अस्पतालों में पीपीई का इन्तजार करते स्वास्थ्यकर्मी और बेरोजगार-बेघरबार श्रमिकों की बेशक न सोचिये
आइये, कोरोना को मूर्ख बनाने की मोदी क्रोनोलोजी को मोमबत्ती जला कर उजागर करें
ग्राउंड जीरो से विवेक कुमार
भईया जी हम क्या करें अब, फंस गए हैं, मेरे पति का काम तो कई दिन से ऐसे ही मंदा था। सडक़ पर सवारी नहीं मिल रही थी कई रोज पहले से ही और अब तो मेरे आदमी को ऑटो खड़ा ही करना पड़ गया घर में। सब बंद कर दिया है तो मैं भी नहीं जा सकती कहीं काम पर। बाहर जाते हैं तो पुलिस मार रही है और घर में रहेंगे तो भूखे मर जाएंगे, इस मजबूरी में क्या करें समझ नहीं आ रहा। सब्जियां इतनी महंगी हो गई बच्चों को क्या खिलाओ, थोड़े बीज मिल जाते तो उन्हें प्लाट में बो लेते कुछ बन जाता शायद तो वो भी नहीं हो सकता। कब खुलेगा सब, आप लिखते हो अखबारों में, आपको तो पता होगा। मेरे अपने घर में काम करने वाली मंजू ने पानी की एक बोतल पीने के लिए लिया और रुआंसी चेहरा लेकर चली गई।
हमारे घर के साथ लगे खाली प्लाट में 42 वर्षीय मंजू अपने दो बच्चों (4 वर्ष और 2 वर्ष) और पति के साथ रहती हैं। मंजू की ही तरह अनीता और मुकेशी जिनकी जीविका घरों में सफाई करके चलती थी भरी दोपहर में आये और लगभग रो देने की हालत में पूछा कि भईया कब खुलेगा सब? हमारे बच्चे भूखे मर जाएंगे। गाँव भी नहीं जा पा रहे। गलती हो गई, जब सब पैदल जा रहे थे तो दो डंडे पुलिस के खा कर हम भी निकल गए होते। अब तो वो भी नहीं हो सकता, सब चले गए। हमारे पास आटा तक खरीदने के पैसे नहीं हैं और क्या करें, कैसे पालें परिवार, समझ नहीं आ रहा। ये पुलिस क्यों मार रही है हमें, तीन घंटे का टाइम दिया तो क्या कर सकते थे हम? या तो गाँव ही भिजवा देती सरकार हमको।
मेरे यह पूछने पर कि क्या कुछ पैसे दे दूं, मुकेशी ने कहा नहीं, आटा दे दो। क्योंकि जब मैने अपने बेटे को आटा लाने भेजा तो पुलिस ने उसे मारा, इस डर से वह घर से नहीं जा रहा कहीं। मुकेशी के साथ अनीता का भी डर था सरकारी बंद उसके पैसे भी खा जाएगा। आश्वासन पा कर दोनों संतुष्ट हुई पर पैसे नहीं लिए। बोली जब बंद खुलेगा तभी दे देना।
ऐसी लाखों मुकेशी,अनीता और मंजू मोदी की बिना तैयारी के इस जरूरी लॉकडाउन में फंस गईं हैं और रहा सहा कसर पुलिस पूरा कर रही है रोज। ऐसा कैसे होता चला गया, क्या-क्या समस्याएं रहीं और क्या ऐसा करना सरकार की मजबूरी थी या सत्ता के नशे में चूर एक व्यक्ति की सनक। इन सब बातों को सिलसिलेवार तरीके से समझेंगे मजदूर मोर्चा की इस “कोरोना की भारत यात्रा” श्रंखला में।
कोरोना का कहर पूरी दुनिया में जारी है ऐसे में सभी के पास जो जरूरी सूचनाएँ पहुंचनी चाहिए वे भी और जो अफवाहे और गलत सूचनाएँ नहीं पहुंचनी चाहिए वह भी दनादन भेजी जा रही हैं। इसपर लगाम नहीं लग सकती क्योंकि इनमे से अधिकतर सत्तादलों द्वारा समर्थित आईटी सेल वालों के माध्यम से ही फैलाई जा रही हैं।
ऐसी अफवाहों का असर क्या होता है, इसे आप ऐसे समझिये की प्रधानमंत्री ने थाली और ताली बजाने का जो आईडिया दिया था वो लोगों में कुछ यूं पहुंचा कि ये करने से कम्पन उत्तपन्न होगा जिससे कोरोना वायरस मर जाएगा। गाँव-देहातों में लोगो ने सामूहिक रूप से चंडी माता को धार (जल चढाने) देने का आयोजन किया। सबको मात देते हुए उत्तरप्रदेश, पीलीभीत जिले के डीएम् और एसपी ने ही भारी भी? जुटा कर थाली पीटने की रैली आयोजित कर दी और अयोध्या में रामलला के आसन का छोंक खुद योगी आदित्यनाथ ने लगाया।
