फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) पूरे हरियाणा में चंद सरकारी स्कूल ही ऐसे होंगे जिनमें शौचालय, पेयजल, बिजली व बैठने की उचित व्यवस्था हो; पुस्तकालय, साइंस लैबोरेट्री व खेल-कूद की तो बात ही छोड़ दीजिए। बीते सप्ताह हाईकोर्ट की फटकार के बाद जुमलेबाज़ खट्टर सरकार ने पूरे हरियाणा की बात न करके केवल फऱीदाबाद के मात्र 19 स्कूलों में कुछ सुधार की घोषणा की है। इसमें कहा गया है कि दिल्ली की तरह यहां भी बहुमंजिला स्कूल बनाए जायेंगे। इनमें तमाम आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध होंगी। इसके लिये 46 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
शिक्षा विभाग में निर्माण कार्य कराने के लिये सारा पैसा सम्बन्धित स्कूल के मुखिया को ही दे दिया जाता है। जहां प्रिंसिपल अथवा मुख्य अध्यापक न हो तो वहां कामचलाऊ मुखिया को ही यह रकम दे दी जाती है। कई बार तो ईमानदार प्रिंसिपल या मुख्य अध्यापक को केवल इसलिये हटा कर किसी को कमाचलाऊ मुखिया बनाया जाता है जो लूट कमाई से अच्छा हिस्सा अफसरों व नेताओं को दे सके। इसका जीता-जागता उदाहरण 70 लाख से बना सेहतपुर का दो मंजिला स्कूल है। इसके बनते ही इसे असुरक्षित घोषित कर दिया गया था जिसे तोडऩे पर खर्च अलग से आयेगा।
46 करोड़ का उक्त बजट भी लगभग इसी तरह से मिल-बांट कर डकारा जाएगा। सरकारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि निर्माण कार्य की निगरानी के लिये डीपीसी (जिला प्रोजेक्ट को-ऑॅर्डिनेटर), उनसे जुड़े एसडीओ व जेई समेत एक कमेटी बनाई जाएगी। विदित है कि डीपीसी उपजिला शिक्षा अधिकारी ही होता है जिसे निर्माण कार्य व तकनीक का कोई ज्ञान नहीं होता। यह पद जो अक्सर खाली रहता है तो जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी अथवा जिला शिक्षा अधिकारी ही इस काम को देखता है। इन सब के ऊपर बतौर चेयरमैन अतिरिक्त उपायुक्त होता है।
कहने को तो स्कूल मुखिया ही काम कराता है लेकिन वास्तव में वह उक्त कमेटी के आदेशों पर ही काम करता है। देश में जो लूट-कमाई की प्रथा चल रही है उसके अनुसार कमेटी में बैठे लोगों का असली काम केवल लूट में से अपना हिस्सा वसूलना होता है। ऐसे में जब मुनीश चौधरी जैसी डीईओ तथा सतबीर मान जैसे एडीसी कमेटी के चेयरमैन हों तो तमाम इमारतें सेहतपुर जैसी ही बनेंगी। ऐसी अनेकों इमारतें न केवल इस जि़ले में बल्कि पूरे राज्य भर में देखी जा सकती हैं। इन हालात को देखते हुए समझा जा सकता है कि उक्त 46 करोड़ में से 10 करोड़ भी सही से लगने वाले नहीं हैं। ईमानदारी का ढोल पीटने वाले खट्टर उक्त बजट जारी करने से पहले यदि बीते नौ वर्षों में डकारे गये बजट का हिसाब ले लेते तो तमाम स्कूलों की स्थिति वैसे ही सुधर जाती।