फरीदाबाद: सुरुरपुर गाँव के शामलात में कटी अवैध श्याम कालोनी में पिछले सप्ताह निगम द्वारा की गई तोड़-फोड़ को चार रोज़ भी नहीं बीते कि अब वहां टूटे हुए मकानों को दोबारा बनाया जाने लगा है| मजदूर मोर्चा टीम ने मौके पर जाकर जब लोगों से बातचीत कर इसके पीछे का कारण जानना चाहा तो नयी कहानी निकल कर सामने आयी|
पाठक जान लें कि मजदूर मोर्चा ने अपनी पिछली रिपोर्ट में इस प्रकार की तोड़-फोड़ व् उसके पीछे के प्रशासनिक अर्थशास्त्र और भ्रष्ट राजनीतिशास्त्र का विस्तार से उल्लेख किया था|
श्याम कालोनी में रंगीला ठाकुर अपने टूटे हुए मकान को दोबारा से न केवल बनवा रहे हैं बल्कि गृह प्रवेश की पूजा भी धूम-धाम से करवा रहे हैं| रंगीला की ही तरह किशन कुमार और अन्य कई तोड़े गए मकानों के लोग टूटी दीवारों की इंट से सीमेंट और मिट्टी साफ़ करके वापस दीवार जोड़ रहे हैं|
कालोनी के एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जिस दिन मकान तोड़े गए उस दिन सभी लोग इकठ्ठा होकर भाजपा के विधायक नयनपाल रावत से मिले थे| विधायक ने पहले तो सबको अपनी जेब से हर्जाना देने की बात कही थी पर जब दोबारा मिले तो ऐसी किसी भी बात से वे मुकर गए| कॉलोनी के कुछ लोगों ने अपने सूत्रों से मालूम करने का प्रयास किया तो एमसीऍफ़ के एक अधिकारी ने उनसे कहा कि कुछ दिन तक अभी मकान मत बनाना और जैसे ही मामला शांत हो हम तुम्हे बता देंगे, फिर बना लेना|
क्योंकि मकान टूटे पड़े थे और बरसात के मौसम में रहने की समस्या बहुत अधिक थी इसलिए सभी गाँव के सरपंच और हरी नामक एक अन्य व्यक्ति को लेकर विधायक नयनपाल के पास गए| इस बार विधायक ने कहा जाओ मकान बना लो इस बार मैं नहीं टूटने दूंगा| विधायक नयनपाल रावत का कथित आश्वासन पा कर लोगों ने मकान दोबारा बनाने शुरू कर दिए हैं|
जब मजदूर मोर्चा ने विधायक जी से फ़ोन पर बात कर लोगों की कही बात की पुष्टि करनी चाही तो उन्होंने फ़ोन न उठाने की अपनी लॉकडाउन कसम पर कायम रहते हुए फ़ोन नहीं उठाया| ज़ाहिर है विधायक का आश्वासन मुफ्त में तो मिला नहीं होगा| जिस एमसीऍफ़ को चुन-चुन कर गरीबों के मकान तोड़ कर कानून लागू कराने की बड़ी जल्दी थी उसे दो दिन बाद ही तोड़े हुए मकानों के दोबारा बनने से अब आपत्ति क्यों नहीं है?
इलाके के लोगों में इस बात का डर भी है कि शायद फ़िर तोड़े जाएँगे मकान, इसके लिए उनका कहना है कि इस बार यदि कोई मकान तोड़ने आएगा तो वे पत्थर और डंडों से उसका स्वागत करेंगे| कुल जमा पैसों का खेल चल पड़ा है और इसमे मरेगा गरीब ही|
दरअसल इन गरीबों के पास इतना पैसा नहीं होता कि किसी नियमित इलाके में ज़मीन ख़रीद सकें| पैसों का अभाव और शहर में ज़मीन खरीद कर दूर बसे अपने गाँव में धाक जमाने की सामंती सोच में डूबे ये प्रवासी लोग भी नेताओं के झूठे आश्वासनों में आकर मकान बना लेते हैं, और फिर खेल शुरू होता है तोड़ने-बनाने का|
नेताओं और डीलरों की मिलीभगत में सरकारी महकमे का भी रोल भरपूर बना हुआ है| सभी अवैध मकानों को बिजली मीटर जारी किये गए हैं| इन्ही मीटरों को देख-देख कर खरीदारों को यकीन हो जाता है कि जब सरकारी मीटर लग रहा है तो इसका अर्थ है ज़मीन पक्की है| यह कैसे संभव हो सकता है कि तहसीलदार ज़मीन के कागजों की रजिस्ट्री कर रहा है व सरकार का बिजली विभाग उन्ही कागज़ातों को देखकर मीटर इशू कर रहा है और एमसीऍफ़ उन्ही कागजों को फर्जी बता कर मकान तोड़ देती है|
इतना ही नहीं मकान टूटने के बाद विधायक के आश्वासन से अगले ही पल ज़मीनों पर मकान बनने भी लगते हैं, पर इस बार एमसीएफ को कोई दिक्कत नहीं है| ज़ाहिर है यह एक पूरा तंत्र है जिसमें शामिल हर प्यादे को पता है कि कौन सी चाल कब चलनी है|
ऐसा नहीं है कि जिनके मकान टूटे उन्हें इसका कोई अंदाज़ा ही नहीं था, बल्कि इन लोगों में भी कई लोगों को मालूम है कि इस ज़मीन पर मकान बनाना जोखिम भरा है| बावजूद इसके वे न केवल खुद यहाँ ज़मीन लेकर फंस जाते हैं बल्कि अपने सगे- संबंधियों को भी ज़मीन दिलवा देते हैं और बदले में डीलर से कमीशन प्राप्त करते हैं|
सारा धंधा ही सालों से जमा जमाया चलता आ रहा है| नेता अपनी जेब भरे और जनता अपनी लुटाये, इससे किसी को क्या फर्क पड़ता है, पर सरकारी बाबू जेब में रिश्वत के पैसे ठूंस कर आँख मूँद ले तो उसे क्यों नहीं जवाबदेह बनाया जाता? मनोहर लाल खट्टर आजकल गुरुग्राम की फर्जी रजिस्ट्रियों पर नाक चुभा रहे हैं पर उनकी नाक के नीचे बैठे उन्ही के विधायक और अफ़सर रोज़ फर्जी ज़मीने बेच रहे हैं वो उन्हें क्यों नहीं दिखता?