अब यहाँ से हम इन भोले-भाले लोगो को माफ कर देते हैं और अपने दिमाग की ऊर्जा को सही जगह इस्तेमाल करने का भरसक प्रयास करते हैं। जरूरी है कि आप समस्या की मूल जड़ को समझें पहले, यानी कि क्रोनोलोजी।
यूँ तो इस कोरोना ने हमारे समाज और सरकार की कलई खोल कर रख दी, जो पहले ही काफी उधड़ी पड़ी थी। बहुत हद तक संभावना है कि शायद ही कोई रिपोर्ट सिर्फ एक ही कोण और क्षेत्र तक सीमित हो कर अपनी बात रख सके। क्योंकि ऐसे समय में समाज का व्यवहार भी सरकारी नीतियों से संचालित होना शुरू होता है इसलिए मजदूर मोर्चा का प्रयास रहेगा कि बतौर नागरिक हम सरकार की जवाबदेही और तैयारी की एक बेहतर समीक्षा करें।
सबसे पहले तो अपनी गलती से हुई हर समस्या के लिए कोई दुश्मन ढूँढऩे की प्रवृति जिसपर आरोप लगा कर अपनी जिम्मेवारी से कन्नी काट लें से सरकार को निजात पाना चाहिए जैसा कि पहले सारा ठीकरा नेहरू पर थोपा जाता था और अब चीन पर।
15 दिसम्बर 2019 को चीन में कोरोना का पहला मामला सामने आया और तीस जनवरी को भारत में पहला मामला पंजीकृत हुआ। इसके बावजूद भारत के प्रधानमंत्री ने अमेरिका के राष्ट्रपति को चुनाव जितवाने की प्रक्रिया में ‘नमस्ते ट्रम्प’ का आयोजन अहमदाबाद में करवाया और उसके लिए 70 लाख लोगों की लाइन लगवाने में पहले नंबर पर खड़े होने की भीष्म प्रतिज्ञा कर ली। विडम्बना देखिये उधर ट्रम्प ने भारत को नमस्ते की इधर दुनिया ही नमस्ते के कगार पर जाने लगी। बात जब प्रधानमंत्री की है तो आमजन को यहाँ बताते चलें कि आईबी से लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय तक की सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अपडेट प्रधानमन्त्री को सूरज ढलते-ढलते मिल जाती हैं। अर्थात प्रधानमंत्री को कोरोना के हाल उसी दिन से मिलने शुरू हो गए होंगे जिस दिन कोरोना ने दुनिया में अपनी नमस्ते दर्ज करायी।
तो फिर ये कैसे संभव हुआ कि कोरोना के खतरे के बारे में जानते हुए भी प्रधानमन्त्री मोदी ने 100 दिनों के आसपास का लम्बा व?्त गवां दिया। इतना ही नहीं, जो व्यक्ति शिखर धवन के अंगूठा टूटने पर ठीक होने की शुभकामनायें तक ट्वीट तक कर रहे हों उन्होंने कैसे इतने संवेदनशील मुद्दे पर एक ट्वीट तक नहीं किया था?
इसी के समानान्तर राहुल गाँधी ने कोरोना के मसले पर ट्वीट की बमबार्मेंट कर रखी थी। अब ये उल्टी गंगा कैसे बह रही थी? साफ जाहिर है इतने साल सत्ता में रहने के बाद वही सोर्स राहुल गाँधी के भी हैं जिन्होंने इस खतरे की गम्भीरता से प्रधानमंत्री को अवगत करवाया था दिसंबर माह में ही। राहुल के कोरोना वाले हर ट्वीट पर भाजपा आईटी सेल ने अपने अंदाज में आवभगत की। वैसे मंदी का दौर है तो हो सकता है आईटी सेल में भी छंटनी हो, क्योंकि अब तो एक पूरा आईटी सेल हर पार्टी के लिए मुफ्त में सबको गालियाँ देने के लिए तैयार कर लिया गया है। खुद स्वास्थ्य मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन ने राहुल गांधी का मजाक बनाते हुए कहा कि वह देश की जनता को डराने का काम कर रहे हैं जबकि ऐसी कोई बात नहीं। इतना ही नहीं स्वास्थ्य मंत्री ने यह भी कहा कि हम ऐसे किसी भी खतरे से निबटने के लिए तैयार हैं। ये सुन कर ऐसा लगा जैसा वो किसी बरात के स्वागत के लिए नहा धो कर तैयार होने की बात बता रहे हैं। वैसे बरात के स्वागत में भी कई महीनो की तैयारी होती ही है। तो क्या स्वास्थ्य मंत्री की कोई तैयारी कोरोना से लडऩे की दिखी?
