लॉकडाउन की तो छोड़ो, जनवरी, फरवरी, मार्च का वेतन भी दबा रखा है पीएफ, ईएसआई तक काट कर डकार गये, कोई पूछने वाला नहीं

लॉकडाउन की तो छोड़ो, जनवरी, फरवरी, मार्च का वेतन भी दबा रखा है  पीएफ, ईएसआई तक काट कर डकार गये, कोई पूछने वाला नहीं
May 17 17:21 2020

मैटाफैब इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड  प्लॉट नं. 299-318 सेक्टर 24

फरीदाबाद (म.मो.) भाजपा के सरकारी भोंपू रोज़ाना चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं कि कारखानेदार अपने श्रमिकों को लॉकडाउन के समय का पूरा भुगतान करें, मकान मालिक अपने किरायेदारों से किराया वसूल न करें। परन्तु हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत है।

मैटाफैब नामक उक्त कम्पनी दुपहिया वाहनों की वर्कशॉप में इस्तेमाल होने वाले उपकरण व मशीनें आदि बनाते हैं। यहां कुल मिलाकर 150 श्रमिक व स्टाफ काम करते हैं। मालिक अमित चोपड़ा ने श्रम कानूनों से बचने के लिये अपने इन श्रमिकों को विभिन्न श्रेणियों में बांट रखा है। करीब 30 श्रमिक कैजुअल हैं। बाकी 86 श्रमिक अपनी मुख्य कम्पनी में दर्शाये गये हैं।

वेतन अदायगी अधिनियम का सदैव उल्लंघन करते हुए यहां कभी भी सात तारीख को वेतन देने की अपेक्षा एक से डेढ माह की देरी से वेतन अदा किया जाता है। समझने के लिये दिसम्बर 2019 का वेतन सात जनवरी को अदा करने की अपेक्षा 20 फरवरी को अदा किया गया था। इसी क्रम में जब जनवरी का वेतन मार्च में अदा करने का समय आया तो मालिक ने कोरोना एवं लॉकडाउन की आड़ ले ली। लिहाजा जनवरी, फरवरी व मार्च की पूरी तनखा मालिक दबा कर बैठा है।

इतना ही नहीं जिन 80-85 श्रमिकों के वेतन से पीएफ व ईएसआर्ई काटी जाती है, उसमें अपना योगदान मिला  कर सम्बन्धित विभागों में जमा कराने की अपेक्षा मालिक मज़दूर का काटा हुआ अंशदान भी बीते 14 माह से खुद ही डकार रहा है। इस भयंकर स्थिति से तंग आकर किसी श्रमिक ने जैसे-तैसे अप्रैल के पहले सप्ताह में ईमेल हरियाणा के श्रमायुक्त सहित अन्य कई अधिकारियों को कर दी। परिणामस्वरूप स्थानीय श्रम विभाग में कुछ हिलजुल तो हुई लेकिन श्रमिकों को वेतन नहीं मिला। हिलजुल केवल इतनी हुई कि श्रम निरीक्षक अरविंद गुप्ता ने फैक्ट्री का दौरा किया, मालिक को कड़ा नोटिस दिया एफआईआर दर्ज कराने की धमकी दी। दोषी मालिक को खूब अच्छी तरह डराया-धमकाया; परन्तु कार्यवाही के नाम पर मालिक व श्रम अधिकारियों के बीच वार्ताओं के दौर तो चले परन्तु श्रमिकों को न तो कोई वेतन मिला, न ही मालिक का कोई चालान हुआ और न ही कोई एफआईआर। हां इन्स्पेक्टर गुप्ता की दिहाड़ी जरूर 20-25 हज़ार की बन गयी।

इतना ही नहीं इस फैक्ट्री में किसी को भी सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता। अधिकांश श्रमिकों को 8-9 हज़ार तथा टूल रूम के चार-पांच अति दक्ष मज़दूरों को 20000 मासिक मिलता है। बेरोजगारी एवं भुखमरी की दहशत इतनी है कि मज़दूर आवाज उठाना तो  दूर, अपने द्वारा दी गयी शिकायत पर भी, श्रम निरीक्षक के दबाव में बिना कुछ लिये समझौता कर गये। ऐसे कायरों की मदद कोई इंसान तो क्या खुद भगवान भी नहीं कर सकता क्योंकि भगवान तो खुद पूंजीपतियों द्वारा निर्मित आलीशान मंदिरों में रहता है। यदि यही मज़दूर बहादुरी से खड़े हो जाते तो मालिक को जुर्माने सहित वेतन भी अदा करना पड़ता, पीएफ ईएसआई का पैसा डकारने पर आईपीसी की धारा 406, 409, 420 का मुकदमा भी पुलिस में दर्ज होता। मालिक हमेशा के लिये सीधा हो जाता और फिर कभी ऐसी हरामखोरी न करता।

 

 

 

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Mazdoor Morcha
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