कोरोना युद्ध
आइसोलेशन सेन्टर हैं या जेल
फरीदाबाद (म.मो.) देशभर में 23 मार्च से लॉकडाऊन की शुरूआत होने के बाद से ही मज़दूरों के उनके घर की ओर महापलायन की भी शुरूआत हो गयी थी। लेकिन सरकार में इस बारे में हर स्तर पर असमंजस व अनिर्णय की स्थिति थी। कभी घर जाने पर रोक तो कभी खुली छूट। हां अमीरों के लिये कोई असमंजस या अनिर्णय नहीं था। उनको और उनके सुपुत्रों को हवाई जहाजों व लक्जरी बसों से सरकार द्वारा खुद उनके घर पहुंचाया गया। उसके उलट मज़दूरों को रास्ते में जहां कही भी जिसके हाथ लगा, वहां की पुलिस ने रोक कर और ठोक-पीट कर आइसोलेशन सेन्टर में बन्द कर दिया।
‘मज़दूर मोर्चा’ की टीम ने 22 अप्रैल को सूरजकुंड पर राधास्वामी आश्रम में बनाये गये ऐसे ही एक ‘आईसोलेशन सेन्टर’ को देखने की कोशिश की। इसके लिये दोपहर 12 बजे यह टीम वहां पहुंची। गेट पर ही आश्रम के गार्ड ने रोक कर तहकीकात की। फिर उसने फोन पर अन्दर किन्हीं इन्चार्ज से बात करने के बाद बताया कि अन्दर जाने के लिये आपको पास बनवाना पड़ेगा। काफी पूछताछ के बाद यह बताया गया कि स्थानीय थाने से यह पास बनवाया जा सकेगा।
‘मज़दूर मोर्चा’ की टीम ने गेट पर ही तैनात एक हरियाणा पुलिस के हवलदार से थाने का नम्बर लेकर उनके लैण्डलाइन नम्बर पर बात की। यह जानकर कि ‘मज़दूर मोर्चा’ अखबार की टीम है, कहा गया कि आप वहीं रूकिये थोड़ी ही देर में सादी वर्दी में ए.एस.आई. गुलशन वहां पहुंचेंगें । लेकिन करीब 20 मिनट इन्तजार करने के बाद भी एएसआई गुलशन कुमार नहीं पधारे जबकि थाना वहां से सिर्फ पांच मिनट की पैदल की दूरी पर है। इस पर जब दुबारा थाने में फोन किया गया तो बार-बार फोन करने पर भी फोन नहीं उठाया गया। थक-हार कर लगभग 40 मिनट बाद मोर्चा की टीम वहां से वापिस आ गई।
सवाल ये है कि जेल में भी कैदी हो या हवालाती सबसे मुलाकात की जा सकती है। तो फिर आइसोलेशन सेन्टर क्या जेल से भी ऊपर है जहां मीडिया तक को जाने की इजाजत नहीं है। ध्यान रहे कि ये आईसोलेशन सेन्टर कोई अस्पताल नहीं है जहां कोरोना के मरीज़ों को रखा गया हो, जिसके लिये बहुत सतर्कता बरतनी जरूरी हो। ये घर जाते रास्ते से पकड़ कर लाये गये गरीबों के विश्राम गृह हैं। फिर वहां इतनी गोपनियता क्यों? निश्चित रूप से वहां स्थितियां अच्छी नहीं होंगी सो पोल खुलने के डर से ये सख्ती बरती जा रही है। चारों तरफ से सुरक्षित इस जेलनुमा आश्रम में तीन-तीन पुलिस वालों और गार्डों का पहरा शक पैदा करता है। राम जाने अन्दर रहने वाले बेचारे गरीबों पर क्या गुजर रही होगी।