23 मार्च-शहीद दिवस गोरे अंग्रेजों से ही नहीं काले अंग्रेजों से भी आज़ादी पाने के लिए प्रेरित करता रहेगा

23 मार्च-शहीद दिवस गोरे अंग्रेजों से ही नहीं काले अंग्रेजों से भी आज़ादी पाने के लिए प्रेरित करता रहेगा
April 02 15:13 2023

सत्यवीर सिंह
‘ज़ुल्म-ओ-ज़बर और शोषण-अन्याय के खि़लाफ़ जंग में जान जाए, तब भी पीछे नहीं हटना’, 23 मार्च, शहीद दिवस, हर साल ये पैगाम लेकर आता है। इंडिया ही नहीं, पाकिस्तान और बांग्लादेश के लोग भी, देश के लाडले सपूतों, क्रांतिकारी अमर शहीदों, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव के सर्वोच्च बलिदान को कभी नहीं भूल सकते। उनका किरदार इतना विशाल है, कि सोते समाज को भी झकझोरने की कूबत रखता है और जो तटस्थ-निष्क्रिय संवेदनहीन हैं, उन्हें लानत भेजता है। देश शहीद-ए-आज़म भगतसिंह और साथियों की प्रतिमाओं पर फूल मालाएं ही नहीं चढ़ा रहा, बल्कि उनके लिखे एक-एक हफऱ् को संजीदगी से पढ़ रहा है, समझ रहा है। देश के मुस्तक़बिल के लिए इससे अच्छी ख़बर नहीं हो सकती, क्योंकि ‘आज़ाद’ भारत में आज, अंधेरा अंग्रेजों के वक़्त से भी ज्यादा घना और दम-घोटू हो चुका है।

‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ की फऱीदाबाद ईकाई ने भी, कम उम्र के अपने छोटे से संगठन के बूते पर, शहीद दिवस बहुत शिद्दत से मनाया। सभी साथी, आज़ाद नगर स्थित चन्द्रिका प्रसाद सामुदायिक केंद्र पर सुबह 11 बजे इकट्ठे  होने शुरू हुए और 11.30 बजे, तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार, हाथों में लाल झंडे, शहीद-ए-आज़म के विचारों के बैनर व झंडियाँ लिए, नारे लगाते सेक्टर 24 औद्योगिक बस्ती की सडक़ों से गुजरते हुए, 12 बजे सभा स्थल, वीनस पार्क पहुंचे। कार्यक्रम के लिए मज़दूरों को छुट्टी लेने के लिए कहा गया था, लेकिन विकट आर्थिक परिस्थितियों के चलते आधे से भी कम मज़दूर साथी ही अपनी दिहाड़ी गंवाने का साहस जुटा पाए। मज़दूरों की जि़न्दगी ऐसी बना दी गई है कि एक दिन भी काम ना मिले, तो चूल्हा नहीं जलता। यही वज़ह है कि लेबर चौक पर खड़ा जो मज़दूर, सुबह 8 बजे अपनी दिहाड़ी 500/ रु बोलता है, 11 बजे के बाद 200/ रु में भी ‘हां’ बोलने को मज़बूर हो जाता है। तलवार की धार पर चलते हुए भी साथियों, हमें, अपने महान शिक्षक, पथप्रदर्शक, प्रिय नेता कार्ल मार्क्स का ये सबक़ हमेशा याद रखना होगा, जो उन्होंने विश्व सर्वहारा के सबसे पहले संगठन, प्रथम कम्युनिस्ट इंटरनेशनल बनाते वक़्त हमें दिया था, ‘‘मज़दूरों की मुक्ति की जंग स्वयं मज़दूरों द्वारा ही जीती जानी है।’’

भले जलूस बहुत बड़ा नहीं था लेकिन रास्ते भर, सडक़ के दोनों ओर खड़े, सैकड़ों मज़दूरों ने मुस्कुराते चेहरों से मोर्चे का स्वागत किया, नारों में साथ दिया। वीनस पार्क के एक ओर वीनस फैक्ट्री है और बाक़ी तीनों ओर बड़े-बड़े कारखाने हैं, जिनके मज़दूर लंच करने इसी पार्क में आते है। मज़दूर सभा के टाइम को इसीलिए 12 से 2:30 बजे तक रखा गया था। हमें बहुत ख़ुशी हुई कि कई सौ साथियों ने सभा में शिरकत की। अपने सवाल रखे और सभी भाषणों को बहुत ध्यान से सुना और तालियों से हमारा हौसला बढाया। सभा के दरम्यान और बाद में अनेक औद्योगिक मज़दूरों ने अपने मोबाइल नंबर साझा किये और ख़ुशी जताई कि एक संगठन मज़दूरों को संघर्ष के लिए संगठित और प्रेरित कर रहा है।

