ईएसआईसी कवर्ड मज़दूरों को ‘बड़ी राहत‘ पर विचार
फरीदाबाद (म.मो.) देश के महाबुद्धिमान, कर्मठ एवं 18 घंटे काम करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की समझदानी में यह बात घुसेड़ी जा रही है कि ईएसआईसी कवर्ड मज़दूरों को कार्पोरेशन फंड से इस संकटकाल में राहत दी जानी चाहिये। पहली राहत तो यह होनी चाहिये कि जिस प्रकार बीमारी आदि की छुट्टी के दौरान मज़दूरों को उनके वेतन का 75 प्रतिशत वेतन कार्पोरेशन द्वारा दिया जाता है, उसी प्रकार लॉक-डाउन को भी बिमारी की छ़ट्टी मान कर उन्हें कुछ वेतन दिया जाये। यद्यपि यह सारा पैसा मज़दूरों का अपना है। इस निधि में पड़ा एक लाख करोड़ से अधिक के धन में किसी भी सरकार की ओर से कोई पैसा नहीं दिया गया है, हां, सरकार चलाने वालों ने इसमें से कुछ न कुछ लूटा ही है।
बड़े उद्योगपतियों अम्बानियों, अडानियों का यदि मामला होता, उन पर कोई संकट होता, उन्हें कोई पैकेज एवं राहत देनी होती तो भारत के इन बुद्धिमान प्रधानमंत्री को सोचने समझने में ज़रा भी देर न लगती; परन्तु यह ठहरा गरीब मज़दूरों का मामला, इसलिये इस मुद्दे पर अभी तक सोच-विचार चल रहा है। इस सोच-विचार का नतीजा क्या निकलेगा, अभी कह पाना कठिन है। देखा जाय तो संघी विचार धारा के अनुसार मोदी की सोच एकदम सही है। जिन लाचार मज़दूरों को पैसे की जरूरत है उनसे मोदी एवं संघ को क्या मिलेगा? जबकि पूंजीपतियों से हज़ारों करोड़ मिलता है। उसी पैसे से मोदी व्यापक प्रचार करके उन्हीं गरीबों को बेवकूफ बनाता है तथा पैसे के बल पर उनका वोट खारीदता है।
दूसरी बड़ी राहत जिसे बताया जा रहा है, वह है मार्च माह में मज़दूरों की ओर से कार्पोरेशन जाने वाले अंशदान को स्थगित करना। देखा जाय तो कोई अहसान नहीं है। यदि सरकार इसे स्थगित न भी करती तो ले भी किस से क्या लेती? जब कारखाने बंद है, पैसा कहीं से न आ रहा है न जा रहा है तो कार्पोरेशन को अंशदान कोई कहां से दे देता? इस लिये यह राहत तो पूरी तरह से बेमानी है। देखने वाली बात अब यह है कि अपने लाख करोड़ के खजाने में से कार्पोरेशन मज़दूरों को कब तक और क्या देने वाली है?