अब कोरोना की आड़ में भर्तियों पर लगाई रोक, भत्ते भी कटेंगे
चंडीगढ (म.मो.) बीते कई वर्षों से राज्य सरकार के सभी विभागों में लाखों पद खाली पड़े हैं। भर्तियां केवल चुनावी झुनझुना बन कर रह गयी हैं। लेकिन अब तो कोरोना वायरस ने मुख्यमंत्री खट्टर को भर्तियां न करने की आलोचना से बचा लिया। खट्टर ने राहत की सांस लेते हुए घोषणा की है कि आगामी एक वर्ष तक किसी भी विभाग में कोई नई भर्ती नहीं की जायेगी।
घोषणा तो बेशक एक साल तक भर्तियां न करने की ही की है लेकिन भर्तियों के विज्ञापन चुनाव से करीब एक साल पहले ही निकाले जायेंगे और भर्ती प्रक्रिया को एन चुनावों तक घसीटा जायेगा नौकरी पाने के लालच में लोग भाजपाइयों एवं संघियों के चक्कर काटेंगे, सरकारी विधायकों की जी हुजूरी करके उन्हे चुनावों में जिताने का भरोसा देकर नौकरी पाने का प्रयास करेंगे। धूर्त राजनेता सभी को आश्वासन देकर अपना वोट बैंक पक्का करने का भ्रम पालने लगेंगे क्योंकि जैसे आश्वासन राजनेता देते हैं वैसे ही वायदे मतदाता भी करते हैं।
समझने वाली बात तो यह है कि राजनीतिज्ञों ने जिस तरह से सरकारी नौकरी को एक राजनीतिक व्यापार बना दिया है वह समाज के लिये बहुत ही घातक है। पदों पर नियुक्तियां केवल रोजगार के लिये नहीं होती वे देश और समाज के हित में सरकारी मशीनरी को चलाने के लिये होती हैं। उदाहरण के लिये स्कूलों, कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्तियां रोजगार के लिये नहीं बल्कि बच्चों को पढाने के लिये होती है, इन नियुक्तयों से किसी को रोजगार मिलता है तो वह नियुक्ति का बाइप्रोडक्ट है। इसी तरह अस्पताल में डॉक्टरों, नर्सों आदि की नियुक्ति लोगों की चिकित्सा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये होती है;पुलिस कर्मियों की नियुक्तियां कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिये होती हैं।
अब यह समझना कठिन नहीं होना चाहिये कि सरकारें पदों को रिक्त रख कर पूरे देश व समाज को किस गर्त की ओर धकेलती हैं। जब यह तय हो गया कि 30 या 40 बच्चों को पढाने के लिये एक शिक्षक चाहिये तो फिर वह नियुक्त होना चाहिये और जिस दिन वह नियुक्त होता है उसी दिन यह भी पता चल जाता है कि वह किस तारीख को सेवा-निवृत होगा। जनहित में काम करने वाली कोई भी सरकार उसके सेवा-निवृत्ति से पूर्व ही नये शिक्षक की नियुक्ति कर लेगी। । परन्तु यहां तो 30-30 हज़ार शिक्षक सेवा निवृत हो जाते हैं और जनहित का ढोंग बिखेरने वाली सरकार कभी अतिथि शिक्षक का तो कभी पात्रता परीक्षा के ड्रामे करके जनता को भ्रमित करती है। लगभग यही स्थिति तमाम सरकारी विभागों की है।
योग्य एवं उपयुक्त अभ्यार्थियों को पदों के लिये आकृष्ट करने के लिये सरकार वेतन, भत्ते व सेवा-शर्तों की घोषणा करती है। जिन लो$गों को ये सब पसंद आते हैं केवल वही आवेदन करते हैं, वह बात अलग है कि सरकार की कुनीतियों के चलते बढती बेरोजगारी व शिक्षण-प्रशिक्षण के घटते अवसरों के चलते का$फी लोग घटिया से घटिया सेवा शर्तों पर भी तैनाती स्वीकार कर लेते हैं। लेकिन एक बार अनुबंधित की गयी सेवा शर्तों को तोडऩा, उनका उल्लंघन करना न केवल विश्वासघात है बल्कि गैर कानूनी भी है। पहले केन्द्र सरकार और अब हरियाणा सरकार अपने कर्मचारियों का वेतन व भत्ते काट कर उनके साथ विश्वासघात नहीं तो और क्या कर रही है।
इस विश्वासघात के लिये जिस ‘प्राकृतिक संकट’ को सरकार दोषी ठहरा रही हैं, वह इनकी अपनी नालायकी व चोर-बाजारी का परिणाम है। क्यों नहीं पहले से देश की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर एवं मजबूत किया गया? क्यों नहीं जो पैसा सरकार ने अपनी एयाशियों पर बर्बाद किया उसे स्वास्थ्य सेवाओं पर लगाया? क्यों नहीं 30 जनवरी को केरल में कोरोना वायरस के प्रवेश के समय सरकार, बार-बार चेताये जाने के बावजूद नहीं चेती? क्यों सरकार ने पहले से रिजर्ब बैंक सहित देश के सारे खजाने को पूंजीपतियों की सेवा में झोंक दिया था?