April 20 05:50 2020

मंझावली पुल-सौ दिन चले अढाई कोस

 फरीदाबाद (म.मो.) भाजपा सरकार के 2014 में सत्ता में आते ही पूरे धूमधाम से यमुना नदी पर मंझावली गांव में  एक पुल बनाने की घोषणा की गई थी। यह पुल फरीदाबाद को नोएडा से जोड़ेगा और इससे नोएडा से गुडग़ांव, जयपुर आदि की तरफ जाने का रास्ता बहुत ही आसान हो जाने की उम्मीद थी। तब के केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और फरीदाबाद से भाजपा के सांसद कृष्णपाल गूजर ने पूरे दिखावे के साथ इस पुल का 15 अगस्त 2014 में शिलान्यास किया था और दावा किया था कि उनकी पार्टी कांग्रेस की तरह निकम्मी नहीं है बल्कि काम करके दिखाती है। इसलिये दो साल के अन्दर-अन्दर इस पुल पर गाडिय़ां दौडऩे लगेंगी। आज इस बात को छ: साल बीत चुके हैं और पुल का अभी तक लगभग 25 प्रतिशत ही काम हुआ है। मोदी जी के 22 घण्टे प्रति दिन काम करने के कारण उनकी सरकार इतनी तेज गति से पुल का निर्माण करने में कामयाब हुई है। सचमुच वो कांग्रेस की तरह निकम्मी नहीं है।

पुल के शिलान्यास को लेकर ‘मज़दूर मोर्चा’ की टीम ने 2014 में ही इस पर एक लेख लिखा था और भाजपा के दोनों गपोडी शिलान्यास कर्ताओं की हकीकत जानने और अपने पाठकों को बताते हुये दावा किया था कि यह पुल छ: साल से पहले नहीं बन सकता। लेकिन हमें खेद है कि हम गलत साबित हुये। वास्तव में इस पुल के अगले छ: साल में भी पूरा होने की उम्मीद कम ही है। इस तरह यह 12 साल से पहले नहीं बन सकता। वैसे कांग्रेसी मंत्री भी 10-15 साल पहले इस पुल का उद्घाटन करके जा चुके हैं और खुदा न खास्ता अगर 2024 में घूम-फिर के कांग्रेसी सरकार दुबारा सत्ता में आ जाये तो उसको दूसरी बार इस पुल के उद्घाटन का सौभागय भी मिल सकता है।

‘मज़दूर मोर्चा’ की टीम ने 12 अप्रैल को मंझावली जाकर इस पुल के निर्माण की प्रगति का जायजा लिया। वैसे फिलहाल तो लॉकडाउन के कारण कार्य बन्द पड़ा है, जो होना भी था, लेकिन काम की प्रगति बहुत ही निराशाजनक है। हालांकि पुल के सभी ‘पीलर्स’ व दोनों तरफ के अबैटमेन्टस यानी कि सारे कालम तो खड़े किये जा चुके हैं लेकिन ‘डैंक’ यानी उसके ऊपर कन्क्रीट की छत का काम अभी शुरू ही हुआ है। कन्क्रीट के ‘कालमों’ के उपर बड़े-बड़े कन्क्रीट के सैक्शन्स (यानी टुकड़े) रखकर आपस में जोड़ कर यह पुल तैयार किया जाता है। अगर सैक्शन लान्चर का उपयोग किया जाये तो यह उपर ही उपर पहले से बनाये हुये सैक्शन को जोड़ता चला जाता है जिससे काम जल्दी हो जाता है। दिल्ली मेट्रो की उपरिगामी सभी लाइनों का निर्माण लगभग इसी विधि से हुआ है। अगर इस विधि का प्रयोग होता तो नीचे यमुना नदी में उफान आने के बावजूद काम चलता रहता और समय से पूरा हो जाता। लेकिन यह भाजपा सरकार और इन्जीनियर्स के लिये बड़ी तौहीन की बात होती।

मौजूदा कार्यप्रणाली यह है कि पहले किनारे पर सैक्शन्स बनाये जाते हैं फिर उन्हें ट्रालों पर लादकर साईट पर ले जाया जाता है जहां क्रेन की मदद से उन्हें उठाकर पिलर्स के बीच में रखा जाता है। इसके लिये नदी में ट्राले व क्रेन के चलने के लिये मिट्टी डालकर रास्ता बनाया जाता है व दो कॉलम के बीच में लोहे के खम्भे खड़े कर के शटरिंग लगायी जाती है। इस शटरिंग पर ये करीब 20-25 टन बजन के सैक्शन्स रखे जाते हैं और फिर आपस में जोड़ दिये जाते हैं। फिर कहीं जाकर शटरिंग हटायी जाती है। यह प्रणाली न सिर्फ बहुत अधिक समय लेती है बल्कि नदी में पानी अधिक आने पर मिट्टी का बनाया रास्ता पानी के तेज बहाव के चलते बह भी जाता है। बीती 15 मार्च को भी ऐसा ही हुआ जिसके कारण काम रुक गया जो अब तक शुरू नहीं हुआ क्योंकि फिर लॉकडाउन आ गया।

