फरीदाबाद (म.मो.) दिनांक 10-11 फरवरी को एनजीटी की तीन सदस्यीय टीम ने, अरबों रुपये के खर्च से बनते, इस स्मार्ट सिटी का दौरा किया। शहर की दुर्दशा एवं गंदगी को देख कर भड़की टीम ने नगर निगम अधिकारियों को आगामी एक माह में शहर की दशा सुधारने की चेतावनी देते हुए कड़ी सज़ा की धमकी भी दी।
एनजीटी की इस टीम में इसी शहर में सैशन जज रह चुके व हाई कोर्ट से सेवानिवृत जज प्रीतम पाल सिंह तथा हरियाणा की सेवा निवृत मुख्य सचिव उर्वशी गुलाटी भी थीं। कहने की जरूरत नहीं कि ये दोनों ही सदस्य राज्य के उच्चतम न्यायिक एवं प्रशासनिक पदों पर रह चुकने के चलते राज्य में प्रचलित न्यायिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था से पूर्णतया परिचित हैं।
इस सबके बावजूद नगर निगम के अधिकारियों पर इनकी धमकियों का कोई असर होता नहीं दिख रहा। निगम के भ्रष्ट एवं निकृष्ट अधिकारियों ने अपनी सारी नौकरी इसी तरह की धमकियों व जवाबतलबियों में गुजारते हुये पदोन्नतियों के साथ-साथ जम कर धन बटोरा है और किसी का कुछ नहीं बिगड़ा। लगभग सभी अधिकारियों के गॉड फादर (माई-बाप) किसी न किसी रूप में सरकार में मौजूद रहते हैं। इन्हीं के बल-बूते ये लोग नाकाबिल होते हुये नौकरी में लगे व पदोन्नतियां पाते चले गये; जब भी किसी कड़क अफसर ने इन्हें सूतना चाहा तो सत्ता में बैठे इनके गॉड-फादरों ने उसी को चलता कर दिया।
विदित है कि नगर निगम आयुक्त का पद महीनों-महीनों तक खाली पड़ा रहता है और जब किसी की तैनाती होती भी है तो चार-छ: महीने बाद, यानी कि जब तक वह इस निगम को समझने लायक बनता है उसका तबादला कर दिया जाता है। निगम के तीन सहआयुक्तों में से एक या दो पद तो सदैव खाली ही रहते हैं, इन खाली पदों पर निगम के ही नाकारा कर्मचारियों को बैठा दिया जाता है।
नगर निगम की कुल आय का अधिकांश इन्जीनियरिंग ब्रांच द्वारा विकास एवं रख-रखाव के नाम पर खर्च किया जाता है जिसका बड़ा भाग इन्जीनियरों, राजनेताओं व ठेकेदारों की जेब में समा जाता है। इसके चलते सड़क बन कर पूरी होने से पहले टूटने लगती है, पेय जल की पाइप लाइनें आये दिन कहीं न कहीं से फटी रहती हैं सीवर का गंद सड़कों-गलियों में भरा रहता है। सीवेज ट्रीटमेंट के लिये करोड़ों की लागत से बनाये गये एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) बेकार साबित हो रहे हैं। कूड़ा निस्तारण के नाम पर करोड़ों खर्च करने के बावजूद बंधवाड़ी मोड़ पर कूड़े का पहाड़ खड़ा कर दिया गया है।
असल में निगम के ये तमाम इन्जीनियर जिस काम के लिये भर्ती किये गये हैं, ये उसके लायक हैं ही नहीं। ये लोग केवल टेंडर जारी करके बिल पास करना व अपना कमीशन लेना जानते हैं। इससे फालतू इनसे कोई उम्मीद करना ही व्यर्थ है।
एनजीटी की टीम द्वारा दी गयी कड़ी कार्यवाही की धमकी की किसी को कतई कोई परवाह नहीं। क्योंकि ये सभी जानते व समझते हैं कि न तो कोई एनजीटी उनकी नौकरी खा सकता, न उनकी कैद करा सकता और न ही उनकी नामी व बेनामी जायदादों को कुर्क करा सकता। एनजीटी ने पिछले दिनों ऐसे ही एक मामले में एक करोड़ 65 लाख का जुर्माना किया तो निगम ने भर दिया, धन की कमी पडऩे लगी तो निगम ने झट से अपनी कुछ व्यापारिक सम्पत्तियां नीलामी पर लगा दीं और जरूरत पड़े तो और कुछ बेच देंगे। मगर काम नहीं करना।
जिस तरह मोदी डंडे खाने के लिए पीठ को मजबूत कर सकता है लेकिन रोजगार की समस्या हल नहीं कर सकता, ठीक उसी तरह निगम के इंजीनियर कारण बताओ नोटिस का जवाब तो दे देंगे, जुर्माने भरने के लिए निगम तक को बेच देंगे यह गन्दगी नहीं साफ करेंगे।