मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
हरियाणा की राजनीति में पूरी तरह से विफल एवं चला हुआ कारतूस साबित हो चुके तथाकथित कद्दावर नेता बिरेन्द्र सिंह ने भी बीते सप्ताह आन्दोलनकारी किसानों के पक्ष में बोल कर अपने संघी आकाओं को नाराज कर लिया। हरियाणा की कांग्रेसी राजनीति में पूरी तरह से तिरस्कृत हो चुके बिरेन्द्र का भाजपा ने सन 2013 के अन्तिम दिनों में मूल्यांकन किया था तो उस वक्त उन्हें राज्य में जाट समुदाय को पटा सकने वाला हर छोटा-बड़ा नेता बहुमूल्य नज़र आता था। उसी भ्रम में भाजपा ने इन पर अपना जाल फैलाया। उस वक्त ये चौधरी साहब कांग्रेस की ओर से राज्य सभा सदस्य थे।
सन् 2013 में, मनमोहन सरकार के अन्तिम दिनों में जब केन्द्रीय मन्त्रीमंडल का विस्तार होना था तो इन्हें मंत्री बनने के लिये सूचना दे दी गयी थी। इन्होंने भी बड़े चाव से शपथ ग्रहण के लिये पूरे सिंगार कर लिये थे, परन्तु शपथ ग्रहण से चंद घंटे पूर्व ही इन्हें शपथ ग्रहण समारोह में न आने का फरमान मिल गया तो ये मन मसोस कर रह गये। पूरे घर-परिवार में मातम का सा माहौल बन गया। मजे की बात तो यह थी कि सारा परिवार जो सत्ता की मलाई खाने को बुरी तरह तरस रहा था, इस तरह मुंह में जाता निवाला छिन जाने से बेचारे ‘कद्दावर’ नेता पर पिल पड़े, खूब खड़ी खोटी सुनाई।
ऐसे में जब भाजपा ने इनके सामने दाना फेंका तो उसे चुगने में इन्होंने देर नहीं लगाई। उस वक्त इन्होंने नरेन्द्र मोदी का यशोगान करते हुए कहा था कि वे उनकी (संघी) नीतियों व कार्यशैली से बहुत प्रभावित हैं बल्कि उनके मुरीद हैं। सन् 2014 में भाजपा सरकार बनी तो मोदी ने इन्हें उपहार स्वरूप ग्रामीण विकास मंत्रालय के अलावा, स्टील व दो अन्य विभागों के मंत्रालय सौंप दिये। बस फिर क्या था, पूरा परिवार मलाई खाने तक सीमित नहीं रहा बल्कि नहाने भी लगा। करोड़ों रुपये अपनी कोठी की साज-सज्जा पर खर्च किये। जिंदल व एस्सार जैसी बड़ी स्टील कम्पनियों को अच्छे से दूहा। मोदी द्वारा इनके कोठी व दफ्तर में तैनात संघी कार्यकर्ता पूरी रिपोर्ट उन्हें दे रहे थे। लिहाजा मोदी ने धीरे-धीरे इनके पर कतरने शुरू कर दिये, इनके विभागों में कटौती कर दी। इस बीच भाजपा ने यह भी समझ लिया कि ये चौधरी साहब भाजपा के लिये उतने उपयोगी सिद्ध नहीं हो रहे हैं जितनी कि वे भाजपा का लाभ उठा रहे हैं।
2019 के चुनाव में इन्होंने अपने पुत्र को भाजपा का टिकट दिलवा कर हिसार से सांसद तो बनवा लिया लेकिन अपने बदले मंत्री नहीं बनवा पाये, इतना ही नहीं भाजपा ने इनसे राज्यसभा की सदस्यता भी छीन कर इन्हें पूरी तरह से घर बैठा दिया, जबकि इनकी पत्नी विधानसभा का चुनाव हार चुकी थी। कुल मिला कर आज इस ‘कद्दावर’ नेता के पास ऐसा कुछ भी नहीं है जो मोदी इनसे छीन ले, लिहाजा ऐसे में किसानों का समर्थन करके मोदी की नाराजगी लेने में क्या हर्ज है? दूसरी ओर किसानों का फर्जी समर्थन करने के बदले शायद कहीं से कोई टुकड़ा मिल जाय। इस बहाने वे अपने नाना सर छोटू राम का नाम याद दिलाना भला कैसे भूल सकते हैं, इसलिये किसानों के प्रति किये गये उनके कामों को गिनाना भी नहीं भूले।
सर छोटू राम ने किसानों, दलितों एवं गरीब जनता के लिये जो किया वह सब तो इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है, परन्तु इस ‘कद्दावर’ नेता ने किसानों के बारे में क्या किया उसका भी तो कहीं उल्लेख करें। छोटू राम के काम को आगे बढाने में इस नाती ने क्या किया। सिवाय उनके नाम को भुना कर खाने के? नाना सारी उम्र कांग्रेस को सूदखोरी व उद्योगपतियों की पार्टी मान कर उसका विरोध करता रहा उसके नाती ने कांग्रेस की मलाई तो खाई सो खाई, पेट नहीं भरा तो कांग्रेस से भी अधिक दक्षिणपंथी एवं साम्प्रदायिक भाजपा का शरणागत होने में भी कतई-कोई शर्म महसूस नहीं हुई।
हां, सत्ता में रहते हुए एक बार मौका मिलते ही किसानों की ऐसी-तैसी करने से ये साहब नहीं चूके। उस वक्त हरियाणा में राज था भजन लाल का ये साहब थे सहकारी विभाग के मंत्री। उस समय इन्होंने धुर किसान विरोधी बिल विधान सभा में पेश किया व पास कराया था। उस बिल के अनुसार कर्जदार किसानों से वसूली के उन कड़े नियमों का प्रावधान किया गया था जिन्हें सर छोटू राम ने खत्म कराया था। इसके अलावा इनका एक भी काम ऐसा नहीं है जिसे किसानों के हक में कहा जा सके। मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब पाले रखने वाले इस ‘कद्दावर’ के पक्ष में कभी भी दो से अधिक विधायक नहीं थे। एक बार गलती से 10-12 विधायक इनके साथ जुड़ गये थे तो ये मुख्यमंत्री बनने के सपने देखते-देखते सपरिवार नैनीताल घूमने निकल गये, वापस आये तब तक विधायकगण हुड्डा के पाले में जा चुके थे और ये रह गये टापते। वैसे भी इनके लिये मशहूर है कि सूर्यास्त होने के साथ ही ये भी पस्त हो जाते हैं।