करनाल चीनी मिल के खट्टर उद्घाटनके बाद 700 बोरी चीनी गयी पानी में
करनाल (म.मो.) बेशक यहां की सरकारी चीनी मिल 45 साल पुरानी है, परन्तु इसका उद्घाटन तो हर साल सीजन शुरू होने पर किया ही जा सकता है और फिर जब करने को कुछ भी न हो तो यही काम करने में हर्ज भी क्या है। बीते चार-पांच माह में करोड़ों रुपये मिल की ओवरहॉलिंग पर खर्च करने के बाद आठ नवम्बर को खट्टर जी के कर कमलों से नये सीजन का मुहूर्त कराया गया। यह मुहूर्त इतना अशुभ रहा कि तीन दिन बाद यानी 11 तारीख को 700 बोरी की पहली खेप बाहर आनी थी वह बनते-बनते सारी पानी में बह गयी। हुआ कुछ यूं कि चीनी दाना बनाने की प्रक्रिया में जब अति गर्म माल पैन में आया तो वह ऐसा लीक हुआ कि सारी चासनी पानी में बह कर एफ्ल्यूंट प्लांट में पहुंच गयी जहां 10 लाख लीटर पानी होता है। यानी सब गया मिट्टी में।
दरअसल मुहूर्त कोई भी शुभ-अशुभ नहीं होता और न ही किसी के कर कमल इसमें कुछ कर पाते हैं। होता केवल यह है कि मेंटेनेंस अथवा मुरम्मत के नाम पर जो करोड़ों रुपये खर्च किये जाते हैं, उसमें अफसरों व नेताओं की मोटी सेंधमारी होती है। बार-बार आरटीआई लगाने के बावजूद मिल अधिकारी मुरम्मत पर हुए खर्च का कोई हिसाब देने को तैयार नहीं।
11 तारीख के बाद तीन दिन की प्रक्रिया पूरी करके 14 तारीख को फिर चीनी बनी। लेकिन चीनी का उत्पादन क्षमता का एक चौथाई भी नहीं हुआ। जिस क्रिस्टलाइज़र मशीन में दाना बनता है उसी में से काफी चीनी उछल-उछल कर बाहर गिर कर बर्बाद हुई जा रही है। जानकार बता रहे हैं कि अभी तक अधिकारियों ने मिल को ओवरहालिंग के बाद ठेकेदार से अधिग्रहीत ही नहीं किया है, न जाने कब तक ट्रायल के नाम पर कितनी चीनी व कितना धन यूं ही बर्बाद किया जाता रहेगा। इस प्रकार 11 तारीख से लेकर खबर लिखे जाने तक प्रतिदिन 30-40 लाख रुपये का नुक्सान इस मिल को हो रहा है जिसका कोई जवाब किसी के पास नहीं।
नियमानुसार बल्कि ठेके की शर्तों के अनुसार मेंटेनेंस के दौरान खर्च होने वाली बिजली का बिल ठेकेदार के जिम्मे होता है। इस बाबत जब आरटीआई लगा कर पूछा गया तो 2 जुलाई 2021 को बताया गया कि ठेकेदार ने अपने डीजल सेट की बिजली का इस्तेमाल किया है लेकिन चीफ एकाउंट्स अफसर अपने लिखित जवाब में कहते हैं कि इस मद में ठेकेदार को डेबिट नोट जारी कर दिया गया है। बीते पांच साल में कितनी रकम का डेबिट नोट जारी हुआ है, इस बाबत अधिकारी खामोश हैं। चीनी उत्पादन के दौरान रस से उठने वाली भाप से बिजली बनाने की व्यवस्था भी है। मिल में लगे टर्बाइन से 18 मेगावट बिजली बनाई जाती है जबकि मिल की कुल खपत इससे काफी कम है। फालतू बिजली खरीदने के लिये बिजली विभाग से एक समझौता भी हुआ पड़ा है लेकिन इसके लिये आवश्यक सब स्टेशन जो मिल ने बनवाना है वह कई वर्षों से नहीं बन पाया। इसके चलते फाल्तू बिजली बर्बाद हो रही है। यानी जिस बिजली को बेचने से मिल को कुछ आय हो सकती थी, वह बर्बाद हो रही है।
इन तमाम बर्बादियों के बावजूद किसी मंत्री या किसी अधिकारी की सेहत पर कतई कोई असर नहीं क्योंकि यह घाटा इनमें से किसी के घर से नहीं जा रहा, जा रहा है तो केवल गरीब करदाता की जेब से। इस तरह का लूट खेल कोई अकेली करनाल मिल में नहीं हो रहा, लगभग सभी चीनी मिलों का यही हाल है। चीनी मिल ही क्या सरकार द्वारा चलाये जा रहे प्रत्येक उपक्रम का यही हाल है। ऊपर से तमगा है भ्रष्टाचार मुक्त हरियाणा का। गौरतलब है कि इतनी बड़ी रकम इस मिल की कार्यक्षमता डबल करने के लिए खर्च की गयी थी। इस खर्च के बाद अपेक्षा की गई थी कि पिढ़ाई क्षमता 35 हजार क्विंटल प्रतिदिन हो जायेगी। लेकिन यह क्षमता 20 हजार क्विंटल से आगे नहीं जा पा रही। और तो और इस पिढ़ाई से भी जो माल बन रहा है वह भी बर्बाद हो रहा है। यानी की इतनी भारी रकम खर्च करने के बाद भी रोजाना मिल को भारी घाटा उठाना पड़ रहा है। निकट भविष्य में इसके सुधरने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे।