नौकरी के लिये बहुत से कर्मचारी जान का जोखिम नहीं लेना चाहेंगे, नौकरी जाती है तो जाय,  जान है तो जहान है, नौकरी तो फिर कहीं न कहीं मिल ही जायेगी।

नौकरी के लिये बहुत से कर्मचारी जान का जोखिम नहीं लेना चाहेंगे, नौकरी जाती है तो जाय,  जान है तो जहान है, नौकरी तो फिर कहीं न कहीं मिल ही जायेगी।
March 31 10:31 2020

गोल्ड फील्ड मेडिकल कॉलेज अस्पताल कब्ज़े में लिया

छांयसा के निकट मोठूका गांव स्थित गोल्ड फील्ड नामक मेडिकल कॉलेज के प्रबन्धन द्वारा करीब तीन साल पहले हाथ खड़े कर लिये गये थे। छात्रों के भारी हंगामें व प्रदर्शनों के बाद सरकार ने उन्हें विभिन्न कॉलेजों में स्थानांतरित कर दिया था। लेकिन हर जि़ले में मेडिकल कॉलेज खोलने का ढोल पीटने वाली सरकार ने इस मेडिकल कॉलेज का अधिग्रहण नहीं किया, लिहाज़ा तब से यह मेडिकल कॉलेज बीरान पड़ा है। बैंकों ने इस पर अपने ताले लगा रखें हैं।

स्वास्थ्य सेवायें बेहतर करने की कोई मंशा इस सरकार की होती तो 500 बेड के बने-बनाये इस मेडिकल कॉलेज अस्पताल का अधिग्रहण कर सकती थी। इससे न केवल स्थानीय लोगों को बेहतर चिकित्सा सेवायें उपलब्ध होती बल्कि 100 डॉक्टर भी प्रति वर्ष यहां से पैदा होते। परन्तु जनविरोधी सरकार भला ऐसा क्यों करने लगी?

कोरोना वायरस के रूप में जब आग लगी तो सरकार को कुएं के रूप में ये मेडिकल कॉलेज नज़र आया है। यहां के 500 बेड को झाड़-पोछ कर तैयार करने की फिलहाल बात-चीत चल रही है। झाड़-पोछ तो केवल तब की जायेगी जब सरकार के पास और कोई विकल्प नहीं बचेगा यानी ईएसआई के 100 बेड तथा अन्य निजी अस्पतालों के बेड फुल हो जायेंगे।

बिल्डिंग और बेड तो झाड़-पोछ कर तैयार हो ही जायेंगे परन्तु वहां काम करने के लिये डॉक्टर व अन्य स्टाफ रातों-रात कहां से पैदा करेंगे? विदित है कि पूरे राज्य में न तो ईएसआई का और न ही हरियाणा सरकार का कोई ऐसा अस्पताल एवं डिस्पेंसरी मौजूद है जिसमें  स्टाफ पूरा हो। लगभग हर जगह आधे से अधिक पद रिक्त पड़े हैं। जाहिर है गहराते संकट की स्थिति में इन्हीं अस्पतालों एवं डिस्पेंसरियों से स्टाफ लेकर ग्रीन फील्ड के अस्पताल में बैठा दिया जायेगा। समझा जा सकता है कि ऐसे में वहां क्या होगा जहां पहले से ही स्टाफ कम था?

ठेकेदारी कर्मचारियों को प्रोत्साहन

विदित है कि ईएसआईसी के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में लगभग आधे पद खाली पड़े हैं। जो पद भरे भी हैं उनमें से भी अधिकांश ठेकेदारी में हैं। कोरोना के इस संकट काल में जान का जोखिम लेने से बचने के लिये ठेकेदारी वाले कर्मचारियों में गैरहाजिर होने की प्रवृत्ति बहुत बढने लगी। गैर हाजि़र होने पर उनका वेतन ही काटा जा सकता है, अधिक से अधिक उनको नौकरी से हटा सकते हैं। लेकिन इस कच्ची नौकरी के लिये बहुत से कर्मचारी जान का जोखिम नहीं लेना चाहेंगे, नौकरी जाती है तो जाय,  जान है तो जहान है, नौकरी तो फिर कहीं न कहीं मिल ही जायेगी। ऐसे में इन कर्मचारियों को बांधे रखने के लिये मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. असीम दास ने ड्यूटी के दौरान इन्हें भोजन और आधा लिटर दूध पिलाने के आदेश दिये हैं। शुरू में उनका विचार यह सुविधा केवल ठेकेदारी कर्मचारियों को देने का था परन्तु अन्य डॉक्टरों के सुझाव पर यह सुविधा तमाम कर्मचारियों के लिये घोषित कर दी गयी। इनकी कुल संख्या 3000 के करीब हो सकती है।

 

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Mazdoor Morcha
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