कोरोना की आड़ में शाहीनबाग के प्रदर्शन को तोडऩे के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार ने मीडिया में खबरें प्लांट कराईं।

कोरोना की आड़ में शाहीनबाग के प्रदर्शन को तोडऩे के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार ने मीडिया में खबरें प्लांट कराईं।
March 25 04:49 2020

शाहीनबाग एक बार फिर जनता कफ्र्यू का मुकाबला करने को तैयार

मजदूर मोर्चा ब्यूरो

नई दिल्ली: कोरोना में एक बार फिर शाहीनबाग का टेस्ट होने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च 2020 रविवार को देशभर में जनता कफ्र्यू घोषित कर दिया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इशारों में सभी धरना-प्रदर्शन खत्म करने और न करने पर कार्रवाई की धमकी दी है। लेकिन शाहीनबाग की दादियों ने ऐलान कर दिया है कि लगातार तीन महीने से चल रहा उनका शांतिपूर्ण आंदोलन इस रविवार को भी जारी रहेगा। उनके वहां से हटने या उठने का सवाल ही पैदा नहीं होता।

पिछले सोमवार को दिल्ली सरकार ने कहा था कि कोरोना महामारी के मद्देनजर 50 से अधिक लोगों वाले समारोहों की अनुमति नहीं है, जिसकी संख्या घटाकर अब 20 कर दी गई है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था, यह आदेश शाहीनबाग पर भी लागू होता है। इस बयान के बाद प्रदर्शनकारियों ने कहा कि किसी भी समय 50 से अधिक महिलाएं विरोध प्रदर्शन नहीं कर रही हैं। एक प्रदर्शनकारी ने कहा कि रविवार को, हम छोटे टेंटों के नीचे बैठेंगे। केवल दो महिलाएं हर टेंट के नीचे बैठेंगी और अपने बीच एक मीटर से अधिक दूरी बनाए रखेंगी।

एक अन्य प्रदर्शनकारी रिजवाना ने कहा कि महिलाएं हर सावधानी बरत रही हैं और वे हर समय बुर्के में ढकी रहती हैं। उन्होंने कहा कि नियमित रूप से हाथ धोना हमारी जीवनशैली का हिस्सा है। हम दिन में पांच बार नमाज अदा करते हैं और हर बार हाथ धोते हैं। प्रदर्शन के प्रमुख आयोजकों में से एक, तासीर अहमद ने कहा कि पर्याप्त संख्या में सेनिटाइटर और मास्क की व्यवस्था की गई है और प्रदर्शनस्थल को नियमित संक्रमण-मुक्त किया जा रहा है।

मोदी सरकार और केजरीवाल सरकार को उम्मीद थी कि शाहीनबाग की महिलाएं उनकी धमकी के बाद वहां से हट जाएंगी, लेकिन इसका नतीजा उल्टा निकला। कोई दिन ऐसा नहीं जाता, जिस दिन इस प्रदर्शन को हटाने की कोशिश केंद्र और दिल्ली सरकार द्वारा न की जाती हो, यह नामुमकिन सी बात है। लेकिन महिला प्रदर्शनकारी सरकार से दो कदम आगे चल रही हैं। सरकार की घोषणा से पहले ही शाहीनबाग की महिलाओं ने कोरोना के मद्देनजर धरनास्थल पर अपने बैठने की जगह का खास इंतजाम कर लिया। वहां जाकर देखा जा सकता है कि महिलाएं एक मीटर से भी ज्यादा दूरी पर बैठी हुई हैं।

मीडिया का खेल

कोरोना की आड़ में शाहीनबाग के प्रदर्शन को तोडऩे के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार ने मीडिया में खबरें प्लांट कराईं। इन खबरों में मीडिया ने बताया कि कोरोना की वजह से शाहीनबाग में महिलाएं अब नहीं आ रही हैं। वहां अब एक समय में 50 महिलाएं भी नहीं होती हैं। मीडिया ने मौके पर जाना उचित नहीं समझा और हवा में इस आशय की खबरें छपवा दी गईं और टीवी पर दिखा दी गईं कि शाहीनबाग में महिलाएं अब बहुत कम हो गई हैं। वहां सिर्फ दादियां बैठी हुई हैं। लेकिन मीडिया के इन मदारियों की बात खारिज हो गई, जब वहां बड़े पैमाने पर लोग वहां रहने गए हैं।

