फरीदाबाद (म.मो.) सराय ख्वाजा स्थित पहली से 12 वीं तक का यह स्कूल राज्य का सबसे भारी-भरकम स्कूल समझा जाता है। इसमें 6000 से अधिक छात्र-छात्रायें पढ़ते हैं। इसमें अध्यापकों के 200 से अधिक पद स्वीकृत हैं। सरकारी जनविरोधी नीति के चलते आधे से अधिक पद रिक्त ही रहते हैं। कमरों का भी नितांत अभाव होने के चलते बच्चे खुले मैदान में बैठने को मजबूर हैं।
जैसे-तैसे यहां पढ़ाई का काम घिसट रहा था लेकिन जि़ला शिक्षा अधिकारी मुनीष चौधरी को यह रास नहीं आया। सरकार की तबादला नीति के हवाले से मुनीष चौधरी ने स्कूल के अतिथि अध्यापकों से मन पसंद के स्टेशन मांगे थे। इस पर स्कूल के 18 अध्यापकों ने अपनी-अपनी पसंद के स्टेशन दे दिये। मुनीष चौधरी के आदेश पर प्रिंसिपल ने तुरन्त उन 18 अध्यापकों को रिलीव कर दिया। वैसे तो रिलीव करने या न करने का पूरा अधिकार प्रिंसिपल के पास भी होता है, परन्तु जब जिला शिक्षा अधिकारी के आदेश हों तो प्रिंसिपल को क्या पड़ी है जो रिलीव न करे।
जाहिर है पहले से ही स्टाफ की कमी झेल रहे स्कूल से जब एक साथ 18 अध्यापक निकल जायेंगे तो हंगामा तो होना ही था। बच्चों का यह हंगामा और राष्ट्रीय राजमार्ग तक को जाम कर देना सिद्ध करता है कि आज के बच्चे शिक्षा ग्रहण करने को कितने उत्सुक हैं और दूसरी ओर सरकार कितनी निर्ममता के साथ उन्हें पढ़ाई से वंचित रखने में जुटी है। हाल के दिनों में ऐसे कई हंगामे बच्चों द्वारा किये जा चुके हैं। कुछ रोज पहले बड़ौली गांव उससे पहले पृथला, गुडग़ाव तथा राज्य भर के अनेकों गांवों में इस तरह के प्रदर्शन आम बात हो गई है। जैसा कि हर प्रदर्शन को दबाने के लिये प्रशासनिक अधिकारी व पुलिस पहुंच जाती है, यहां भी एसडीएम बल्लबगढ़ त्रिलोक चंद दल-बल सहित बच्चों को धमकाने पहुंच गये थे। मौके पर बच्चों की जायज मांग का समर्थन करते हुए स्थानीय लोग भी उनके समर्थन में आ जुटे। बच्चों की मांग तो केवल इतनी ही थी कि जब तक बदले में नये अध्यापक न मिले पुरानों को रिलीव न किया जाये। यदि दिमाग नाम की कोई वस्तु जिला शिक्षा अधिकारी में होती तो वे, बच्चों द्वारा हंगामा किये बगैर ही इस समस्या को समझ कर उचित उपाय कर सकती थी। मूर्ख और बुद्धिमान अधिकारी में बस इतना ही अंतर होता है, जो काम उन्होंने हंगामें के बाद किया यानी वैकल्पिक अध्यापक उपलब्ध कराये, यही काम बिना हंगामें के भी किया जा सकता था।