April 26 09:35 2020

फसल खरीद के नाम पर किसानों से क्रूर मज़ाक,

सरकारी ड्रामेबाज़ी व आढ़तियों की हड़ताल

मज़दूर मोर्चा ब्यूरो

कभी स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू करने तो कभी किसानों की आय दो गुणी करने के छलावे से किसानों को छलने वाली भाजपाई सरकार बीते 6 वर्षों से लगातार किसानों को बेवकूफ बनाने में जुटी है। इस बार तो कोरोना के बहाने से उन पर और भी अधिक मार पड़ रही र्है।

लम्बे समय से मंडियों में यह नियम रहा है कि कोई भी किसान अपना जितना चाहे गेहूं, जब चाहे मंडी में ले आये। उसका आढती पूरा माल बिकवा देता था। सरकारी खरीद एजेंसियों से भी वह जैसे-तैसे सांठ-गांठ करके काम को निपटवा देता था। लेकिन ज्यों-ज्यों फसलों की पैदावार, खासकर गेहूं की पैदावार बढने लगी

सरकार ने तरह-तरह के प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिये। कभी एक जि़ले से दूसरे जि़ले में फसल ले जाने पर तो कभी एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाने पर प्रतिबंध लगने लगे।

लेकिन अब तो सरकार ने हद ही पार कर दी। किसान को अपनी पूरी भूमि का ब्योरा (कीला नम्बर आदि) व उसमें उपजाई गयी फसल का विवरण कम्प्यूटर पर ऑन लाइन देना होगा। देश में किसान के कम्प्यूटर ज्ञान व उसकी कार्यप्रणाली से अनभिज्ञता के चलते वह जैसे-तैसे इसका इस्तेमाल करने का प्रयास करता है। लेकिन बिजली व सर्वर डाउन होने जैसी समस्यायें उनके लिये बड़ी बाधायें हैं। नये नियमों के अनुसार, ऑन लाइन ब्योरा प्राप्त होने के बाद मंडी में बैठा मार्केट कमेटी अधिकारी किसान को सूचित करेगा कि वह इतने क्विंटल व इतने किलोग्राम फसल ले आये। कोरोना के चलते अब किसान को यह भी बताया जा रहा है कि वह किस दिन और कितने बजे मंडी में माल लेकर पहुंचे।

मंडी पहुंचने पर किसान के साथ क्या होता र्है इसका उदाहरण सिरसा जि़ले के बड़ा गुड़ा इलाके की एक मंडी का उदाहरण देखने से समझा जा सकता है। नवदीप सिंह नामक एक किसान को एसएमएस आया कि वह दिये गये ब्योरे के अनुसार अपनी 42 क्विंटल सरसो लेकर मंडी आ जाये। जब ट्रॉली लाद कर वहां पहुंचा तो उसे बताया गया कि उसे 42 क्विंटल नहीं केवल 32 किलोग्राम सरसो लाने को कहा गया था। किसान ने अपना सिर पीट लिया और 32 किलो सरसो बेच कर बाकी वापस ले गया। पूरी दिहाड़ी खराब, माल लाने ले जाने का खर्चा अलग से।

कोरोना के नाम पर प्रशासन ने मंडियों में  10/10 आकार के स्थान चिन्हित कर दिये हैं जिनमें किसान अपनी फसल डालेंगे। इसके लिये किसान को एक निर्धारित मात्रा में ही फसल लाने को कहा जाता है, जो उस आकार में समा जाये। पूरी फसल बेचने के लिये किसान को चाहे कितने ही चक्कर क्यों न लगाने पड़ें, इसकी किसी को चिंता नहीं। मंडियों में जगह की कमी को देखते हुए सरकार ने मंडियों से बाहर भी विभिन्न गांवों में खरीद सेंटर बना दिये हैं। लेकिन सरकार वहां तब तक खरीद करने में सक्षम नहीं जब तक आढती या उसका स्टाफ न आ जाये। जब एक आढती से सम्बन्धित किसानों को 5-6-7 जगहों (केंद्रों) पर बिखेर दिया जायेगा तो वह कैसे सभी केन्द्रों को कवर कर सकेगा? लिहाजा किसान सारा दिन अपनी फसल को लिये बैठा रह कर खाली हाथ वापस लौटने को मजबूर होता है।

