खट्टर के राज में कूड़ा उठाने वालों से वसूली जा रही रंगदारी
फरीदाबाद (म.मो.) धन्ना सेठों से जब रंगदारी वसूलने की धमकी भी आती है तो मीडिया हंगामा खड़ा कर देता है, शासन-प्रशासन बेचैन हो उठता है। परन्तु इसी शहर में घरों से कूड़ा उठाने वाले सैंकड़ों दलित सफाई कर्मियों से नियमित रंगदारी वसूली के बावजूद न शासन को कोई परवाह है न प्रशासन को।
जब से शहर बसने शुरू हुए हैं घर-घर से कूड़ा उठाने का कार्य म्यूनिसिपल कमेटियां करती आई हैं। शहरों के विस्तार के साथ-साथ कमेटियों का स्वरूप नगर निगमों ने ले लिया।
हज़ारों-लाखों के बजट सैंकड़ों करोड़ से हज़ारों-लाखों करोड़ के हो गये। ऐसी ही एक नगर निगम यहां भी है जिसने बरसों पहले घरों से कूड़ा उठाना बंद कर दिया था तो शहरवासियों ने अपने खर्च पर कूड़ा उठाने वाले रख लिये। प्रत्येक घर से इन्हें 50 से 100-200 रुपये तक मासिक मिलने लगे। इनका काम केवल घरों से कूड़ा उठा कर, जगह-जगह बने निगम के कूड़ा स्थलों पर डालना था, जहां से निगम के ट्रक उसे उठा कर कहीं दूर डालते थे।
लेकिन समय बीतने के साथ-साथ निकृष्ट एवं भ्रष्ट प्रशासन द्वारा शहर भर का कूड़ा उठा कर कहीं डालना भी एक बड़ी समस्या बन गयी। इतना ही नहीं गली-मुहल्लों की झाड़-बुहार भी जब इसके बस की न रही तो निगम प्रशासन ने ईको ग्रीन नामक एक चाइनीज़ कंपनी को ठेका दे दिया। घरों से कूड़ा एकत्र करना भी इसी कम्पनी का दायित्व था। इस कम्पनी ने गुंडागर्दी करके पहले से कूड़ा उठाने वालों को भगाने का प्रयास किया। लेकिन जब कम्पनी शहर-वासियों को संतोषजनक सेवा न दे सकी तो लोगों ने फिर से अपने पुराने कूड़ा उठाने वालों को काम पर लगा लिया।
इस से निपटने के लिये कम्पनी ने कुछ गुंडों को भर्ती कर लिया जो बीते करीब दो वर्षों से कूड़ा उठाने वालों से जबरन वसूली करते आ रहे हैं। हर माह के पहले सप्ताह में ये गुंडे कूड़ा उठा कर लाने वालों की कुल कमाई का करीब एक चौथाई वसूलते हैं। कमाई का आधार उसके द्वारा कूड़ा उठाये जाने वाले घरों की संख्या होता है।
चौथ न देने पर उन्हें मारा-पीटा जाता है तथा उनकी रिक्शा व रेहड़ी आदि तोड़ दी जाती है। इस मामले की पुलिस एवं निगम अधिकारियों से कई बार शिकायत किये जाने के बावजूद केवल इस लिये कार्यवाही नहीं हुई कि निगम ने ईको ग्रीन को ठेका दे रखा है। परन्तु ठेके की किसी भी शर्त में यह नहीं लिखा है कि वह इस तरह से जबरन वसूली करेगी। जाहिर है यह सब लूट शासन-प्रशासन के संरक्षण में ही हो रही है।