चा ब्यूरो 

नई दिल्ली: करीब तीन महीने के लॉकडाउन ने मीडिया उद्योग को तबाह कर दिया है, लेकिन इसकी आड़ में बड़ी मीडिया कंपनी कुछ और ही खेल कर रही हैं। इनमें से सबसे आगे है टाइम्स आफ इंडिया समूह। भारत सरकार के एक आंकड़े के मुताबिक 2018 में इस कंपनी की कुल पूंजी 9055 करोड़ थी और 2019 में टाइम्स आफ इंडिया समूह को 681 करोड़ का शुद्ध मुनाफा हुआ है। लेकिन इसके बावजूद इस कंपनी ने कोरोना काल में अपने कर्मचारियों पर दमनचक्र चलाया हुआ है। काफी कर्मचारियों को निकाल दिया गया है, कुछ संस्करण बंद कर दिए गए हैं।

मोदी सरकार ने जैसे ही देश में लॉकडाउन शुरू किया। अगले दिन से ही टाइम्स आफ इंडिया के एमडी विनीत जैन ने छाती पीटना शुरू कर दिया। उसने मार्च में ही यह ट्वीट किया था कि अगर सरकार ने मदद नहीं कि तो इस लॉकडाउन से बड़े पैमाने पर नौकरियां जाएंगी। यानी देश के सबसे बड़े अखबार समूह के मालिक ने एक तरह से देश के तमाम पूंजीपतियों की तरफ से आर्थिक पैकेज की मांग रख दी। टाइम्स आफ इंडिया समूह चूंकि देश के पूंजीपति की ही भाषा बोलता है, इसलिए पूंजीपति भी इस अखबार के इशारों को समझते हैं। विनीत जैन के ट्वीट के बाद देश की सारी बड़ी कंपनियों के मालिक छाती पीटने लगे कि अब तो भारत की अर्थव्यवस्था रसातल में जाने वाली है। ये वे कंपनियां हैं जिनका शुद्ध मुनाफा करोड़ों में है जो मोदी द्वारा बनाए गए पीएम केयर्स फंड में 500 करोड़ का दान तो दे सकती हैं लेकिन अपने कर्मचारियों को पैसा नहीं दे सकती हैं।

 

मार्च के आखिरी सप्ताह में टाइम्स आफ इंडिया समूह ने अपने पत्रकार कर्मचारियों की सैलरी बीस फीसदी काटने की घोषणा कर दी। सभी पत्रकार कर्मचारियों को जो ईमेल भेजे गए, उसमें कहा गया कि अप्रैल में जो वेतन आएगा, वह बीस फीसदी की कटौती के साथ आएगा। यह कटौती नवभारत टाइम्स, इकोनॉमिक टाइम्स, टाइम्स नाउ टीवी, ईटी नाउ टीवी, मिरर, विजय कर्नाटक, महाराष्ट्र टाइम्स समेत पूरे समूह के 11 हजार कर्मचारियों पर लागू कर दी गई। कंपनी ने इसके अलावा सालाना इंसेंटिव (बोनस) और हर साल बढऩे वाले इन्क्रीमेंट को भी रोकने की घोषणा कर दी। सभी पत्रकार कर्मचारी कसमसाकर रह गए। इसके बाद कंपनी ने पत्रकारों को निकाले जाने की अफवाह फैलाना शुरू कर दिया। साथ ही टाइम्स ग्रुप का मालिक सरकार से आर्थिक पैकेज मांगने लगा। मोदी सरकार ने हर उद्योग को राहत पैकेज का ऐलान किया लेकिन मीडिया को कोई आर्थिक पैकेज नहीं दिया गया।

 

इसके बाद टाइम्स आफ इंडिया ने टीवी चैनल मालिकों और अखबार मालिकों की बैठक कराई, जिसमें केंद्र सरकार से इन लोगो ने आर्थिक पैकेज की मांग की। यानी जनता को सच्ची खबर बताने का दावा करने वाले अखबार और टीवी चैनल के मालिक सरकार से पैसा मांग रहे हैं कि हम डूब रहे हैं, हमें बचा लो। इस तरह सरकार के पैसे लेकर अपना धंधा चलाने वाले किस तरह जनता की बात करेंगे, इसे अब आसानी से हर किसी को समझना चाहिए।

 

मई में बड़ा हमला

 

टाइम्स आफ इंडिया समूह ने मई में सबसे बड़ा हमला किया। उसने नवभारत टाइम्स नई दिल्ली, लखनऊ और मुंबई से तीस पत्रकारों की छंटनी कर दी। उसने टाइम्स आफ इंडिया की लाइफ मैगजीन को बंद कर दिया। उसने केरल के कई सेंटरों को बंद कर दिया। टाइम्स समूह में छंटनी की सूची धीरे-धीरे बाहर आ रही है। कुछ और विभागों में स्टाफ को हटाया जाना है लेकिन अभी उसकी घोषणा नहीं की गई है।