आढतियों की हड़ताल

सरकार की कुनीतियों एवं भ्रष्टाचार का पालन-पोषण करने वाली नीतियों के विरोध में राज्य भर के आढती संगठन हड़ताल पर चल रहे हैं। गोदी मीडिया के द्वारा फसल खरीद के झूठे आंकड़े प्रकाशित करा कर सरकार अपनी पीठ थपथपाते हुए जनता को धोखा दे रही है। आढ़तियों की पहली मांग तो यह है कि फसल खरीद की पेमेंट पहले की तरह बजरिया चैक किसान की बजाय उन्हें की जाय क्योंकि किसान उनसे पहले ही का$फी एडवांस ले चुका होता है। इसी मुद्दे पर बीते साल भी आढती हड़ताल पर गये थे और सरकार ने उनकी बात मान ली थी।

दूसरे, उनकी मांग है कि उनके किसानों को एक ही बिक्री केन्द्र पर रखा जाय, एक से अधिक बिक्री केन्द्रों पर काम करना उनके वश में नहीं। इसके अलावा खरीद में होने वाली प्रशासनिक बदमाशियों से भी आढती परेशान रहते हैं। ढेरी पर बोली लगाने वाली सरकारी टीम के नखरे, बारदाना (खाली कट्टे) देने वाला सरकारी बाबू, तोलने वाला लाइसेंसधारी तोला, कट्टों की सिलाई करने वाला लाइसेंसी ठेकेदार व अंत में तुले हुए माल को उठा कर सरकारी गोदामों तक पहुंचाने वाला ठेकेदार। ये जितने भी लाइसेंसी ठेकेदार व बाबू हैं सब ने अपने-अपने रिश्वत के रेट बांध रखे हैं। जब तक तोला न आये माल न तुले, जब तक कट्टों की सिलाई न हो माल न उठे, और जब तक माल न उठे तब तक नया माल कैसे उतरे। इन तमाम ठेकेदारों में से कोई भी एक चाहे तो आढ़ती की ऐसी-तैसी करने में सक्षम होता है। अधिकारी कोई भी इनके खिलाफ सुनने को तैयार नहीं होता क्योंकि लूट में तमाम अधिकारी व राजनेता शामिल रहते हैं। ऐसे में आढ़तियों की मांग है कि इन सब लुटेरे ठेकेदारों से मंडी को मुक्त करा कर सारा काम आढतियों को सौंपा जाय, आढ़ती इस काम को आधे दामों पर करने को तैयार है।

सबसे बड़ी दिक्कत पट्टेदारी की

सबसे बड़ी समस्या इन किसानों के लिये आ रही है जो खेत के मालिक तो नहीं हैं, ठेके अथवा पट्टे पर खेत लेकर खेती करते हैं। नई कम्प्यूटर व्यवस्था में ऐसे किसान अपनी फसल नहीं बेच पाते क्योंकि कम्प्यूटर केवल उन्हीं को किसान मानता है जिनके नाम पर ज़मीन है। पट्टेदार किसान यदि असल मालिक के नाम से फसल बेचे तो उसे अपनी पेमेंट के मारे जाने का खतरा रहता है और यदि मालिक लिखित में पट्टेदार को अधिकार दे दे तो उसे अपने खेत पर कब्ज़ा हो जाने का भय रहता है। ऐसे में असल मेहनतकश किसान बड़ी आ$फत में रहता है। वह बड़ी मुश्किल से औने-पौने में बिचौलियों के माध्यम से ही आपनी फसल बेच पाता है।

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