लॉकडाउन का फायदा उठाकर कोरोना पे नहीं मज़दूरों पर हमला कर रही बीजेपी सरकारें
योगी से भोगी बनकर सत्ता का सुख भोग रहे अजय सिंह बिष्ठ उर्फ आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में गरीब मज़दूरों पर खुला हमला बोल दिया है। यूपी सरकार ने एक अध्यादेश जारी करके उत्तर प्रदेश में तीन साल के लिये सभी श्रम कानूनों को इससे मुक्त रखा गया है। यानी तालाबंदी, छंटनी, न्यूनतम मज़दूरी, काम के घंटे आदि से सम्बन्धित सभी कानूनों को तीन साल के लिये ताक पर रख दिया गया है। कोरोना के कारण औद्योगिक उत्पादन में गिरावट को सम्भालने के लिये ऐसा किया गया है-ऐसा अध्यादेश में कहा गया है। मज़दूर की तनख्वाह मार कर और उनका शोषण करके ही उद्योगों यानी उद्योगपतियों के हालात ठीक किये जायेंगे। यानी कि कोरोना से सिर्फ उद्योगपतियों को ही नुकसान हुआ है, मज़दूरों को तो सोने की खान मिल गई हैं। अभी यह नहीं पता चला है कि यह अध्यादेश हिन्दू मज़दूरों पर भी लागू होगा या नहीं। ज्यादातर हिन्दूओं को विश्वास है कि हिन्दू मठ गोरखनाथ के मठाधीश और हिंदू धर्म के ध्वजवाहक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हिन्द मज़दूरों के साथ ऐसा जुल्म नहीं कर सकते। लेकिन फिलहाल यूपी सरकार द्वारा जारी अध्यादेश में ऐसा कोई भेदभाव दिखाई नहीं दिया है।
दूसरी तरफ बीजेपी की दूसरी राज्य सरकारें भी मज़दूरों पर हमले करने में पीछे नहीं है। हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर ने कहा कि मज़दूरों के काम करने के घण्टे 8 से बढाकर 12 कर दिये गये हैं। साप्ताहिक अवकाश भी बंद करने की सूचना है। यानी सातो दिन 12 घंटे काम करो और दिहाड़ी वही पुरानी ही रहेगी। अरे भाई कोरोना के लिये ये मज़दूर जिम्मेवार हैं क्या जो उन्हें सज़ा दे रहे हो।
गुजरात के सूरत में बाकायदा सरकार और गरीब मज़दूरों के बीच एक संघर्ष छिड़ा हुआ है। सूरत टैक्सटाइल और हीरा व्यापार का एक बड़ा केन्द्र है। लॉकडाउन में बीजेपी सरकार ने इनकी कोई सुध नहीं ली। मोदी की नाटकीयता भरे अचानक लॉकडाउन से उनको घर जाने का भी अवसर नहीं मिला।
मजबूर होकर भूखे प्यासे मज़दूर सडक़ों पर आ गये और पूरे अप्रैल बार-बार आते रहे। उनको रूपाणी की भाजपा सरकार पुलिसिया जोर जबरदस्ती से ऐसे घेरे रही जैसे कि गुलामों को घेरा जा रहा है। वहां भी उनको रोकने का उद्देश्य कोई कोरोना से बचाव के लिये नहीं बल्कि उद्योपतियों के लिये सस्ती लेबर उपलब्ध कराये रखना है ताकि उनका मुना$फा न मारा जाये। लेकिन मज़दूर न माने और लॉकडाउन में ढील मिलने पर पैदल ही निकल लिये।
उधर कर्नाटक के भाजपाई मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा ने तो बिल्डरों से बात-चीत होने पर मज़दूरों को घेरने के लिये उनके लिये चली स्पेशल ट्रेनों-श्रमिक स्पेशल-को ही बंद कर दिया। कुछ दिन पहले तक मज़दूरों को ठेंगा दिखा रहे बिल्डरों और सरकार ने अब उनका कुछ रहने खाने का इन्तजाम करने का भी वादा किया था। लेकिन यहां भी मज़दूर नहीं माने और पैदल ही घरों की ओर निकल पड़े तो सरकार को झुकना पड़ा और अब ट्रेनों को भी चलवा दिये जाने की सूचना है।
भाजपा की राज्य सरकारों द्वारा मज़दूरों पर की गयी जोर जबरदस्ती से स्पष्ट है कि उनको सिर्फ पूंजीपतियों के मुनाफे की चिंता है और उसके लिये मज़दूरों की औकात गुलामों से ज्यादा नहीं है।
-अजातशत्रु