राज्यों को उनका हिस्सा न देकर केन्द्र सरकार में जिस तरह उनका आक्रोश को बढ़ा रही है वह कहीं बगावत का रूप न ले ले।

राज्यों को उनका हिस्सा न देकर केन्द्र सरकार में जिस तरह उनका आक्रोश को बढ़ा रही है वह कहीं बगावत का रूप न ले ले।
September 05 14:10 2020

तबाही के लिये नेहरू ही नहीं अब भगवान को भी दोषी ठहरा दिया

मज़दूर मोर्चा ब्यूरो

अपनी तमाम नाकामियों एवं तबाहकुन नीतियों के चलते रसातल की ओर जाती अर्थव्यवस्था के लिये मोदी अभी तक तो पूर्व प्रधानमंत्री जवारलाल नेहरू को दोषी ठहराते रहे हैं; लेकिन अब मोदी सरकार ने यह दोष भगवान के सिर मढ़ना शुरू कर दिया है। नेहरू ने क्या किया और क्या नहीं किया, देश को कितना आगे बढ़ाया या पीछे धकेला, इसका जवाब देने के बेशुमार आंकड़े तमाम समझदार देशवासियों द्वारा प्रस्तुत किये जा रहे हैं। आंकड़ों की कठोर सच्चाई का कोई जवाब मोदी के भोंपू जब नहीं दे पाये तो देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा इसे ‘एक्ट ऑफ गॉड’ कहलवाया गया। यानी यह भगवान की करामात है जो देश की अर्थव्यवस्था तेज़ी से रसातल की ओर जा रही है।

बेचारे भगवान को शायद इसलिये बीच में घसीटा गया है कि उस पर जो मर्ज़ी आरोप लगा दो वह तो सफाई देने से रहा। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर एवं दूरंदेशी दिखाते हुए मोदी सरकार ने जीएसटी कानून में यह लिख दिया था कि यदि भगवान द्वारा भेजी गयी कोई आपदा आ गयी तो राज्यों को जीएसटी में से उनको देय हिस्सा नहीं मिलेगा। विदित है कि राज्यों द्वारा वसूला जाने वाला सेल्स टैक्स (वैट) व कुछ अन्य टैक्सों को समाहित करके गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) बनाया गया था। यह सारा टैक्स एकत्र होकर केन्द्र सरकार के पास जाता है और केन्द्र सरकार उसमें से राज्यों का निश्चित देय भाग उनको देती है। लेकिन संवैधानिक वायदे की खिलाफवर्जी करते हुए केन्द्र ने वर्ष 2019 का एक पैसा भी राज्यों को नहीं दिया, बल्कि अनेको राज्यों का तो 2018 का भी काफी पैसा केन्द्र ने दबा रखा है। राज्यों को उनका हक देने की बजाय मोदी सरकार उन्हें रिजर्व बैंक से या ऋणपत्र जारी करके जनता से कजऱ् लेने की सलाह दे रही है। इस बात का कोई जवाब मोदी के पास नहीं है कि कर्ज तो ले लेंगे, इसे लौटायेंगे कैसे?

एक और सवाल समझ से बाहर है कि भगवान उस मोदी से क्यों नाराज हो गया जिसे खुद भगवान ने भाग्यशाली बना कर कच्चे तेल के भाव, मिट्टी के भाव पर ला दिये थे। इस तथ्य को रुवीकार करते हुए दिल्ली चुनाव की एक रैली में कहा था कि जब इन जैसा भाग्यशाली मौजूद है तो (केजरीवाल जैसे) दुर्भाग्यवान को वोट क्यों देना है! इसके अलावा मोदी एवं संघ ने भगवान के लिये क्या-क्या नहीं किया? इसके नाम पर (जय श्रीराम का उद्घोष करके) भगवान एवं घर्म के नाम पर कितने ही निरीह लो$गों की बलि चढ़ा दी, अरबों रुपये खर्च करके कुम्भ स्नान आयोजित किये, बेघर भगवान रामजी, जो अब तक एक टाट के नीचे रहते थे, उनके लिये अरबों रुपये का भवन निर्माण शुरू करा दिया, अयोध्या में सरयू तट पर लाखों दिये जलवाये, ताली-थाली बजवाई, शुभ मुहूर्त देख कर  देश भर में बत्तियां बुझवा कर दीये जलवाये, लाल किले व कई स्थान पर सैंकड़ों कुंड के हवन कराये और न जाने क्या-क्या कर्म-काण्ड भगवान के नाम पर किये, उसके बाद भी भगवान कैसे नाराज हो सकता है?

भगवान है या नहीं है की बहस में पड़े बगैर इतना तो गारंटी से कहा जा सकता है कि वह न तो कभी खुश होता है और न ही नाराज होता है। भगवान कभी किसी को न कुछ देता है न लेता है। श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार जिसको जो कुछ भी मिलता है वह उसके कर्मों का फल होता है। भारत को जो कुछ भी आज मिल रहा है वह मोदी सरकार के कर्मों का फल है। छोटे-मोटे कर्मों को छोड़ कर मोटे कर्मों पर गौर कीजिये। पहला बड़ा कर्म था नोटबंदी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि समय बीतने के साथ जख्म भर जाते हैं, परन्तु नोटबंदी द्वारा दिये गये जख्म समय के साथ गहरायेंगे सो वही आज साबित हो रहा है। दूसरा बड़ा कर्म था जीएसटी; इसे लागू करते ही इतना बड़ा हाहाकार मचा कि मोदी को यहां तक कहना पड़ गया कि यह तो कांग्रेस ने ही बनाया था। इस टैक्स को लागू करने में की गयी मूर्खताओं को ढांपने के लिये एक के बाद एक अनेक संशोधन करके मोदी सरकार ने यह साबित कर दिया कि देश की पतवार न केवल नौसिखियों के हाथ में है बल्कि उन महामूर्खों  के हाथ में है जिन्हें कुछ सूझ नहीं रहा है, कभी यह उठा, कभी वह पटक।

