जब बैंक कर्मियों ने यह पूछा कि किसके आदेश से यह लडक़े हाथों में डंडा लिए खड़े हैं तो उन्होंने कहा मेरे आदेश से। भारत सिंह का दंभ यह था कि उन्होंने कहा मैंने उन्हें पुलिस मित्र के तहत ये अथॉरिटी दी है

जब बैंक कर्मियों ने यह पूछा कि किसके आदेश से यह लडक़े हाथों में डंडा लिए खड़े हैं तो उन्होंने कहा मेरे आदेश से। भारत सिंह का दंभ यह था कि उन्होंने कहा मैंने उन्हें पुलिस मित्र के तहत ये अथॉरिटी दी है
April 20 05:31 2020

 

बैंककर्मी बेहाल : दिल्ली पुलिस के ये हाल हैं तो बाकियों के कैसे होंगे?

मजदूर मोर्चा ब्यूरो

दिल्ली: बैंक ऑफ इंडिया की केशोपुर ब्रांच, जो थाना विकासपुरी क्षेत्र के अंतर्गत आता है उसके पुलिस बीट इंचार्ज भारत सिंह अपने आप को देश के प्रधानमंत्री से कम नहीं समझ रहे। पॉवर का नशा ही कुछ ऐसा है।

बात कुछ यूँ है कि केशोपुर रूरल ब्रांच, बैंक ऑफ इंडिया के कर्मचारी देश भर के बैंक कर्मियों की ही तरह जरूरी सेवाओं के तहत कोरोना के इस दौर में भी ड्यूटी करने को मजबूर हैं। मुख्य सडक़ से बैंक पहुचने के चंद रास्ते ही खुले थे। उनमे से एक केशोपुर की झुग्गियों के बीच से होकर गुजरता है और उसी मार्ग को बैंककर्मी दफ्तर आने-जाने के लिए इस्तेमाल भी करते हैं।

रोज की ही तरह 17 अप्रैल के दिन बैंककर्मी जब बैंक आने के लिए मुख्य मार्ग से इस सडक़ पर मुड़े तो पाया कि टेंट हाउस की मेजों को सडक़ पर लगा कर स्वयं सेवक नाम की टीशर्ट पहने तीन लडक़े रास्ता रोके खड़े थे। पूछने पर कहा कि आप दूसरे रास्ते जाइये। ऐसा करने का अधिकार उन्हें पुलिस ने दिया है, ये कहते हुए उन लडक़ों की भावभंगिमा किसी गुंडे से कम नहीं थी। हाथों में डंडे लिए इन लडक़ों से बैंक कर्मियों ने उलझना ठीक नहीं समझा और दूसरे रास्तों को खोज कर बैंक पहुंचे।

बैंक आकर जब कर्मियों ने पुलिस बीट के सिपाही भारत सिंह को फोन किया तो उन्होंने फोन पर यह कहते हुए सांत्वना दी कि आप लोगों को किसी किस्म की समस्या नहीं आने दी जाएगी। थोड़ी देर बाद भारत सिंह बिना अपना नेम बैच लगाये बैंक में दाखिल हुए और बैंक मेनेजर को ये समझाते हुए लगभग दबका मारने लगे कि क्यों इन लडक़ों का यहाँ खड़ा होना जरूरी है।

भारत सिंह से जब बैंक कर्मियों ने यह पूछा कि किसके आदेश से यह लडक़े हाथों में डंडा लिए खड़े हैं तो उन्होंने कहा मेरे आदेश से। भारत सिंह का दंभ यह था कि उन्होंने कहा मैंने उन्हें पुलिस मित्र के तहत ये अथॉरिटी दी है कि वे रास्ते पर पहरा दें। बैंक कर्मियों ने भारत सिंह की इस गैरकानूनी बात का विरोध किया और पूछा कि आप ऐसे कैसे किसी को खुद ही पुलिस मित्र नियुक्त कर सकते हैं और उनके हाथ में डंडे पकड़ा सकते हैं। इसपर भारत सिंह बिगड़ते हुए बोले कि हम बस चार सरकारी पुलिसकर्मी ही पूरे इलाके की व्यवस्था संभाल रहे हैं और मैं यहाँ आप लोगों से सलाह लेने नहीं आया। बस आपको कोई समस्या हो तो बता देना रास्ता खुल जाएगा आपके लिए।

सवाल यह है कि जो रास्ता बंद किया गया है वो किस उद्देश्य से किया और क्या सामाजिक दूरी बनाने के इस सतही उद्देश्य में जो लडक़े रास्ता रोक कर दादागिरी कर रहे हैं वो खुद ही आपस में बैठ कर गपशप कर रहे हैं और सामजिक दूरी के सभी प्रावधानों को खुद ही ताक पर फेंक छोड़ा है। क्या ऐसे किसी भी व्यक्ति के हाथ में डंडा पकड़ा देने की पॉवर सिपाही भारत सिंह की है? क्या सच में ऐसे कोई पुलिस मित्र भारत सिंह जैसे सिपाही के स्तर पर नियुक्त किये जा सकते हैं, या किये गए हैं? अगर हाँ तो फिर वे बिना किसी बैच या ड्यूटी पास के कैसे ड्यूटी कर रहे हैं?

किसी हिंसात्मक घटना के हो जाने की जिम्मेवारी भारत सिंह खुद पर लेंगे? इस पर भारत सिंह ने खुद से कहीं अधिक पढ़े-लिखे बैंक कर्मियों पर बिना नेम प्लेट लगी वर्दी की धौंस जमाते और खुद को ज्ञानी की संज्ञा देते हुए कहा कि, आपको डंडा मारा तो नहीं, आप अपना काम करो बाकी सब मुझपर छोड़ दो। और आप लोगों को ये सब दिख रहा है पर जो उत्तर प्रदेश में लोग कर रहे हैं उसको देखा आपने।

भारत सिंह की ऐसी बातों से साफ जाहिर था कि किसी औसत दर्जे के सांप्रदायिक दिमाग वाले आदमी से कम सोच का ये सिपाही किस किस्म की कानून व्यवस्था लागू करवा रहा है और इस इलाके के डीसीपी एवं दिल्ली पुलिस कमिश्नर क्या ऐसे किसी पुलिस मित्र के होने की पुष्टि करते हैं? या कोरोना के नाम पर सडक़ छाप गुंडों को अपनी भड़ास निकालने के लिए खुला छोड़ा गया है? जिन सडक़ छाप गुंडों को रास्ते की जिम्मेवारी देकर भारत सिंह ने यह बताया कि वे इस समय उनकी मदद कर रहे हैं, क्या उन्होंने यह सोचने की जहमत उठाई कि जो बैंक कर्मी अपनी सुरक्षा की चिंत्ता कर रहे हैं वे इस समाज और देश की असल सेवा में जुटे हुए हैं।

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