फरीदाबाद (म.मो.) इस वित्तीय वर्ष में नगर निगम 50 लाख का जुर्माना एनजीटी में व एक करोड़ पन्द्रह लाख का जुर्माना पर्यावरण बोर्ड में भर चुका है। परन्तु इससे भ्रष्ट एवं निकमे अफसरों की सेहत पर कतई कोई असर नहीं पड़ा, जो इसके लिये जिमेवार हैं, उनकी बेढंगी चाल एवं कार्यशैली ज्यों की त्यों बरकरार है।
समझने वाली बात यह है कि यह 1.65 करोड़ की रकम कहां से आई और कहां गयी। यह रकम जनता से बतौर टैक्स द्वारा, सरकार से प्राप्त ग्रांटों द्वारा और निगम की जायदाद बेचने से प्राप्त की गयी थी। यह रकम गयी है सरकार के खजाने में जहां से यह रकम देश भर की विभिन्न परियोजनाओं पर खर्च होती है। यानी यही रकम या इसका कुछ भाग घूमफिरर कर किसी न किसी रूप में वापस भी आ जायेगा।
लेकिन, नगर निगम जो पहले से ही कंगाली में बेहाल है, आज उसका क्या होगा? उसकी चिंता करने की जरूरत नहीं, क्योंकि वेतन व भत्ते तो सभी निगम कर्मियों को मिलने ही है, आज नहीं तो कल मिल जायेंगे, जनहित में विकास कार्यों की तो चिंता ही किसे है? चिंता हो भी क्यों, इसके लिये तो ये अधिकारी बने ही नहीं हैं। ये लोग तैनात हैं केवल जनता के खून-पसीने की कमाई को चूसने के लिये।
इतना बड़ा जुर्माना भरने के बावजूद निगम अधिकारियों की कार्यशैली में कहीं भी कोई परिवर्तन नज़र नहीं आ रहा। सीवरेज का पानी ज्यों का त्यों जहां-तहां सड़कों पर भरा खड़ा है। सेक्टर 46 के लोगों की शिकायत पर एनजीटी ने कड़ा नोटिस लेते हुये बेशक नगर निगम पर 50 लाख का जुर्माना ठोक दिया, परन्तु इससे निगम अधिकारियों ने कतई कोई सबक नहीं सीखा। उसके बाद शहर में बढ़ती गंदगी से होने वाले प्रदूषण का नोटिस लेते हुये पर्यावरण बोर्ड ने 1.15 करोड़ का जुर्माना ठोक दिया लेकिन स्थिति ज्यों की त्यों बरकरार है। यदि उक्त जुर्माने सबन्धित अधिकारियों के वेतन एवं जायदादों से वसूल किये जाते तो स्थिति में पूर्ण सुधार होना निश्चित था। परन्तु शासन-प्रशासन ऐसा करने वाला है नहीं क्योंकि जनता का खून चूसने में वह भी बराबर का भागीदार है।
महकमे के मंत्री अनिल विज को सीआईडी विभाग कब्जाने की बेहद हड़बड़ी है। परन्तु जहां आंखों के सामने इतना घोटाला हो रहा हो, उसे देखते की फुर्सत नहीं।