सुनियोजित दंगा कैसे था

इस बीच जाफराबाद में दूसरा शाहीनबाग शुरू करने के बाद हुई हिंसा के पीछे की साजिश एक-एक कर बेनकाब हो रही है। हालांकि दिल्ली पुलिस ने इस संबंध में अब तक सौ से ज्यादा एफआईआर जो दर्ज की है, उसमें दर्जनों एफआईआर को पुलिस ने एक जैसी दर्ज किया है। सभी एफआईआर की भाषा एक जैसी है। इस बीच बीबीसी की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि बीबीसी की महिला पत्रकार ने दिल्ली नरसंहार वाले इलाकों में जाकर पता लगाया है कि ये हमले सोची समझी साजिश का नतीजा था। जिस तरह बिना किसी हिंदू धार्मिक स्थल को नुकसान पहुंचे 14 मस्जिदों को निशाना बनाया गया, उससे पता चलता है कि मस्जिदों को जानबूझकर निशाना बनाया गया। इसके पीछे भी लोगों ने साजिश रचने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

कुछ मस्जिदें ऐसी दिखती हैं जैसे कि उन खिड़कियों के माध्यम से आग लगाई गई थी जो उनके कांच के शीशे टूट जाने के बाद खुली थीं। किताबों को फाडऩे, फर्नीचर को तोडऩे, नलों को बंद करने, कुछ भी टूटने से बचने के लिए उन पर हमला किया। जिन मस्जिदों में इमाम या मुअजि़्जन समय से भागने में असमर्थ थे, उन्हें भीड़ द्वारा छड़ और डंडों के साथ सेट किया गया था। कई हमले दिन के उजाले में हुए। मुस्लिम और हिंदू के करीबी लोग जो रहते हैं या काम करते हैं, उन्होंने गवाही दी कि मस्जिदों पर “जय श्री राम” के नारे लगाने वाले विभिन्न आकारों की भीड़ द्वारा हमला किया गया था। सभी 14 मस्जिदें और एक दरगाह 10 वर्ग किमी से कम के क्षेत्र में स्थित हैं। ये सभी मिश्रित पड़ोस में हैं। उनमें से सबसे पुराना 1970 के दशक के मध्य में बनाया गया था। स्थानीय निवासियों के अलावा कुछ आस-पड़ोस में रह रहे हैं, जिन्हें ढूंढना आसान नहीं है। जहां भी एक मस्जिद को जलाया गया है, मुस्लिम घरों और व्यवसायों को भी नष्ट कर दिया गया है। पूरे क्षेत्र में कई हिंदू मंदिरों में से एक, बड़े और छोटे, पर हमला किया गया था। साफ-सफाई शुरू होती है और न्याय बहुत लगता है लंबे समय से बंद पड़ा है। मस्जिदों के व्यवस्थित विनाश के सबूत हैं, जो धार्मिक असहनशीलता का संकेत है।

ये मस्जिदें दिल्ली नरसंहार के दौरान शहीद हुईं….

मदीना मस्जिद, शिवविहार

सैयद चांद बाबा दरगाह, चांद बाबा

मदीना मस्जिद, शिवविहार

तैयबा मस्जिद, अशोक नगर शिवविहार – 3

मौला बख्श मस्जिद, अशोक नगर

चांद मस्जिद, अशोक नगर

मुबारक मस्जिद गढ़ी मेंडू

गामड़ी मस्जिद, गामड़ी,

मीना मस्जिद, भागीरथी विहाक

मदीना मस्जिद, मिलन गार्डन

मदीना मस्दिद, भागीरथी विहार

अल्लाहवाली मस्जिद

जन्नती मस्जिद

टायर मार्केट मस्जिद, गोकुलपुरी

फातिमा मस्दिग, गली नं. 29 शेहरपुर चौक

फारुकिया मस्दिद ब्रजपुरी में।

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