19 मार्च तक खुद प्रधानमन्त्री हुनर हाट इंडिया गेट पर लिट्टी चोखा खा रहे थे और मध्यप्रदेश में बिना चुनाव के सरकार बनाने के लिए हवाई जहाज उडाये जा रहे थे। इन दोनों बातों के पीछे फिर वही भद्दी राजनीति हावी हो गई प्रधानमन्त्री पर। क्योंकि लिट्टी चोखा पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों का एक मुख्य भोजन है जिससे यहाँ के निवासियों का एक भावनात्मक जुड़ाव है ठीक वैसा ही जैसा मक्की की रोटी और सरसों के साग का पंजाब से और दाल बाटी चूरमा का राजस्थान से। तो प्रधानमन्त्री ने अर्जुन की भान्ति बिहार चुनाव पर नजर गढ़ाई और गटागट दो लिट्टियाँ कैमरा के सामने चटनी लगा कर खाने की इवेंट बना ली गयी।
ऐसे ही हवाई जहाज दनदनाते रहे आसमान में वो भी तब जब कोरोना भी हवाई जहाज से ही घूम-घूम कर आग बरसा रहा था सारी दुनिया में। जबकि रेल सेवा बंद कर दी गई और चालू डब्बे में सफर करने वाले पैदल ही चल पड़े पुलिस के डंडे खाते पिटते। फिर भी हवाई जहाज नहीं बंद हुआ, क्यों? क्योंकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस के जिन विधायकों को इज्जत नहीं मिली थी उन्हें देश के कोने-कोने से उठाकर (जहाँ उन्हें पहले लेजाकर बैठाया था) मध्यप्रदेश लाना था और जल्द से जल्द इज्जत दिलवानी थी। सो जहाज उड़ते रहे और संसद भी चलती रही, जहाँ हजारों लोगो होते हैं रोजाना। 24 मार्च को शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की शपथ ली तब जा कर कहीं जहाज उडऩे बंद हुए।
इसी प्रकार सबसे थाली पिटवा कर घर में बंद करने की मार्मिक अपील के बाद सडकों पर लोगों के पिछवाड़े लाल करा कर मोदी ने शिवराज सिंह को सैकड़ों लोगों के साथ शपथ गग्रहण समारोह करने दिया। इसी बीच कहीं गौमूत्र पार्टी, कहीं रामनवमी, कहीं तबलीगी जमात चलते रहे। पर तबलीगी जमात ने मामले में ट्विस्ट ला दिया। सरकार और गोदी मीडिया को ऐसा मामला मिला जैसा डूबते को तिनके का सहारा मिल गया हो। जबकि उनके इकठ्ठा होने तक सरकार खुद कहती रही थी ड्यूड चिल्ल, हम तैयार हैं और ऐसे भी कोई डरने की बात नहीं। बेचारे राहुल गाँधी को यहाँ भी जिम्मेवारी दिखने का फायदा नहीं मिला।
मेरी इस बात को आप दिल पर न लें अगर तो सोच कर देखिये इन सभी घटनाक्रमों में राजनीति साफ झलक रही है। पहले हमने अपनी सभी नाकामियों के लिए नेहरू को पकड़ा हुआ था। आज जा कर उन्हें कुछ मुक्ति मिली। अब चीन की ईंट से ईंट बजाने के लिए हमने उसके बनाये मोबाइलों पर बहिष्कार के सन्देश भेजने शुरू कर रणभेरी बजा दी है। जैसे चीन ने हमें मना किया था उसके यहाँ बेशक मामला दिसंबर में आ गया हो पर भारत तुम अपनी तैयारी मत करना।
इसी प्रकार जहाँ हमने कोरोना को फैलने का जिम्मा चीन को दिया वहीँ देश में इसके वितरण के लिए हमने तबलीगी जमात को बिना उनके मांगे कॉन्ट्रैक्ट दे दिया है और इस तरह साम्प्रदायिकता के साथ साथ हमने अपने जानी दुश्मन पाकिस्तान को सुर्खियों में जिन्दा रखने का एक अचूक हथियार गोदी मीडिया के माध्यम से साध दिया।
उम्मीद है आप सब जो सिर्फ नकारात्मकता देखने के आदी हो चुके हैं इन सभी कदमों में कोई सकारात्मकता देख सकें। माना कि यह आध्यात्म को साधने जैसा होगा पर इसे करने के लिए कचरे में से ढूंढ कर खाना निकालते सूअर, गाय और कुत्ते से सीखें कि कैसे सभी नकारात्मक चीजों को इग्नोर करके खाना ढूंढ लेना है और इसपर कोई सवाल नहीं करना कि खाना कूड़े में क्यों है। इसके साथ ही दिए खरीदने और तेल बत्ती लाने के चोर रस्ते ढूढ़ लीजिये ताकि मोदी का सपना पूरा हो सके। इस बीच जो चिकित्सक उचित साधनों की मांग करें और जो भूखे रोटी मांगें उन्हें नकारत्मक समझ बिल्कुल ध्यान न दें ऐन प्रधानमन्त्री की तरह ही।
आगे भी जारी….