फरीदाबाद (म.मो.) शिक्षा का व्यापार करने वाले निजी स्कूलों की लूट-खसूट के विरुद्ध बीते बुद्धवार को पीड़ित अभिभावकों ने जि़ला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) कार्यालय के बाहर जम कर प्रदर्शन किया। लगता है इस तरह के प्रदर्शनों पर अपना समय एवं ऊर्जा बर्बाद करने वाले पीडि़तों को यह ज्ञान नहीं है कि डीईओ के पल्ले कुछ नहीं। लूट का परमिट तो चंडीगढ में बैठी सरकार जारी करती है जिसके बदले वह मोटा लेन-देन करती है, हां, डीईओ जैसे छोटे-मोटे अधिकारियों के हिस्से तो केवल जूठन एवं चाटने को जूठी पत्तल ही आती हैं।
प्रदर्शनकारी पीड़ीत तो हैं, इसमें कोई दो राय नहीं परन्तु वे न तो संगठित हैं और न ही उन्हें प्रदर्शन करने की समझ है। यदि ये दोनों बातें उनकी समझ में आ जायें तो उन्हें न केवल प्रदर्शन बल्कि तगड़ा घेराव करना चाहिये सत्तारूढ विधायकों और सांसदों का, क्योंकि इन्हीं के कंधों पर सरकार चलती है। यदि पीडि़त और अधिक संगठित हो जायें तो मुख्यमंत्री, जो आये दिन शहर में भटकते रहते हैं, का घेराव करना चाहिये, काले झंडे दिखाने चाहिये।लेकिन होता इसके विपरीत है। तमाम लोग मुख्यमंत्री की तो बात छोडिय़े विधायक तथा सांसदों की चाटुकारी से बाज़ नहीं आते। इन लोगों को लगता है कि इस तरह की चाटुकारी से ही उनके सब दुख-दर्द दूर हो जायेंगे और यदि मुख्यमंत्री की चाटुकारी का थोड़ा सा मौका भी मिल जाये तो वे अपने आप को धन्य समझने लगते हैं।
कुल मिला कर समझने वाली बात यह है कि जब तक अपने असली शोषक एवं पीड़ा पहुंचाने वाले को पहचान कर उस पर सीधा वार नहीं करेंगे तो डीईओ जैसे छोटे-मोटे अफसरों के यहां धक्के खा कर अपना समय एवं उर्जा बर्बाद करने का कोई लाभ नहीं। इससे अच्छा तो चुप करके अपना शोषण कराते रहना ही बेहतर है।