फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) शहर भर में जो सड़ते गंदगी के ढेर, अवैध निर्माण व कब्जे तथा विज्ञापन तमाम शहरवासियों को हर रोज़ नजर आते हैं, उन पर निगमायुक्त मोना ए श्रीनिवास की नज़र बीते सप्ताह ही पड़ सकी। न केवल मज़दूर मोर्चा बल्कि अनेकों मीडिया साधनों द्वारा इन सबका उल्लेख लगातार किया जाता रहा है। उसके बावजूद भी निगमायुक्त ने उन भ्रष्ट एवं निकृष्ट अधिकारियों के विरुद्ध कभी कोई कार्रवाई करने की जरूरत नहीं समझी जो इन सब के लिये जिम्मेदार हैं।
दरअसल निगमायुक्त स्वयं कोई कार्रवाई करने से सदैव घबराती व बचती नज़र आतीं हैं। उन्हें हर काम के लिये अपने राजनीतिक आकाओं के आदेशों का पालन करना पड़ता है। एक्सईएन, एसई की बात तो छोडि़ए आउटसोर्स पर जेई व बेलदार तक भी निगमायुक्त की कोई परवाह नहीं करते क्योंकि किसी का आक़ा कृष्णपाल गूजर है तो किसी का मूलचंद शर्मा तो किसी की सीमा त्रिखा। कई बार देखने में आया है कि जब भी निगमायुक्त ने किसी भी छोटे से छोटे कर्मचारी को रोका-टोका है तो तुरन्त उसके आक़ा निगमायुक्त को तबादले की धमकी दे डालते हैं। कहने की जरूरत नहीं कि जो अफसर तबादले की धमकियों से डरेगा वह कभी भी सही ढंग से प्रशासन को नहीं चला सकता।
11 माह बाद अब कहीं जाकर अपनी प्रशासनिक उपस्थिति दर्ज कराते हुए निगमायुक्त ने सफाई, अवैध निर्माण तथा विज्ञापनों आदि का नोटिस लेते हुए हडक़ाया भी तो किसको, एक अदना से सफाई निरीक्षक को। यह काम भी निगमायुक्त ने अपनी ड्यूटी समझते हुए नहीं किया है, कुछ दिन पहले शहरी स्थानीय निकाय मंत्री सुभाष सुधा ने शहर का भ्रमण किया था और जगह जगह लगे गंदगी के ढेर देख कर नाराजगी जताई थी। उन्होंने दस दिन में यह सब साफ करने का सख्त आदेश दिया था। दस दिन पूरे होने पर मंत्री के आदेश का कितना पालन हुआ यह देखने के लिए ही वह अपने ऐसी दफ्तर से बाहर निकलने को मजबूर हुई थीं। कार्रवाई तो कुछ दिखानी थी तो सफाई निरीक्षक को नोटिस जारी कर दिया, उन्हें भी मालूम है कि गंदगी तो फिर भी साफ नहीं होनी है।
इसके साथ-साथ संयुक्त-आयुक्तों को भी कुछ काम-धाम कर लेने की नसीहत दे डाली है। अब देखना यह है कि निगमायुक्त की इस नुमाइशी कार्रवाई का कोई परिणाम भी निकलता है या ढाक के वही तीन पात।