इन सबके बाद अन्तिम हथौड़ा पड़ा लॉक डाउन का जिसने रही सही सारी कसर निकाल दी। अर्थव्यवस्था एवं जनता में जो थोड़ी-बहुत जान बची थी वह भी निकल गयी। जब मात्र 500 लोग कोरोना संक्रमित थे तो लॉकडाउन और जब 38 लाख हो गये तो अनलॉक की प्रक्रिया चल रही है। लॉकडाउन के नाम पर देश की जनता, खास कर गरीब मेहनतकश वर्ग ने जो भुगता वह सबने देख ही लिया, सो दोहराने की जरूरत नहीं। मोदी सरकार लॉकडाउन के लिये कोरोना और कोरोना के लिये भगवान को जिम्मेदार ठहरा रही है। अंधभक्तों को छोड़ कर थोड़ी सी भी समझ रखने वालों को साफ नज़र आ रहा है कि इसके लिये भगवान नहीं खुद मोदी सरकार जिम्मेवार है। जब जनवरी में कोरोना का पहला मामला केरल में प्रकट हो चुका था तो मोदी 24 मार्च का क्यों इन्तजार कर रहे थे? फरवरी में वे नमस्ते ट्रम्प के नाम पर लाखों लोगों को अहमदाबाद के स्टेडियम में क्यों जमा कर रहे थे? भोपाल में अपनी सरकार के जश्न मनाने में क्यों व्यस्त थे? दिल्ली दंगों की बजाय कोरोना पर ध्यान क्यों नहीं लगाया?

इस सबके बाद संक्रमण बचाव के तौर पर लॉकडाउन जैसा कदम, वह भी मात्र चार घंटे के नोटिस पर उठाना किसी मूर्खता से कम नहीं था। संक्रमण से बचने एवं उसे नियंत्रित करने के लिये जो उपाय आज किये जा रहे हैं, तो क्या ये उपाय बिना लॉकडाउन के नहीं किये जा सकते थे? बखूबी किये जा सकते थे, परन्तु इसके लिये सही व दूरदर्शी सोच की जरूरत होती है जो मोदी में कतई नहीं है, खुद में तो है नहीं पर दूसरे किसी की मानी नहीं। चारों ओर से अंधभक्तों से घिरे मोदी तक कभी कोई सही सलाह पहुंचाने लायक नहीं है। जो कोई पहुंचाना चाहे उसे देशद्रोही घोषित कर दिया जाता।

इन सब कर्मों के अलावा मोदी ने जिस तरह बैंकों को अपने चहेतों के हाथों लुटवाया, न्यायपालिका समेत तमाम संवैधानिक संस्थानों का सत्यानाश कर दिया उन सबका परिणाम तो इस देश को भुगतना ही है। गीता के अनुसार कर्म का फल तो भोगना ही पड़ेगा। यहां एक बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि कर्म तो किये मोदी सरकार ने और भुगत रही है पूरे भारत की जनता, इसमें जनता का क्या कसूर, उसे कौन से कर्म का $फल मिल रहा है। जनता ने यह कर्म किया है कि उसने अपने राजनीतिक अधिकार ‘वोट’ का इस्तेमाल बिना सोचे-समझे किया था। देश को लूटने की ताक में बैठे पूंजीपतियों द्वारा बहाये गये पैसे के बल पर जनता की आखें चौंधिया गयीं और वह बहकावे में एक बार नहीं दो बार आ गयी। उसी कर्म का फल आज देश की जनता भुगतने की हकदार है।

अखंड भारत को

खंडित करने की ओर

आरएसएस द्वारा संचालित एवं नियंत्रित मोदी सरकार बातें तो अखंड भारत की करती है लेकिन काम सारे इसे विखंडित करने के कर रही है। बीते छ: वर्षों में, बल्कि इससे भी पहले से आरएसएस देश को हिंदू-मुस्लिम में बांटने का कोई भी मौका छोड़ नहीं रही। न केवल धार्मिक आधार पर बल्कि जातिय आधार पर भी जनता को बांटने का प्रत्येक कुत्सित प्रयास करती आ रही है।

कोरोना के इस काल में मोदी सरकार द्वारा थोपे गये अवांछित लॉकडाउन के चलते टैक्सों की उगाही में भारी कमी आई है। केन्द्र सरकार द्वारा उगाहे जाने वाले जीएसटी समेत तमाम टैक्सों में सभी राज्यों का एक निश्चित हिस्सा होता है। मोदी सरकार ने कम उगाही को देखते हुए राज्यों को उनका हिस्सा यह कह कर देने से मना कर दिया है कि भगवान द्वारा दी गई आपदा आन पड़ी। यह कोई संतोषजनक बहाना नहीं है। जो भी संकट आया है वह केन्द्र व राज्यों पर एक समान ही आया है। ऐसे में केन्द्र को जो भी उनका हिस्सा बनता है उनको देना चाहिये, आखीर उनको भी तो मोदी की तरह महंगी-महंगी कारों के काफिले व घुमने-फिरने के लिये हवाई जहाज चाहियें। राज्यों को उनका हिस्सा न देकर केन्द्र सरकार में जिस तरह उनका आक्रोश को बढ़ा रही है वह कहीं बगावत का रूप न ले ले।

 

 

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