18 करोड़ की आयातित मशीन द्वारा ईएसआई मेडिकल कॉलेज में रोबोट सर्जरी की तैयारी

18 करोड़ की आयातित मशीन द्वारा ईएसआई  मेडिकल कॉलेज में रोबोट सर्जरी की तैयारी
February 15 02:24 2023

रीदाबाद (म.मो.) जो मज़दूर अपने वेतन से निरंतर ईएसआई को अंशदान देने के बावजूद उचित एवं आवश्यक चिकित्सा सेवाओं से वंचित रह जाया करते थे, उनके लिये रोबोट सर्जरी किसी वरदान से कम न होगी। सुपर स्पेशलिटी चिकित्सा क्षेत्र में एक के बाद एक सीढिय़ां चढते हुए एनएच तीन स्थित ईएसआई मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ह्दय रोगों के लिये कैथलैब, बोनमैरो ट्रांस्पलांटेशन, बिना चीर-फाड़ के ह्दय वाल्व बदलने के बाद अब रोबोट सर्जरी भी शीघ्र ही शुरू होने जा रही है।

इस मशीन के तीन पार्ट होते हैं जो नम्बर एक पार्ट है उसके नीचे पेशेंट को लिटाया जाता है। पार्ट नम्बर दो पर सर्जन बैठकर सर्जरी करता है। उसके द्वारा की जा रही सर्जरी को पार्ट नं 3 की स्क्रीन पर देखा जा सकता है। सहायक सर्जन पार्ट नं 1 पर खड़े रहकर सर्जन के निर्देश पर रोबोट की उंगलियों को आवश्यकता अनुसार सर्जरी के औजार उपलब्ध कराता रहता है।

इस मशीन की पहली खूबी तो यह है कि सर्जन को पेशेंट के निकट खड़े रहने की जरूरत नहीं होती। वह सैंकड़ों किलोमीटर दूर बैठकर भी मरीज़ की सर्जरी को पूरी दक्षता के साथ अंजाम दे सकता है। सर्जन जिस टेबल पर बैठा होता है, वहीं से उसको न केवल सब कुछ दिखता है बल्कि बहुत बड़ा-बड़ा ही दिखता है। दूसरी खूबी यह है कि साधारण सर्जरी के दौरान जिन टिश्यूज को सर्जन बहुत अच्छी तरह नहीं देख पाता और उनकी गहराई तक नहीं पहुंच पाता, इस मशीन के द्वारा ज्यादा बेहतर ढंग से देख कर पूरी गहराई तक सुपर फाइन सर्जरी कर सकता है।

कैंसर जैसे रोगों में जहां जड़ बहुत गहरी और दूर-दूर तक फैली होती है वहां यह सर्जरी अत्यधिक कारगर एवं लाभकारी होती है। ह्दय रोगों की सर्जरी में भी यह विधा बहुत ही उपयोगी साबित होती है। इसके अलावा न्यूरोसर्जरी में तो यह मशीन अत्यधिक उपयोगी साबित हो रही है क्योंकि इसके द्वारा उन अति महीन कोशिकाओं तक सर्जन की पहुंच हो सकती है जो अन्यथा सम्भव नहीं हो सकती। इस विधा में सर्जरी के लिये चीरा लगाने की बजाय लैप्रोस्कोपिक तरीके से छेद किये जाते हैं। इन्हीं छेदों के अंदर, सर्जन के निर्देश पर रोबोट की चोंचनुमा उंगलियां अंदर जाकर सर्जरी को अंजाम देती हैं।
फिलहाल ईएसआई के इस अस्पताल में ऐसी सर्जरी करने के लिये सर्जन को बाहर कहीं दूर बैठने की आवश्यकता तो नहीं ही है, वह भी ऑपरेशन थियेटर के आस-पास कहीं भी बैठ सकता है। जैसा कि साधारण सर्जरी में होता है, इसमें भी एक सहायक सर्जन की सहायता के लिये मौजूद रहेगा। वह डॉक्टर के निर्देशन पर रोबोट को अलग-अलग तरह के औजार देता रहेगा। जिस तरह से सर्जन सर्जरी की पूरी कार्रवाई को देखता है उसी तरह सहायक सर्जन भी दूसरे स्क्रीन पर पूरी सर्जरी को ज्यों का त्यों देखता रहता है।

अमेरिका से आयातित यह मशीन अभी तक देश के गिने-चुने अस्पतालों में ही है। इस मशीन का निर्माण 90 के दशक में हुआ था। उसके बाद से इसमें समय-समय पर अनेकों सुधार करके इसे उत्कृष्ट बनाया जाता रहा है। यहां लगने वाली मशीन इसका चौथा एवं आधुनिकतम उन्नत संस्करण है। यह मशीन अति सूक्ष्म सर्जरी करने के लिये है न कि साधारण सर्जरी के लिये। अभी पिछले माह ऐसी ही मशीन एक स्थानीय व्यापारिक अस्पताल में भी लगी है। इसके अलावा दिल्ली के एम्स सफदरजंग तथा अन्य बड़े व्यापारिक अस्पतालों में भी लगी है। हरियाणा के किसी भी सरकारी संस्थान में यह मशीन नहीं लगी है। इसके द्वारा सर्जरी की फीस 30-50 लाख तक कुछ भी हो सकती है जिसे साधारण मज़दूर वहन नहीं कर सकता।

उक्त विशेष मशीन अपने प्रदर्शन के लिये इसी सप्ताह मेडिकल कॉलेज में पहुंच चुकी है। मशीन की देख-परख एवं तमाम काम-काज को परखने के बाद इस पर सर्जन डॉक्टरों की बाकायदा ट्रेङ्क्षनंग का काम शुरू किया जायेगा। समझा जा रहा है कि आगामी कुछ सप्ताह बाद यह मशीन नियमित रूप से काम करने लगेगी।

संदर्भवश यह समझना भी जरूरी है कि चिकित्सा क्षेत्र में लगातार उन्नति के शिखर छूने वाले इस मेडिकल कॉलेज के लिये अति आवश्यक स्टाफ व घटते स्पेस की कमी को समय रहते पूरा करना बहुत जरूरी है।

फैकल्टी यानी प्रोफेसरों की भर्ती एवं पदोन्नति के नियमों में आवश्यक सुधार बहुत जरूरी है। विदित है कि मौजूदा नीति के चलते अनेकों युवा असिस्टेंट तथा एसोसिएट प्रोफेसर यहां से नौकरी छोड़ कर एम्स तथा अन्य बेहतर संस्थानों की ओर पलायन कर जाते हैं। इस पलायन को रोकना बहुत जरूरी है।

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Mazdoor Morcha
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