लांचर प्रणाली क्यों नहीं अपनायी गयी इसका कारण यह बताया गया कि निर्माणकर्ता कंपनी ने यह काम बहुत कम रेट में लिया था और लांचर बहुत महंगा आता है इसलिये उसमें कंपनी को घाटा था। इसलिये काम चाहे दो का 12 साल में हो पर कंपनी को घाटा नहीं होना चाहिये इस पॉलिसी के तहत लांचर की बजाय शटरिंग प्रणाली प्रयोग की गई।

वर्तमान हालात को देखते हुये और कंपनी की कार्यकुशलता को देखते हुए यह अनुमान है कि काम पूरा होने में अभी पांच साल से छ: साल और लग सकते हैं। क्योंकि अभी कच्चा रोड बना कर सारे सैक्शन उपर चढाकर डैक तैयार करनी है, फिर दोनों साईड की एप्रोच रोड तैयार करनी है,  किनारों की मजबूती (इम्बैकमेन्ट प्रोटेक्शन) करनी हैं। यह सभी काफी समय लेगा। यह भी बताया गया है कि अभी तो दोनों तरफ की ‘एप्रोच रोड’ के लिये जमीन भी अधिग्रहित नहीं की गयी है। यदि जमीन अधिग्रहण का मामला मुकदमेबाजी में फंस गया तो फिर इस पुल का अल्लाह ही मालिक है। ऊपर से बजट का मामला है। इस बीच यदि बजट खत्म हो गया और ऊपर से पैसा नहीं आया तो हो सकता है हमारी अगली पीढी ही इस पुल पर सफर करे।

जब प्रोजेक्ट का समय दो साल का था तो पुल क्यों नहीं दो साल में पूरा हुआ? पुल के बनाने की कार्य प्रणाली पहले से क्यों नहीं तय की गयी? ज़मीन पहले ही क्यों नहीं अधिग्रहित की गयी? देरी के लिये ठेकेदार पर कोई जुर्माना क्यों नहीं लगाया गया? देरी के कारण पुल की लागत में बढोत्तरी का कौन जिम्मेदार होगा? बढी हुयी लागत की भरपाई कौन करेगा? वर्तमान हालात में जब कोरोना के कारण पहले ही सरकार आर्थिक संकट का रोना रो रही है तो बढी हुई लागत का पैसा कहां से आयेगा?

दरअसल इस पुल का निर्माण तो भाजपा सरकार के एजेंडे पर था ही नहीं शिलान्यास का नाटक तो केवल जनता को बेवकूफ बनाने के लिये किया गया था। सुधी पाठक भूले नहीं होंगे कि इस शिलान्यास के तुरन्त बाद हरियाणा विधानसभा के चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई थी। इन तैयारियों को अत्यधिक बढावा देने के लिये भाजपाईयों ने यह सब नाटक किया था। इस नाटक में बड़ी भारी भीड़ जुटाने के लिये उन धूर्त लोगों का जमकर इस्तेमाल किया गया था जो विधानसभा चुनाव के लिये भाजपा टिकट खरीदना चाहते थे। इसी टिकट के लालच में  अनेकों धूर्त राजनीतिज्ञ बसों व ट्रैक्टर ट्रालियों में दुर-दुर से जनता को बहका फुसला कर व लालच देकर यह नाटक दिखाने लाये थे। पुल के न बनने के बावजूद क्षेत्र की जनता ने शिलान्यास कर्ता एक मंत्री एवं स्थानीय सांसद को पुन: भारी मतों से जीता कर भाजपाईयों को यह संदेश दे दिया है कि उन्हें पुल की बजाय ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ कहीं अधिक भाता है।

सवाल बहुत है लेकिन जनता किसी इन्जीनियर या राजनेता से पूछ नहीं रही। चुपचाप बैठी ऐसे देख रही है जैसे कि खट्टर एण्ड पार्टी ये किसी और के पैसे से ये सब खिलवाड़ कर रहे हों। चोरों पर जूत बजाने का काम जनता कब शुरू करेगी, पता नहीं।

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Mazdoor Morcha
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