सरकार के डूबे 700 करोड़, शराब माफियाओं ने मारा मोटा माल
फरीदाबाद (म.मो.) 27 मार्च से कोरोना के नाम पर सरकार ने शराब-बंदी कर दी। हरियाणा सरकार को शराब शुल्क आदि से 7000 करोड़ का राजस्व इस वित्तीय वर्ष में आना था जिसमें से करीब 700 करोड़ बट्टे खाते लग चुका है। दूसरी ओर शराब के धंधे से जुड़े लोग तस्करी द्वारा मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। अकेले इस शहर से करोड़ों का माल दिल्ली तो जा ही रहा है, स्थानीय बिक्री भी बड़े पैमाने पर हो रही है।
गौरतलब है कि ‘बुद्धिमान’ सरकार ने शराब के ठेके तो बंद कर दिये लेकिन शराब बनाने वाले राज्य के कारखाने अपनी पूरी क्षमता से शराब का उत्पादन कर रहे हैं क्योंकि सरकार ने उन पर कोई रोक नहीं लगाई है। ये कारखाने (डिस्टिलरी) हैं, हथीन, हिसार, बहादुरगढ़, सोनीपत, पानीपत, अम्बाला व यमुनानगर में। कारखानों को उत्पादन की छूट के पीछे भी कोरोना वायरस ही है। जी हां, वायरस से बचने के लिये सेनेटाइजर की जरूरत होती है और सेनेटाइजर में एल्कोहल भी लगता है। परन्तु इतना एल्कोहल नहीं लगता कि राज्य भर की तमाम (डिस्टिलरियां) रात-दिन इसके उत्पादन में जुटी रहें। जाहिर है इनमें उत्पादित एलकोहल विभिन्न प्रकार के ब्रांड नाम से बोतलों में भर कर उन्हीं शराब कारोबारियों तक पहुच गया जो इस धंधे से जुड़े हैं।
अभी तक उपलब्ध जानकारी के अनुसार सेक्टर 27 में स्थित एल-1 (शराब का थोक बिक्री गोदाम) के ठेकेदार भूषण सिंगला व सेक्टर 37 के इलाके में स्थित दूसरे एल-1 के ठेकेदार बलविंदर हैं, इनके साथ डिम्पल नामक एक और शराब ठेकेदार भी जुड़ा है। ये तो कुछ वे मुख्य नाम हैं जो सामने आ पाये हैं बाकी अन्य बहुत से खिलाड़ी इस खेल में जुड़े हैं। जानकार बताते हैं कि करीब आठ केंटर शराब रोजाना, विभिन्न रास्तों से दिल्ली पहुंचाई जा रही है। इसके अलावा शहर में लोकल खपत जो हो रही है वह अलग से।
भीतर की जानकारी रखने वाले खबरी बता रहे हैं कि लगभग सारा माल पहले गांव अनंगपुर (थाना सूरजकुंड क्षेत्र) में आता है, फिर वहां से बीसियों लडक़े अपने-अपने विभिन्न साधनों से इसे दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में पहुंचाते हैं। दिल्ली क्षेत्र में एक अहम पड़ाव संगम विहार (बदरपुर-महरोली रोड) पर है। यह स्थान अनंगपुर गांव के रकबे से सटा होने के कारण काफी सुविधाजनक है। धंधे में लगे गांव के कुछ लडक़ों के नाम, वेदपाल फौजी का लडक़ा, संजय, योगेश जागे आदि-आदि है।
सवाल यह पैदा होता है कि जब इतने बड़े पैमाने पर काम हो रहा है तो क्या इसकी जानकारी पुलिस को नहीं है? यह असंभव है। कहावत गलत नहीं है कि पुलिस की मर्जी के बिना परिंदा भी पर नहीं मार सकता। धंधे से जुड़े लोग बताते हैं कि शहर के एक बड़े राजनेता के संरक्षण में ही यह सारा कारोबार चल रहा है। जानकार तो यहां तक भी बताते हैं कि पुलिस की सिक्यूरिटी ब्रांच का एक सब इन्स्पेक्टर उस राजनेता व पुलिस अधिकारियों के बीच कड़ी का काम कर रहा है। ऐसे में सीधा सवाल शहर के पुलिस कमिश्नर केके राव पर उठता है कि क्या उनकी पकड़ अपने महकमे पर नहीं है या वे खुद इस में शामिल हैं?
यह सारा धंधा डीजीपी मनोज यादव की कड़ी चेतावनी के बावजूद चल रहा है। विदित है कि मनोज यादव इस पद पर नियुक्ति से पहले करीब 16 साल तक आईबी (गुप्तचर विभाग) में रहे हैं। उस नाते उनसे अपेक्षा की जाती है कि इस तरह की सूचनायें उनके पास भी होनी चाहिये और डीजीपी होने के नाते इस पर संज्ञान लेकर कार्यवाही भी करनी चाहिये। इसके अलावा अनिल विज जो गृह मंत्रालय लेने के लिये मरे जा रहे थे, वे इस समय कहां सो रहे हैं?