क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा की ओर से कॉमरेड्स नरेश, सत्यवीर और श्रीमती कविता ने संबोधित किया। सभी वक्ताओं ने अमर शहीद क्रांतिकारियों के सर्वोच्च बलिदानों के प्रति लाल सलाम प्रस्तुत करते हुए, उनके बताए रास्ते चलने का अहद लेते हुए, बताया कि किस तरह ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ और ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ पास होते वक़्त, बहरों को सुनाने के लिए केन्द्रीय असेंबली में बम धमाके हुए थे। मोदी सरकार द्वारा ‘लेबर कोड बिल, 2020’ तथा 2019 में संशोधित यूएपीए, उन कानूनों से 100 गुना ज्यादा मज़दूर-विरोधी और जन-विरोधी हैं और कहीं वैसी बेचैनी पैदा नहीं हुई। ये साबित करता है कि हमने भगतसिंह को सिफऱ् रस्मी अंदाज़ में ही याद किया है, उनके लिखे के मर्म को नहीं समझा। गोरे अंग्रेज़ों की जगह काले ‘अँगरेज़’ बैठा दिए जाने को मैं आज़ादी नहीं मानूंगा, शहीद-ए-आज़म का लिखा एक-एक लफ्ज़ सही हो रहा है।

शोषण-उत्पीडऩ की चक्की, मज़दूरों के आक्रोश से महफूज़ रहे, ये जि़म्मेदारी निभा रही जमात बिलकुल हमारे जैसी ही दिखती है, इसीलिए आज, जनता के असली दुश्मनों को पहचानना, अंग्रेजों के वक़्त से कहीं ज्यादा दुश्वार हो गया है। लेकिन, सरमाएदारों के ताबेदारों की नंगई, चूंँकि, बढ़ती जा रही है, इसलिए धुंध छंटने लगी है। ‘देशभक्तों’ के काले चहरे साफ़ नजऱ आने लगे है। अंग्रेज़ों से बारंबार माफ़ी मांगने, गिड़गिड़ाने और पेंशन पाकर वफ़ादार रहने वाले, आज देशभक्ति के सर्टिफिकेट बांट रहे हैं!

न्यू वल्र्ड पब्लिकेशन, दिल्ली के साथी एम एम चन्द्रा जी, जो संगठन की शुरुआत से ही, हमारे बुलावे को सम्मान देते हुए, हमारा हौंसला बढ़ाने ज़रूर आते हैं, कार्यक्रम में पहुंचने वाले पहले व्यक्ति थ। हम दिली अफ़सोस ज़ाहिर करते हैं कि, हमारे कार्यक्रमों को घोषित समय पर शुरू नहीं कर पाते। आगे ध्यान रखा जाएगा।

‘श्रमिक वंचित वर्ग संगठन’ के साथी संतोष कठेरिया और साथी ओंकार जी को अपने कार्यक्रम में पाकर हमें बहुत ख़ुशी हुई। दिल्ली के दक्षिण-पश्चिम कोने में स्थित पालम से, आप ढाई घंटे की यात्रा कर यहाँ पहुंचे थे। मोर्चे के शुरू से सभा के अंत तक, उन्होंने बहुत सक्रिय भागीदारी की। कॉमरेड संतोष कठेरिया ने अपने उद्बोधन में समझाया कि कैसे आज़ादी आन्दोलन में दो धाराएं मौजूद रही। एक धारा भारत के सरमाएदारों, मध्य वर्ग का प्रतिनिधित्व करती थी और ब्राह्मणवाद रोग से ग्रस्त थी, जबकि चंद्रशेखर आज़ाद, बिस्मिल, अशफ़ाक़ और भगतसिंह की धारा देश के शोषित-पीडि़त वर्ग, मज़दूरों-किसानों का प्रतिनिधित्व करती थी। आज सभी मज़दूर संगठनों को संयुक्त मोर्चों में काम करते वक़्त आने वाली बाधाओं को दूर करने की ज़रूरत है। ‘हमें आपस में चर्चा-डिबेट करते हुए साथ में मिलजुलकर काम करना चाहिए’। हम साथी संतोष जी के प्रस्ताव का स्वागत करते हैं और उससे पूरी तरह सहमत हैं।

कॉमरेड ओंकार जी ने अपने बहुत संक्षिप्त वक्तव्य में शहीद-ए-आज़म भगतसिंह के विचारों पर अमल करने पर जोर दिया। साथ ही उन्होंने आगाह किया कि आज भगतसिंह भी संघियों के निशाने पर हैं। उनकी विरासत को बचाने की जि़म्मेदारी भी मज़दूर वर्ग को ही निभानी है क्योंकि हम ही भगतसिंह के असली वारिस हैं।

वीनस कर्मचारी यूनियन के साथियों ने सभा के आयोजन में सहयोग किया। बड़ी तादाद में सभा में उपस्थित रहे। इसके लिए उनके प्रति आभार प्रकट करते हुए और जिन साथियों ने अपने काम से छुट्टी लेकर कार्यक्रम में भागीदारी की, उनके प्रति विशेष आभार प्रकट करते हुए सभा संपन्न हुई।

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