छंटनी किए जा रहे पत्रकारों को कंपनी सिर्फ दो महीने का वेतन दे रही है। इसके अलावा किसी तरह का कोई पैकेज नहीं दिया गया। सभी छंटनी किए गए पत्रकारों से कहा गया है कि अगर वे खुद से इस्तीफा देते हैं तो इस कंपनी में हालात ठीक होने पर वापसी का रास्ता खुल सकता है लेकिन अगर वे खुद से इस्तीफा नहीं देते हैं और उन्हें निकालना पड़ा तो सारे रास्ते बंद हो जाएंगे। पत्रकार इन चीजों को बखूबी समझते हैं, इसलिए किसी ने भी विरोध नहीं किया और सभी ने कंपनी के कहने पर इस्तीफा दे दिया। हालांकि इस संबंध में तमाम बड़े वकीलों ने छंटनी किए गए पत्रकारों से कहा कि चूंकि उन्हें कोरोना और लॉकडाउन में हटाया जा रहा है, इसलिए वे विशेष पैकेज की मांग कर सकते हैं।

 

लेकिन डरे हुए पत्रकारों ने ऐसी कोई मांग नहीं की। वकीलों का कहना था कि यह मामला अगर कोर्ट में आता है तो लंबी लड़ाई के बाद कर्मचारियों की ही जीत होती लेकिन अतीत के अनुभवों को देखते हुए पत्रकार पीछे हट गए। क्योंकि जब कंपनी में यूनियन थी तो उसके सारे कर्मचारी नेता बिक गए थे। पुराने समय में कई सौ लोग निकाले गए थे, जिन्हें कोई पैसा नहीं मिला।

 

पूंजीपतियों की बदमाशी

 

विनीत जैन ने एक तरफ तो अपनी कंपनी में छंटनी कर दी तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उस पहल का स्वागत किया जो उसने श्रम कानूनों में सुधार के नाम पर किया है। उत्तर प्रदेश में श्रम कानूनों में बदलाव भाजपा के दोगलेपन की सबसे बड़ी मिसाल है। योगी ने जो बदलाव किए हैं, उसके मुताबिक बिना सैलरी दिए ही श्रमिकों को अब कंपनियों से निकाला जा सकता है। इसके अलावा छोटी से छोटी कंपनी कभी भी अपने कर्मचारियों को निकाल सकती है।  उत्तर प्रदेश के रास्ते पर चलते हुए मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की भाजपाई सरकार ने इन्हीं संशोधित श्रम कानूनों को निकाल दिया।

 

ज्यादातर टीवी चैनलों और अखबारों की प्रेस और मुख्य दफ्तर नोएडा और गाजियाबाद में हैं। समझा जाता है कि पूंजीपतियों की एक बड़ी लॉबी के इशारे पर योगी ने श्रम कानून बदलने की बदमाशी की है। चर्चा है कि योगी का सपना अब प्रधानमंत्री बनना है। लेकिन बिना पूंजीपतियों की लॉबी का समर्थन मिले वह उस कुर्सी तक नहीं पहुंच सकते। इसीलिए योगी ने विनीत जैन और अन्य पूंजीपतियों के इशारों पर श्रम कानून ही बदल दिया। अब योगी के खिलाफ मीडिया में खबरें छपना बंद हो गईं हैं। कुछ मीडिया वाले योगी और मोदी की तुलना भी करने लगे हैं।

 

ई-पेपर अब मुफ्त नहीं

 

टाइम्स आफ इंडिया का इंटरनेट पर आनलाइन उपलब्ध ई-पेपर अब पैसे देकर पढ़ा जा सकता है। अभी तक यह मुफ्त में उपलब्ध था लेकिन अब अगर कोई आनलाइन पढऩा चाहता है तो उसे पैसा देना होगा। हालांकि विदेश में सारे बड़े अखबार और भारत में द हिंदू, बिजनेस स्टैंडर्ड और दक्षिण भारत के कुछ अखबार पहले से ही आनलाइन अखबार पढ़े जाने के बदले पैसे लेते हैं। विश्वसनीयता और अच्छी खबरों के मामले में “द हिंदू” का काफी नाम है। इसलिए द हिंदू आनलाइन पढ़ा जाने वाला भारत का सबसे बड़ा अखबार है।

 

अन्य अखबारों पर असर

टाइम्स आफ इंडिया चूंकि मीडिया की सबसे बड़ी कंपनी है। वहां जो कुछ भी होता है, उसका अनुसरण बाकी अखबार भी करते हैं। दैनिक भास्कर ने अपने सभी ब्यूरो दफ्तर बंद कर दिए। नोएडा में पूरा स्टाफ हटा दिया गया। दिल्ली में जो भर्तियां की गई थीं, उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। कंपनी ने एक मोबाइल ऐप बनाई है। सारे पत्रकार कर्मचारियों से कहा गया है कि वे अब अपनी खबरें उस मोबाइल ऐप मैट्रिक्स के जरिए भेजें। मोदी सरकार समर्थक अखबार दैनिक जागरण और अमर उजाला में कर्मचारियों के वेतन में कटौती की गई है।

 

टेलीग्राफ अखबार ने उत्तर पूर्व भारत यानी नगालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश आदि के सारे संस्करण बंद कर दिए हैं। कोलकाता में कर्मचारियों पर छंटनी का खतरा मंडरा रहा है। टेलीग्राफ अखबार पहले से ही जबरदस्त घाटे में था।

 

 

 

 

 

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